लखनऊ : उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में यमुना एक्सप्रेस वे के पास ट्रॉली बैग में मिली युवती की लाश (dead body found in trolley bag) की पहचान तीन दिन बाद हो गई. इसके लिए मथुरा पुलिस ने 20 हजार फोन और 210 सीसीटीवी फुटेज खंगाले थे, हालांकि तीन साल पहले ऐसी ही एक युवती की लाश लखनऊ में ट्रॉली बैग के अंदर मिली थी, जिसकी पहचान यूपी के 75 जिलों की पुलिस सीसीटीवी कैमरे खंगालकर भी नहीं कर सकी थी. ऐसे मे वो घटना आज भी एक पहली बनी हुई है कि 'आखिर वो कौन थी'?
22, जनवरी 2019 की ठंड में 100 नंबर पर पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना मिली कि इकाना स्टेडियम के पास झाडियों में एक नीले रंग का ट्रॉली बैग पड़ा हुआ है और उसके पास कुत्ते घूम रहे हैं. कंट्रोल रूम ने स्थानीय थाना गोसाईंगंज को सूचना दी और आनन-फानन में तत्कालीन इंस्पेक्टर अजय प्रकाश त्रिपाठी मय फोर्स मौके पर पहुंच गए. झाड़ियों में पड़े उस ट्रॉली बैग को खोलते ही वहां पर मौजूद हर पुलिसकर्मी सन्न रह गया. बैग में एक युवती की लाश ठूंस कर रखी गई थी, ठीक उसी तरह जैसे मथुरा में आयुसी यादव की लाश को बैग में घुसेड़ कर रखा गया था.
तत्कालीन गोसाईंगंज इंस्पेक्टर अजय प्रकाश त्रिपाठी बताते हैं कि, उस नीले रंग के ट्रॉली बैग में जिस तरह युवती को रखा गया था, उससे ये साफ था कि उसके साथ जिन्दा रहते और उसके मरने के बाद भी क्रूरता की गई होगी. ये तब और साफ हो गया जब उस लाश को बैग से बाहर निकाला गया. युवती का चेहरा जलाया गया था, जिससे उसकी शिनाख्त न हो सके. उसके दोनो हाथों की उंगलियों को जलाया गया था, ताकि बायोमैट्रिक के जरिये पहचान न उजागर हो. इंस्पेक्टर अजय ने बताया कि यह सब देख कर वो और उनकी टीम सन्न रह गई थी.
अजय प्रकाश त्रिपाठी के मुताबिक, उनके पास बैग व युवती के शरीर में मौजूद केसरिया सलवार और काले कुर्ते के अलावा ऐसा कोई भी सबूत नहीं था जिससे लाश की पहचान की जा सके. हालांकि यह जानना जरूरी था कि उस युवती की मौत कैसे हुई, इसलिये लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया और बैग मिलने वाले स्थान व उस ट्रॉली बैग को फोरेंसिक टीम के हवाले कर दिया गया.
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सामने आया कि उस युवती, जिसकी उम्र 20 से 25 साल के बीच होगी उसे मारने से पहले काफी यातनाएं दी गई थीं. उसके शरीर पर कई जगह चोट के निशान थे. मौत से पहले उसके पूरे शरीर को सिगरेट से जलाया गया था. युवती के प्राइवेट पार्ट पर भी सिगरेट से जलाने के निशान मिले थे. पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टरों की टीम ने आशंका जताई थी कि बंद कमरे में युवती के साथ काफी देर तक क्रूरता की गई होगी. उसे यातना देने के बाद गला दबा कर मार दिया गया.
