ETV Bharat / state

Health Department : शारीरिक व मानसिक क्षमता को कमजोर करता है डाउन सिंड्रोम, प्रदेश में 15 फीसद बच्चे पीड़ित - डाउन सिंड्रोम

डाउन सिंड्रोम एक ऐसी स्थिति है जिसमें बच्चा मानसिक और शारीरिक विकारों (Health Department) से जूझता है. यह बीमारी बच्चे में जन्मजात होती है.

Etv Bharat
Etv Bharat
author img

By

Published : Mar 13, 2023, 4:13 PM IST

देखें पूरी खबर

लखनऊ : डाउन सिंड्रोम एक ऐसी बीमारी है जो किसी बच्चे में जन्मजात होती है, इसलिए कहा जाता है कि गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को अपनी सेहत का विशेष ख्याल रखना चाहिए. दरअसल, इसमें बच्चों के अंदर हार्मोंस की कमी हो जाती है, जिसके कारण बच्चों की शारीरिक व बौद्धिक क्षमता कमजोर हो जाती है. मार्च के तीसरे सप्ताह में विश्व डाउन सिंड्रोम दिवस के रूप में मनाया जाता है.

सिविल अस्पताल के वरिष्ठ पीडियाट्रिशियन डॉ वीके गुप्ता के मुताबिक, 'प्रदेश में 15 से 20 फीसदी बच्चे डाउन सिंड्रोम से पीड़ित होते हैं. किसी को यह सिंड्रोम अधिक होता है तो किसी को कम होता है, लेकिन इसमें बच्चे शारीरिक और बौद्धिक रूप से कमजोर होते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान अपना विशेष ख्याल रखना चाहिए, ताकि उनका होने वाला बच्चा पूरी तरह से स्वस्थ पैदा हो.'

डॉ. वीके गुप्ता ने बताया कि 'यह एक आनुवांशिक विकार है. सामान्यतः एक बच्चा 46 क्रोमोसोम के साथ पैदा होता है, जिनमें से 23 क्रोमोसोम का एक सेट वह अपनी मां से तथा 23 क्रोमोसोम का एक सेट अपने पिता से ग्रहण करता है. जो संख्या में कुल 46 होते हैं, लेकिन यदि बच्चे को उसके माता या पिता से एक अतिरिक्त क्रोमोसोम मिल जाता है तो वह डाउन सिंड्रोम का शिकार बन जाता है. डाउन सिंड्रोम से पीड़ित शिशु में एक अतिरिक्त 21वां क्रोमोसोम आ जाने से उसके शरीर में क्रोमोसोम्स की संख्या बढ़कर 47 हो जाती है. सामान्य बच्चों की अपेक्षा, डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास की गति धीमी रहती है. इस विकार से पीड़ित लोगों के चेहरे की बनावट दूसरों से अलग होती है, साथ ही उनमें बौद्धिक विकलांगता भी पाई जाती है.'

उन्होंने बताया कि 'कोई महिला 35 या उसके अधिक उम्र के बाद गर्भवती होती है तो ऐसी अवस्था में जन्म लेने वाले बच्चों में डाउन सिंड्रोम होने की आशंका ज्यादा रहती है. इसके अलावा परिवार में डाउन सिंड्रोम का इतिहास रहा हो, विशेषकर माता-पिता के भाई-बहन में किसी को डाउन सिंड्रोम हो या फिर अगर पहले बच्चे को डाउन सिंड्रोम है तो दूसरे बच्चे में भी इसका खतरा बढ़ जाता है, इसीलिए चिकित्सक एमनियोसेंटेसिस टेस्ट करवाने की सलाह देते हैं. यह एक डायग्नोस्टिक टेस्ट होता है, जिसका इस्तेमाल आनुवांशिक स्वास्थ्य स्थितियों की पुष्टि करने के लिए किया जाता है. बच्चे में डाउन सिंड्रोम होने की पुष्टि के लिए यह टेस्ट करवाया जाता है.'

डाउन सिंड्रोम के चिन्ह और लक्षण : उन्होंने बताया कि 'रोग नियंत्रण और निवारण केंद्र (सीडीसी) के अनुसार, डाउन सिंड्रोम के चिन्ह और इस बीमारी की गंभीरता हर पीड़ित बच्चे में अलग-अलग हो सकती है. डाउन सिंड्रोम के चलते पीड़ितों में नजर आने वाली कुछ शारीरिक भिन्नताएं और विकार के लक्षण अलग-अलग प्रकार के होते हैं.

- चपटा चेहरा, खासकर नाक की चपटी नोक.
- ऊपर की ओर झुकी हुई आंखें.
- छोटी गर्दन और छोटे कान.
- मुंह से बाहर निकलती रहने वाली जीभ.
- मांसपेशियों में कमजोरी, ढीले जोड़ और अत्यधिक लचीलापन
- चौड़े, छोटे हाथ, हथेली में एक लकीर.
- अपेक्षाकृत छोटी अंगुलियां, छोटे हाथ और पांव.
- छोटा कद.
- आंख की पुतली में छोटे सफेद धब्बे.
- इसके अलावा डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों और वयस्कों में विभिन्न प्रकार की स्वास्थ्य समस्याएं भी पाई जाती है. जैसे ल्यूकेमिया, कमजोर नजर, सुनने की क्षमता में कमी, हृदय रोग, याददाश्त में कमी, स्लीप एपनिया आदि. इसके अलावा उन्हें विभिन्न प्रकार के संक्रमणों का भी खतरा रहता है.

बचाव : उन्होंने बताया कि 'वैसे तो यह नेचुरल बीमारी होती है जो कि जन्मजात बच्चे को होता है. गर्भावस्था के दौरान महिला को एक्सरे, अल्ट्रासाउंड और जो दवाई डॉक्टर द्वारा मना की गई हैं उनका सेवन न करें.'

