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जान हथेली पर रखकर पढ़ने को मजबूर, हादसे को दावत दे रहा स्कूल - chitwapur primary school

राजधानी लखनऊ के छितवापुर प्राथमिक विद्यालय का भवन जर्जर हो चुका है. विद्यालय में 35 बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं. विद्यालय के भवन के प्लास्टर कई जगह से उखड़ चुके हैं, छज्जे टूट गए हैं. इनको दुरुस्त करवाने के लिए कई बार पत्र लिखा गया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई.

कॉन्सेप्ट इमेज.
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Published : Mar 4, 2021, 9:06 PM IST

लखनऊ: कोरोना संक्रमण के चलते लगभग एक वर्ष से बंद चल रहे प्राथमिक स्तर के कक्षा एक से पांच तक के सरकारी और निजी विद्यालय एक मार्च से खुल गए हैं. स्कूल खुलने के साथ ही जहां चहल-पहल बढ़ गई है तो वहीं स्कूल परिसर भी बच्चों से गुलजार हो गए हैं, लेकिन राजधानी लखनऊ के कई प्राथमिक विद्यालयों में भय का माहौल है.

देखें ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.

ये भय कोरोना का नहीं बल्कि स्कूल के जर्जर भवनों का है. इन जर्जर भवनों में बच्चे डर के साये में पढ़ने को मजबूर हैं. आलम ये है कि स्कूल के छज्जे टूट कर गिर रहे हैं, लिंटरों में दरारे आ गई हैं, लेकिन विभागीय अधिकारी शायद किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहे हैं. उनकी नजर इन भवनों तक जा ही नहीं रही है.

मंत्री के दावों पर उठे सवाल
बता दें कि बेसिक शिक्षा मंत्री डॉ. सतीश चंद्र द्विवेदी ने प्रदेश के सरकारी प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्कूलों के कायाकल्प करने के तमाम दावे किये थे, लेकिन जमीनी हकीकत में उनके दावे हवा हवाई साबित हो रहे हैं. राजधानी में हादसे को दावत दे रहे छितवापुर प्राथमिक विद्यालय के जर्जर भवन को ईटीवी भारत ने अपने कैमरे में कैद किया. यह विद्यालय मुख्यमंत्री आवास से करीब 4 से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इस प्राथमिक विद्यालय में दो शिक्षिकाएं और एक शिक्षामित्र कार्यरत हैं. एक से पांच तक करीब 35 बच्चे स्कूल में पढ़ने के लिए पंजीकृत हैं.

जर्जर भवन में चल रही क्लास
1960 के दशक में बना यह स्कूल आज पूरी तरह से जर्जर है. स्कूल के प्रवेश द्वार पर यह स्पष्ट लिखा हुआ भी है. इस जानलेवा स्थिति के बावजूद परिसर में कक्षाओं का संचालन किया जा रहा है. हैरानी की बात तो यह है कि जिम्मेदारों को बार-बार सूचना देने के बावजूद इस विद्यालय पर उनका ध्यान नहीं जा रहा है. शायद जिम्मेदार भी किसी बड़े का इंतजार कर रहे हैं.

मरम्मत से नहीं चलेगा काम
स्कूल की बिल्डिंग पूरी तरह से जर्जर हो चुकी है. एक स्थानीय व्यक्ति ने बताया कि स्कूल की छतों से पानी टपकता है. वहीं शिक्षामित्र ने बताया कि सरकार से इसकी मरम्मत के लिए कुछ पैसा आया भी था, लेकिन यहां मरमत से काम नहीं चलेगा. इसलिए वह पैसा भी वापस हो गया. शिक्षामित्र ने बताया कि विभाग को पत्र लिखा गया है. उम्मीद है कि बजट मिलेगा और स्कूल एक बार फिर बच्चों के पढ़ने के लायक बन सकेगा.