ट्रॉली बैग से शुरू हुई जांच : उधर पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आई और इधर पुलिस युवती की शिनाख्त करने व कातिलों तक पहुंचने के लिये जद्दोजहद कर रही थी. तत्कालीन इंस्पेक्टर के मुताबिक, लाश में ऐसे कोई सबूत नहीं छोड़े गये थे, जिससे हम उसकी पहचान कर सकें. ऐसे में हमारे पास महज एक ट्रॉली बैग था, जिसके जरिये हमने अपनी जांच शुरू की. हमने उस ट्रॉली बैग में लिखे ब्रांड नाम से आरोपी तक पहुंचने का प्रयास किया. शहर के सभी शॉपिंग मॉल व बैग विक्रेताओं को दिखाकर पता लगाने की कोशिश की थी कि इस ब्रांड का बैग हाल फिलहाल किसने और कहां से खरीदा है. हम लोग करीब साल भर इसी दिशा में पड़ताल करते रहे. युवती के कपडे, सैंडल व कंगन से भी पहचान करवाने की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिल सकी.
मथुरा पुलिस की ही तरह लखनऊ पुलिस ने भी फोन व सीसीटीवी फुटेज को खंगालना शुरू किया था. शहर में आने वाले हर हाई वे के टोल प्लाजा के सीसीटीवी फुटेज लेकर उस गाड़ी का पता लगाने की कोशिश की गई जिससे लाकर शव को फेंका गया. कुछ संदिग्ध गाड़ियों का पता चला, मालिकों से पूछताछ हुई, लेकिन परिणाम सिफर ही रहा. पुलिस ने लखनऊ के सभी होटलों में भी इस आशंका के चलते छानबीन की थी कि कहीं युवती की हत्या शहर के अंदर ही न की गई हो. होटल के सीसीटीवी फुटेज खंगाले गए, विजिटर रजिस्टर चेक किए गए, लेकिन प्रयास कामयाब नहीं हुआ.
फरीदाबाद से आई थी राहत की खबर : अजय प्रकाश बताते हैं कि उसी दौरान फरीदाबाद में भी ऐसी ही हत्याएं हो रही थीं. वहां एक के बाद एक तीन महिलाओं के शव बैग में मिले थे. उसमें एक युवती की हत्या ठीक उसी तरह की गई थी जैसे लखनऊ में मिली युवती की हुई थी. वहां भी युवती का चेहरा व शरीर को सिगरेट से जलाया गया था. फरीदाबाद पुलिस ने हमसे संपर्क किया, उन्हें शक था कि कोई साइको किलर है जो युवतियों की ऐसी हत्याएं कर रहा है. काफी माथापच्ची हुई, लेकिन हत्यारोपी का कोई भी सुराग नहीं मिल सका.
लखनऊ के इकाना स्टेडियम के पास ट्रॉली बैग में मिली युवती की लाश ने सभी को परेशान कर रखा था. आला अधिकारी युवती की पहचान न होने और कातिल का पता न लगा पाने को लेकर स्थानीय थाने पर नाराज थे. ऐसे में जब राजधानी पुलिस के सभी हथकंडे फेल हुए तो प्रदेश भर की पुलिस से मदद मांगी गई. त्रिनेत्र एप्लीकेशन और अन्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से शव के कपड़ों की फोटो वायरल कर महिला की पहचान करवाने की कोशिश की गई.
तत्कालीन सीओ मोहनलालगंज राज कुमार शुक्ला बताते हैं कि उस वक़्त हम लोग युवती की पहचान न हो पाने से परेशान थे. जितनी देर हमें लाश की शिनाख्त होने में हो रही थी, कातिल हमारी पहुंच से उतनी ही दूर जा रहा था. ऐसे में हमने राज्य के सभी 75 जिलों की पुलिस से मदद मांगी. मिसिंग शिकायतें खंगाली गईं, फिंगर प्रिंट डाटा बेस खंगाला गया, लेकिन हमें सफलता नहीं मिल सकी.
मथुरा में ट्रॉली बैग में मिली लाश की शिनाख्त महज 3 दिनों में मथुरा पुलिस ने कर ली है. पहचान दिल्ली की 20 साल आयुसी यादव के रूप में हुई है, लेकिन 22 जनवरी 2019 से अब तक इन तीन वर्षों में लखनऊ में ट्रॉली बैग में मिली लाश की पहचान नहीं हो सकी. यही नहीं उस युवती के साथ क्रूरता कर हत्या करने वाला कातिल भी पुलिस की गिरफ्त में नहीं आ सका है.
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