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महिला अस्पतालों का हाल बेहाल, अल्ट्रासाउंड के लिए मिल रही दो महीने बाद की तारीख

राजधानी के महिला अस्पतालों का हालात काफी ज्यादा खराब हैं. गर्भवती महिलाओं को अल्ट्रासाउंड के लिए दो महीने बाद की तारीख मिल रही है. अमूमन गर्भवती महिलाओं को महीने में एक बार अल्ट्रासाउंड कराना होता है. इसके अलावा महिलाओं को कई तरह की समस्य़ाएं फेस करनी पड़ रही हैं.

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Published : Dec 22, 2022, 7:57 PM IST

वीरांगना झलकारी बाई महिला अस्पताल.

लखनऊ : राजधानी के महिला अस्पतालों का हालाता काफी ज्यादा खराब हैं. यहां आने वाली गर्भवती महिलाओं को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. हर महीने होने वाले अल्ट्रासाउंड के लिए दो महीने बाद की तारीख दी जा रही है. इसके अलावा जरूरत की दवाओं के लिए भी भटकना पड़ रहा है. ऐसे में तीमारदार बाहर के मेडिकल स्टोरों से महंगे दामों पर दवाएं खरीदने को मजबूर हैं.

हजरतगंज स्थित वीरांगना झलकारी बाई महिला अस्पताल (Veerangana Jhalkari Bai Women's Hospital) शहर के बीचो बीच में है. यहां पर अच्छे चिकित्सक हैं. यही कारण है कि दूरदराज से बड़ी संख्या में गर्भवती महिलाएं (pregnant women) यहां इलाज के लिए आती हैं. विशेषज्ञ डॉक्टर से परामर्श लेती हैं, लेकिन यहां पर एक ही रेडियोलॉजिस्ट है. इसके कारण महिलाओं की जो जांचें हर महीने होनी चाहिए वह जांच दो महीने पर एक बार हो रही है. कई बार आगे की तिथि दी जा रही है.

एक महिला ने बताया कि यहां पर डॉक्टर अच्छे हैं. इसलिए यहां आते हैं. बाकी खामियां तो बहुत हैं. कई बार यहां से दवाएं नहीं मिलती हैं. इसलिए बाहर से दवाई खरीदनी पड़ती हैं. बाहर की दवाएं महंगी पड़ती हैं. अल्ट्रासाउंड के लिए पहुंची एक महिला ने कहा कि अस्पताल में काफी ज्यादा इंतजार करना पड़ता है. सुबह 9 बजे से अल्ट्रासाउंड विभाग के बाहर बैठे हैं. सबसे पहला पर्चा लगाया था, लेकिन अभी रेडियोलॉजिस्ट नहीं होने के कारण अल्ट्रासाउंड नहीं हो पाया है. इसके अलावा कई बार बाहर से खरीदने वाली चीजें समझ में नहीं आती हैं. साथ आने वाले किसी भी पुरुष को बाहर ही रोक दिया जाता है. ऐसे में बड़ी मुश्किल से खुद ही पर्चा बनवाना आदि काम करने पड़ते हैं.

अस्पताल की सीएमएस डॉ रंजना खरे (Hospital's CMS Dr. Ranjana Khare) बताया कि मौजूदा समय में अस्पताल की ओपीडी (hospital OPD) में रोजाना 200 से अधिक गर्भवती महिलाएं इलाज के लिए आ रही हैं. ओपीडी हमेशा की तरह समान्य है. रोजाना लगभग 10 महिलाओं के प्रसव कराए जा रहे हैं. इनमें से कुछ हाई डिपेंडेंसी यूनिट यानी अति गंभीर प्रसव केस भी होते हैं. अल्ट्रासाउंड के लिए तिथि बढ़ाकर दे रहे हैं, इसके लिए हमारी मजबूरी है. क्योंकि अस्पताल में एक ही रेडियोलॉजिस्ट है. इस कारण डॉक्टर के ऊपर एक दिन में 40-45 अल्ट्रासाउंड का दबाव होता है. अगर अधिक अल्ट्रासाउंड करेंगे तो उस अल्ट्रासाउंड की गुणवत्ता में कमी आएगी. हालांकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि बहुत गंभीर केस है फिर भी हम उसका अल्ट्रासाउंड नहीं कर रहे हैं. पहले हम काउंसिलिंग करते हैं, देख लेते हैं, फिर उसके बाद अल्ट्रासाउंड की तिथि लिखते हैं. गंभीर केस होने पर हम तुरंत गर्भवती का अल्ट्रासाउंड समेत बाकी की जांचें करवाते हैं. रेडियोलॉजिस्ट के लिए शासन समेत स्वास्थ्य भवन को चिट्ठी भेजी गई है.

