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सरकारी अस्पतालों का हाल, जानिए अल्ट्रासाउंड के लिए मिल रही कब की तारीख

राजधानी के सरकारी अस्पताल में इन दिनों मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. वायरल बुखार से लेकर तमाम बीमारियों के मरीज पहुंच रहे हैं. अस्पतालों में अल्ट्रासाउंड जांच के लिए एक महीने के बाद की तारीख दी जा रही है.

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Published : Aug 18, 2023, 8:08 PM IST

लखनऊ : अगर किसी मरीज की तबीयत खराब है, उसके पेट में आज दर्द हो रहा है तो सरकारी अस्पताल में अल्ट्रासाउंड के लिए मरीज को एक महीने बाद की तारीख दी जा रही है. सरकारी जिला अस्पताल में बहुत सारे मरीज पेट दर्द की समस्या से अस्पताल पहुंचते हैं, लेकिन मरीज को अल्ट्रासाउंड के लिए एक से दो महीने की तारीख दे दी जाती है. ऐसे में मजबूरी में मरीज को निश्चित पैथोलॉजी की तरफ रुख करना पड़ता है जहां पर अल्ट्रासाउंड के लिए शुल्क देना पड़ता है.

सरकारी अस्पतालों में मरीजों की भीड़
सरकारी अस्पतालों में मरीजों की भीड़

शहर के कुछ जिला अस्पताल ऐसे हैं, जहां पर वीवीआईपी भी इलाज के लिए पहुंचते हैं. मरीजों की इतनी लंबी लाइन होती है कि सभी का अल्ट्रासाउंड होना संभव नहीं होता है. एक दिन में औसतन 40 से 50 अल्ट्रासाउंड होते हैं. डॉक्टरों के मुताबिक, अगर क्वांटिटी में बढ़ोतरी करेंगे तो जाहिर तौर पर क्वालिटी भी खराब होगी, यानी कि अल्ट्रासाउंड की संख्या में बढ़ोतरी होगी तो जल्दबाजी में अल्ट्रासाउंड की जो क्वालिटी है अच्छी नहीं होगी. जल्दबाजी में कभी-कभी इधर उधर हो जाता है.

सरकारी अस्पतालों में मरीजों की भीड़
सरकारी अस्पतालों में मरीजों की भीड़

सिविल अस्पताल के सीएमएस डॉ राजेश कुमार श्रीवास्तव के मुताबिक, 'रोजाना 40 से 45 अल्ट्रासाउंड किए जाते हैं, फिलहाल अस्पताल में दो रेडियोलॉजिस्ट तैनात हैं. तीन-तीन दिन दोनों रेडियोलॉजिस्ट की ड्यूटी होती है. अल्टरनेट बेस पर रेडियोलॉजिस्ट की ड्यूटी लगाई जाती है.'

सरकारी अस्पतालों में मरीजों की भीड़
सरकारी अस्पतालों में मरीजों की भीड़

वीरांगना झलकारी बाई महिला अस्पताल की सीएमएस डॉ. निवेदिता के मुताबिक, 'अस्पताल में मात्र एक रेडियोलॉजिस्ट हैं, जिसके कारण सिर्फ 40 से 50 के बीच में महिलाओं का अल्ट्रासाउंड हो पता है. अस्पताल में गर्भवती महिलाओं के अल्ट्रासाउंड की आवश्यकता को देखते हुए एक ओर रेडियोलॉजिस्ट के लिए स्वास्थ्य निदेशालय में लिखित पत्र भेजा गया है ताकि यहां पर रेडियोलॉजिस्ट की कमी को पूरा किया जा सके, वहीं बलरामपुर अस्पताल में चार रेडियोलॉजिस्ट डॉक्टर तैनात हैं. इमरजेंसी में जो भी मरीज आते हैं उनका अल्ट्रासाउंड हो जाता है, बाकी ओपीडी वाले मरीजों की भी अल्ट्रासाउंड के लिए अधिक मशक्कत नहीं होती है, क्योंकि यहां पर रेडियोलॉजिस्ट की पर्याप्त संख्या है.'

