लखनऊ: धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार इस तिथि में उपवास का विशेष महत्व है. उपवास न हो सके तो एक समय फलाहार ही करना चाहिए. संयम, नियम पूर्वक रहने की मान्यता है. ज्योतिषाचार्य अनिल पांडेय बताते हैं कि देव उत्थनी में भगवन्नाम जप-कीर्तन की महिमा है. भगवद्भक्ति में पूजा-पाठ, व्रत-उपवास करना चाहिए. रात्रि जागरण की विशेष महिमा है. पुराणों का पाठ करने को बताया गया है. इस दिन विवाह लग्न शुरू हो जाती है.
कैसे करें पूजा
अनिल पांडेय ने बताया कि धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प, गन्ध, चन्दन, फल आदि भगवान की पूजा करनी चाहिए. घंटा, शंख, मृदंग की ध्वनि के साथ-साथ मंत्र उच्चारण कर पूजा की जानी चाहिए.
पूजा में चढ़ते गन्ना और सिंघाड़े
पंडित अनिल बताते हैं कि इस पूजा में गन्ना और सिंघाड़ा चढ़ाने की परम्परा है. पूजा में भगवान को ऊनी वस्त्र पहनाए जाते हैं. साथ ही साथ ठंडक में उन्हें आग तपाया जाता है. साथ ही भगवान को जगाने का उपक्रम किया जाता है.
पौराणिक कथा
मान्यता है कि आषाढ़ शुक्ल एकादशी, जिसे देवशयनी एकादशी भी कहते हैं, से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी, जिसे हरिप्रबोधिनी और देव उत्थानी एकादशी भी कहते हैं. 4 महीने तक के लिए भगवान क्षीर सागर में शयन करते हैं. कहा जाता है भगवान ने शंखासुर नामक राक्षस का वध किया था. जिसकी थकान मिटाने के लिए वह 4 मास के लिए सो गए थे. पुनः इसी हरिप्रबोधिनी एकादशी को जागे थे. इसलिए इस एकादशी का एक नाम देव उत्थानी या देव उठानी एकादशी भी हैं.