यह भी पढ़ें : अखिलेश यादव ने भाजपा को घेरा, कहा इनके राज में महिलाओं और बच्चियों का जीवन सुरक्षित नहीं

वीरांगना झलकारी बाई महिला अस्पताल.

लखनऊ : राजधानी के महिला अस्पतालों का हालाता काफी ज्यादा खराब हैं. यहां आने वाली गर्भवती महिलाओं को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. हर महीने होने वाले अल्ट्रासाउंड के लिए दो महीने बाद की तारीख दी जा रही है. इसके अलावा जरूरत की दवाओं के लिए भी भटकना पड़ रहा है. ऐसे में तीमारदार बाहर के मेडिकल स्टोरों से महंगे दामों पर दवाएं खरीदने को मजबूर हैं.

हजरतगंज स्थित वीरांगना झलकारी बाई महिला अस्पताल (Veerangana Jhalkari Bai Women's Hospital) शहर के बीचो बीच में है. यहां पर अच्छे चिकित्सक हैं. यही कारण है कि दूरदराज से बड़ी संख्या में गर्भवती महिलाएं (pregnant women) यहां इलाज के लिए आती हैं. विशेषज्ञ डॉक्टर से परामर्श लेती हैं, लेकिन यहां पर एक ही रेडियोलॉजिस्ट है. इसके कारण महिलाओं की जो जांचें हर महीने होनी चाहिए वह जांच दो महीने पर एक बार हो रही है. कई बार आगे की तिथि दी जा रही है.

एक महिला ने बताया कि यहां पर डॉक्टर अच्छे हैं. इसलिए यहां आते हैं. बाकी खामियां तो बहुत हैं. कई बार यहां से दवाएं नहीं मिलती हैं. इसलिए बाहर से दवाई खरीदनी पड़ती हैं. बाहर की दवाएं महंगी पड़ती हैं. अल्ट्रासाउंड के लिए पहुंची एक महिला ने कहा कि अस्पताल में काफी ज्यादा इंतजार करना पड़ता है. सुबह 9 बजे से अल्ट्रासाउंड विभाग के बाहर बैठे हैं. सबसे पहला पर्चा लगाया था, लेकिन अभी रेडियोलॉजिस्ट नहीं होने के कारण अल्ट्रासाउंड नहीं हो पाया है. इसके अलावा कई बार बाहर से खरीदने वाली चीजें समझ में नहीं आती हैं. साथ आने वाले किसी भी पुरुष को बाहर ही रोक दिया जाता है. ऐसे में बड़ी मुश्किल से खुद ही पर्चा बनवाना आदि काम करने पड़ते हैं.

अस्पताल की सीएमएस डॉ रंजना खरे (Hospital's CMS Dr. Ranjana Khare) बताया कि मौजूदा समय में अस्पताल की ओपीडी (hospital OPD) में रोजाना 200 से अधिक गर्भवती महिलाएं इलाज के लिए आ रही हैं. ओपीडी हमेशा की तरह समान्य है. रोजाना लगभग 10 महिलाओं के प्रसव कराए जा रहे हैं. इनमें से कुछ हाई डिपेंडेंसी यूनिट यानी अति गंभीर प्रसव केस भी होते हैं. अल्ट्रासाउंड के लिए तिथि बढ़ाकर दे रहे हैं, इसके लिए हमारी मजबूरी है. क्योंकि अस्पताल में एक ही रेडियोलॉजिस्ट है. इस कारण डॉक्टर के ऊपर एक दिन में 40-45 अल्ट्रासाउंड का दबाव होता है. अगर अधिक अल्ट्रासाउंड करेंगे तो उस अल्ट्रासाउंड की गुणवत्ता में कमी आएगी. हालांकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि बहुत गंभीर केस है फिर भी हम उसका अल्ट्रासाउंड नहीं कर रहे हैं. पहले हम काउंसिलिंग करते हैं, देख लेते हैं, फिर उसके बाद अल्ट्रासाउंड की तिथि लिखते हैं. गंभीर केस होने पर हम तुरंत गर्भवती का अल्ट्रासाउंड समेत बाकी की जांचें करवाते हैं. रेडियोलॉजिस्ट के लिए शासन समेत स्वास्थ्य भवन को चिट्ठी भेजी गई है.

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