लखनऊ/दिल्ली: देश में सबसे लंबा चलने वाले मुकदमे अयोध्या भूमि विवाद के लिए मंगलवार का दिन बेहद अहम है. आज से अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो रही है. इस मामले पर सभी पक्ष चाहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट जल्द से जल्द कोई फैसला दे.
2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जमीन को तीन हिस्सों में बांटने का फैसला दिया था. दो तिहाई हिस्सा हिन्दू पक्ष को मिला था और एक तिहाई सुन्नी वक्फ बोर्ड को, लेकिन कोई भी पक्ष इस फैसले से संतुष्ट नहीं हुआ. सब ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की. दूसरी तरफ सुन्नी सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड ने भी हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. बाद में कई और पक्षों ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. इन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई 2011 को हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी.
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जब किसी पक्ष ने जमीन बंटवारे की मांग नहीं की थी, फिर हाई कोर्ट ने ऐसा फैसला कैसे दिया. मुकदमे से जुड़े लगभग 19,950 पन्नों के दस्तावेज 7 भाषाओं हिंदी, संस्कृत, पंजाबी, अंग्रेजी, उर्दू और अरबी-फारसी में हैं. इनके अनुवाद को लेकर लंबे समय तक पेंच फंसता रहा.
आखिर क्या है विवादः
1885 के फरवरी में महंत रघुबर दास ने फैजाबाद कोर्ट में याचिका दायर की थी कि अयोध्या में मंदिर बनाने का आदेश दिया जाए, लेकिन याचिका को खारिज कर दिया गया.
23 दिसंबर 1949 को असली विवाद शुरू हुआ, जब भगवान राम की मूर्तियां मस्जिद में मिली. हिंदुओं ने कहा कि भगवान राम प्रकट हुए हैं. वहीं मुस्लिमों ने आरोप लगाया कि मूर्तियां रात में रखी गई हैं. मामला फिर कोर्ट में पहुंचा, मगर सुलझने की बजाय और उलझता गया.
1984 में विश्व हिंदू परिषद ने विवादित ढांचे पर मंदिर बनाने के लिए एक कमेटी गठित की और यू. सी. पांडे की याचिका पर फैजाबाद के तत्कालीन जिला जज के. एम. पांडे ने 1 फरवरी 1986 को हिंदुओं को पूजा करने की अनुमति दी. साथ ही ताला हटाने का भी आदेश दे दिया, जिसे लेकर बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति का गठन हुआ.
6 दिसंबर 1992 को देश के कोने-कोने से यहां हजारों लोग पहुंचे और इस विवादित ढांचे को धराशायी कर दिया. जिसके बाद 3 अप्रैल 1993 को अयोध्या अधिनियम के अंतर्गत 'निश्चित क्षेत्र का अधिग्रहण' बिल पास हुआ.