विभाग का दावों की खुल रही पोल
बेसिक शिक्षा परिषद की तरफ से लगातार प्रदेश के स्कूलों की सूरत बदलने की बात कही जा रही है. दावे हैं कि स्कूलों में बाउंड्री वॉल से लेकर छोटी-छोटी सुविधाएं तक बच्चों को उपलब्ध कराई जा रही हैं, लेकिन प्राइमरी स्कूल छितवापुर जैसे विद्यालयों की मौजूदा स्थिति इन दावों पर भारी साबित हो रही है.

लखनऊ: कोरोना संक्रमण के चलते लगभग एक वर्ष से बंद चल रहे प्राथमिक स्तर के कक्षा एक से पांच तक के सरकारी और निजी विद्यालय एक मार्च से खुल गए हैं. स्कूल खुलने के साथ ही जहां चहल-पहल बढ़ गई है तो वहीं स्कूल परिसर भी बच्चों से गुलजार हो गए हैं, लेकिन राजधानी लखनऊ के कई प्राथमिक विद्यालयों में भय का माहौल है.

देखें ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.

ये भय कोरोना का नहीं बल्कि स्कूल के जर्जर भवनों का है. इन जर्जर भवनों में बच्चे डर के साये में पढ़ने को मजबूर हैं. आलम ये है कि स्कूल के छज्जे टूट कर गिर रहे हैं, लिंटरों में दरारे आ गई हैं, लेकिन विभागीय अधिकारी शायद किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहे हैं. उनकी नजर इन भवनों तक जा ही नहीं रही है.

मंत्री के दावों पर उठे सवाल
बता दें कि बेसिक शिक्षा मंत्री डॉ. सतीश चंद्र द्विवेदी ने प्रदेश के सरकारी प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्कूलों के कायाकल्प करने के तमाम दावे किये थे, लेकिन जमीनी हकीकत में उनके दावे हवा हवाई साबित हो रहे हैं. राजधानी में हादसे को दावत दे रहे छितवापुर प्राथमिक विद्यालय के जर्जर भवन को ईटीवी भारत ने अपने कैमरे में कैद किया. यह विद्यालय मुख्यमंत्री आवास से करीब 4 से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इस प्राथमिक विद्यालय में दो शिक्षिकाएं और एक शिक्षामित्र कार्यरत हैं. एक से पांच तक करीब 35 बच्चे स्कूल में पढ़ने के लिए पंजीकृत हैं.

जर्जर भवन में चल रही क्लास
1960 के दशक में बना यह स्कूल आज पूरी तरह से जर्जर है. स्कूल के प्रवेश द्वार पर यह स्पष्ट लिखा हुआ भी है. इस जानलेवा स्थिति के बावजूद परिसर में कक्षाओं का संचालन किया जा रहा है. हैरानी की बात तो यह है कि जिम्मेदारों को बार-बार सूचना देने के बावजूद इस विद्यालय पर उनका ध्यान नहीं जा रहा है. शायद जिम्मेदार भी किसी बड़े का इंतजार कर रहे हैं.

मरम्मत से नहीं चलेगा काम
स्कूल की बिल्डिंग पूरी तरह से जर्जर हो चुकी है. एक स्थानीय व्यक्ति ने बताया कि स्कूल की छतों से पानी टपकता है. वहीं शिक्षामित्र ने बताया कि सरकार से इसकी मरम्मत के लिए कुछ पैसा आया भी था, लेकिन यहां मरमत से काम नहीं चलेगा. इसलिए वह पैसा भी वापस हो गया. शिक्षामित्र ने बताया कि विभाग को पत्र लिखा गया है. उम्मीद है कि बजट मिलेगा और स्कूल एक बार फिर बच्चों के पढ़ने के लायक बन सकेगा.

विभाग का दावों की खुल रही पोल
बेसिक शिक्षा परिषद की तरफ से लगातार प्रदेश के स्कूलों की सूरत बदलने की बात कही जा रही है. दावे हैं कि स्कूलों में बाउंड्री वॉल से लेकर छोटी-छोटी सुविधाएं तक बच्चों को उपलब्ध कराई जा रही हैं, लेकिन प्राइमरी स्कूल छितवापुर जैसे विद्यालयों की मौजूदा स्थिति इन दावों पर भारी साबित हो रही है.

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