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ग्राहकों के इंतजार में कुम्हार, नहीं बिक रहे मिट्टी के दीये

राजधानी लखनऊ में इन दिनों सड़क किनारे कुम्हार मिट्टी के दीये और बर्तन सजाकर बैठ गए हैं. उम्मीद थी कि दिवाली पर उनकी खूब बिक्री होगी, जिससे उनका खर्च चलेगा. वहीं, इस बार ग्राहक दुकानों पर नहीं ठहर रहे हैं. इस वजह से कुम्हारों की हालत खराब हो चली है.

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Published : Nov 13, 2020, 6:09 PM IST

मिट्टी के दीये.
मिट्टी के दीये.

लखनऊः पूरे देश में दिवाली के त्योहार को लेकर खरीदारी तेजी से हो रही है. वहीं मिट्टी के दीये बेचने वाले दुकानदारों की नजरें ग्राहकों की तलाश कर रही हैं. दीया विक्रेताओं का मानना है कि इस बार उनका रोजगार एकदम ठप हो गया है.

नहीं बिक रहे मिट्टी के दीये.

नहीं आ रहे ग्राहक
कच्ची मिट्टी को आकार देकर मेहनतकश हर साल मिट्टी के दीये बनाते हैं. इस बार कुम्हारों ने मिट्टी के दीयों को रंग-बिरंगा बनाकर बाजार में उतारा, लेकिन खरीदारों की कमी दिख रही है. इस वजह से दुकानदारों के दीये पिछले वर्ष की अपेक्षा इस बार कम बिक रहे हैं.

कुम्हारों के चेहरे मुरझाए
मिट्टी को आकार देने वाले कुम्हार अपनी जीविका चलाने के लिए इस काम को मन लगाकर करते हैं. इसी काम से उनके घरों में भी त्योहार की रोशनी आती है, लेकिन इस बार कुम्हारों के चेहरे मुरझाए हुए हैं.

300 कमाना मुश्किल
दीया विक्रेता भानु प्रजापति ने बताया कि हर बार दिवाली में हम लोग एक दिन में 3000 से 4000 की बिक्री कर लेते थे, लेकिन इस बार 200 से 300 कमाना मुश्किल हो गया है. इस बार काम एकदम ठप हो गया है. हम लोग इतनी मेहनत करके दीये बनाते हैं, लेकिन हमारी मजदूरी भी नहीं मिल पा रही है. वहीं दूसरे विक्रेता ने बताया कि अगर इस बार दीयों की विक्री नहीं हुई, तो अगले साल इन्हीं दीयों को बेचेंगे.

लखनऊः पूरे देश में दिवाली के त्योहार को लेकर खरीदारी तेजी से हो रही है. वहीं मिट्टी के दीये बेचने वाले दुकानदारों की नजरें ग्राहकों की तलाश कर रही हैं. दीया विक्रेताओं का मानना है कि इस बार उनका रोजगार एकदम ठप हो गया है.

नहीं बिक रहे मिट्टी के दीये.

नहीं आ रहे ग्राहक
कच्ची मिट्टी को आकार देकर मेहनतकश हर साल मिट्टी के दीये बनाते हैं. इस बार कुम्हारों ने मिट्टी के दीयों को रंग-बिरंगा बनाकर बाजार में उतारा, लेकिन खरीदारों की कमी दिख रही है. इस वजह से दुकानदारों के दीये पिछले वर्ष की अपेक्षा इस बार कम बिक रहे हैं.

कुम्हारों के चेहरे मुरझाए
मिट्टी को आकार देने वाले कुम्हार अपनी जीविका चलाने के लिए इस काम को मन लगाकर करते हैं. इसी काम से उनके घरों में भी त्योहार की रोशनी आती है, लेकिन इस बार कुम्हारों के चेहरे मुरझाए हुए हैं.

300 कमाना मुश्किल
दीया विक्रेता भानु प्रजापति ने बताया कि हर बार दिवाली में हम लोग एक दिन में 3000 से 4000 की बिक्री कर लेते थे, लेकिन इस बार 200 से 300 कमाना मुश्किल हो गया है. इस बार काम एकदम ठप हो गया है. हम लोग इतनी मेहनत करके दीये बनाते हैं, लेकिन हमारी मजदूरी भी नहीं मिल पा रही है. वहीं दूसरे विक्रेता ने बताया कि अगर इस बार दीयों की विक्री नहीं हुई, तो अगले साल इन्हीं दीयों को बेचेंगे.

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