यह भी पढ़ें : UP Congress News : 100 मीटर भी पार नहीं कर पाए राजभवन जा रहे कांग्रेसी, पुलिस से हुई नोकझोंक

देखें पूरी खबर

लखनऊ : डाउन सिंड्रोम एक ऐसी बीमारी है जो किसी बच्चे में जन्मजात होती है, इसलिए कहा जाता है कि गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को अपनी सेहत का विशेष ख्याल रखना चाहिए. दरअसल, इसमें बच्चों के अंदर हार्मोंस की कमी हो जाती है, जिसके कारण बच्चों की शारीरिक व बौद्धिक क्षमता कमजोर हो जाती है. मार्च के तीसरे सप्ताह में विश्व डाउन सिंड्रोम दिवस के रूप में मनाया जाता है.

सिविल अस्पताल के वरिष्ठ पीडियाट्रिशियन डॉ वीके गुप्ता के मुताबिक, 'प्रदेश में 15 से 20 फीसदी बच्चे डाउन सिंड्रोम से पीड़ित होते हैं. किसी को यह सिंड्रोम अधिक होता है तो किसी को कम होता है, लेकिन इसमें बच्चे शारीरिक और बौद्धिक रूप से कमजोर होते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान अपना विशेष ख्याल रखना चाहिए, ताकि उनका होने वाला बच्चा पूरी तरह से स्वस्थ पैदा हो.'

डॉ. वीके गुप्ता ने बताया कि 'यह एक आनुवांशिक विकार है. सामान्यतः एक बच्चा 46 क्रोमोसोम के साथ पैदा होता है, जिनमें से 23 क्रोमोसोम का एक सेट वह अपनी मां से तथा 23 क्रोमोसोम का एक सेट अपने पिता से ग्रहण करता है. जो संख्या में कुल 46 होते हैं, लेकिन यदि बच्चे को उसके माता या पिता से एक अतिरिक्त क्रोमोसोम मिल जाता है तो वह डाउन सिंड्रोम का शिकार बन जाता है. डाउन सिंड्रोम से पीड़ित शिशु में एक अतिरिक्त 21वां क्रोमोसोम आ जाने से उसके शरीर में क्रोमोसोम्स की संख्या बढ़कर 47 हो जाती है. सामान्य बच्चों की अपेक्षा, डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास की गति धीमी रहती है. इस विकार से पीड़ित लोगों के चेहरे की बनावट दूसरों से अलग होती है, साथ ही उनमें बौद्धिक विकलांगता भी पाई जाती है.'

उन्होंने बताया कि 'कोई महिला 35 या उसके अधिक उम्र के बाद गर्भवती होती है तो ऐसी अवस्था में जन्म लेने वाले बच्चों में डाउन सिंड्रोम होने की आशंका ज्यादा रहती है. इसके अलावा परिवार में डाउन सिंड्रोम का इतिहास रहा हो, विशेषकर माता-पिता के भाई-बहन में किसी को डाउन सिंड्रोम हो या फिर अगर पहले बच्चे को डाउन सिंड्रोम है तो दूसरे बच्चे में भी इसका खतरा बढ़ जाता है, इसीलिए चिकित्सक एमनियोसेंटेसिस टेस्ट करवाने की सलाह देते हैं. यह एक डायग्नोस्टिक टेस्ट होता है, जिसका इस्तेमाल आनुवांशिक स्वास्थ्य स्थितियों की पुष्टि करने के लिए किया जाता है. बच्चे में डाउन सिंड्रोम होने की पुष्टि के लिए यह टेस्ट करवाया जाता है.'

डाउन सिंड्रोम के चिन्ह और लक्षण : उन्होंने बताया कि 'रोग नियंत्रण और निवारण केंद्र (सीडीसी) के अनुसार, डाउन सिंड्रोम के चिन्ह और इस बीमारी की गंभीरता हर पीड़ित बच्चे में अलग-अलग हो सकती है. डाउन सिंड्रोम के चलते पीड़ितों में नजर आने वाली कुछ शारीरिक भिन्नताएं और विकार के लक्षण अलग-अलग प्रकार के होते हैं.

- चपटा चेहरा, खासकर नाक की चपटी नोक.
- ऊपर की ओर झुकी हुई आंखें.
- छोटी गर्दन और छोटे कान.
- मुंह से बाहर निकलती रहने वाली जीभ.
- मांसपेशियों में कमजोरी, ढीले जोड़ और अत्यधिक लचीलापन
- चौड़े, छोटे हाथ, हथेली में एक लकीर.
- अपेक्षाकृत छोटी अंगुलियां, छोटे हाथ और पांव.
- छोटा कद.
- आंख की पुतली में छोटे सफेद धब्बे.
- इसके अलावा डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों और वयस्कों में विभिन्न प्रकार की स्वास्थ्य समस्याएं भी पाई जाती है. जैसे ल्यूकेमिया, कमजोर नजर, सुनने की क्षमता में कमी, हृदय रोग, याददाश्त में कमी, स्लीप एपनिया आदि. इसके अलावा उन्हें विभिन्न प्रकार के संक्रमणों का भी खतरा रहता है.

बचाव : उन्होंने बताया कि 'वैसे तो यह नेचुरल बीमारी होती है जो कि जन्मजात बच्चे को होता है. गर्भावस्था के दौरान महिला को एक्सरे, अल्ट्रासाउंड और जो दवाई डॉक्टर द्वारा मना की गई हैं उनका सेवन न करें.'

यह भी पढ़ें : UP Congress News : 100 मीटर भी पार नहीं कर पाए राजभवन जा रहे कांग्रेसी, पुलिस से हुई नोकझोंक

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.