राजाजीपुरम निवासी धर्मेंद्र शुक्रवार को पेट दर्द की समस्या के साथ सिविल अस्पताल में इलाज के लिए पहुंचे. जहां पर जनरल फिजिशियन ने उनको अल्ट्रासाउंड के लिए लिखा, लेकिन अल्ट्रासाउंड काउंटर पर पहुंचने के बाद उन्हें अगले महीने की 14 तारीख दी गई. यानी कि सीधे एक महीने की तारीख मरीजों को अल्ट्रासाउंड के लिए दी जा रही है. बातचीत के दौरान धर्मेंद्र ने कहा कि 'एक महीने के बाद की तारीख मिली है, तब तक या तो इंतजार करना होगा या फिर बाहर से ही अल्ट्रासाउंड करा कर रिपोर्ट यहां पर विशेषज्ञ को दिखाएंगे.' वहीं एक और महिला मरीज दीप्ति कुमारी ने बताया कि 'अपेंडिक्स का दर्द उठने पर वह अस्पताल में फिजिशियन के पास पहुंचीं, जहां पर उन्हें सर्जन की ओपीडी में भेजा गया. वर्तमान स्थिति देखने के लिए अल्ट्रासाउंड के लिए लिखा, लेकिन मरीजों की अधिक संख्या का हवाला देते हुए अगले महीने की 24 तारीख अल्ट्रासाउंड के लिए दी गई.'



राजधानी के सिविल अस्पताल में महज दो रेडियोलॉजिस्ट हैं और यहां पर इलाज के लिए प्रदेश के अन्य जिलों से भी मरीज आते हैं. आलम यह होता है कि एक से चार महीने की तिथि अल्ट्रासाउंड के लिए मिलती है. ऐसे में कई मरीज जिन्हें स्टोन या अपेंडिस की शिकायत होती है, वह दर्द से परेशान रहते हैं या फिर निजी अस्पताल का सहारा लेते हैं. इसके अलावा राजधानी के महिला अस्पतालों में भी गर्भवती महिलाओं को भी लंबी तिथि अल्ट्रासाउंड के लिए मिलती हैं. स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, विभाग में 695 अल्ट्रासाउंड मशीनें हैं. यह जिला अस्पताल से लेकर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों तक लगाई गई हैं, लेकिन हर अस्पताल में रेडियोलॉजिस्ट नहीं हैं. प्रांतीय चिकित्सा सेवा संवर्ग में इन दिनों करीब 37 रेडियोलॉजिस्ट हैं. ऐसे में एक रेडियोलॉजिस्ट को दो से तीन सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की जिम्मेदारी दी गई है. वह दो-दो दिन अलग-अलग सीएचसी पर सेवाएं दे रहे हैं. उदाहरण के तौर पर शामली के सरकारी अस्पताल में जांच सुविधा न होने से लोगों को दूसरे अस्पताल जाना पड़ता है. इसी तरह मुजफ्फरनगर, अमरोहा, मुरादाबाद, संतकबीरनगर, चित्रकूट, मऊ आदि जिलों में मशीनें हैं, लेकिन संचालन नहीं हो रहा है. महराजगंज, बांदा, मऊ आदि जिलों में कहीं सप्ताह में दो दिन तो किसी सीएचसी पर एक दिन जांच की सुविधा दी जा रही है.

स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. दीपा त्यागी का कहना है कि 'जहां मशीनें लगी हैं. उनके संचालन के बारे में अधीक्षकों से रिपोर्ट मांगी गई है, वैकल्पिक व्यवस्था बनाई जा रही है.'

एमबीबीएस डॉक्टरों को दिया जाएगा प्रशिक्षण : उन्होंने बताया कि 'अस्पतालों में रेडियोलॉजिस्ट नहीं होने के कारण तमाम दिक्कतें होती हैं, इसलिए अब प्रदेश के एमबीबीएस डॉक्टरों को विभिन्न चिकित्सा संस्थानों में छह माह का रेडियो डायग्नोसिस प्रशिक्षण दिया जाएगा. फिर इन्हें अल्ट्रासाउंड जांच में लगाया जाएगा. प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले डॉक्टर सरकारी अस्पताल में गर्भवती महिलाओं के एब्डोमेनल अल्ट्रासाउंड करेंगे. काउंसिलिंग के जरिए चयनित 42 डॉक्टरों को नौ मेडिकल कॉलेजों में भेजा जाएगा. इसके जरिए कुछ रेडियोलॉजिस्ट डॉक्टर की कमी की पूर्ति होगी, क्योंकि प्रदेश के बहुत सारे अस्पतालों में लगातार रेडियोलॉजिस्ट डॉक्टरों की कमी के कारण मशीनें होते हुए भी जांच नहीं हो पाती है.'

यह भी पढ़ें : अब मिशन मोड में दौड़ेगी कौशल विकास की गाड़ी, निदेशक कर सकेंगे 25 लाख तक के भुगतान

लखनऊ : अगर किसी मरीज की तबीयत खराब है, उसके पेट में आज दर्द हो रहा है तो सरकारी अस्पताल में अल्ट्रासाउंड के लिए मरीज को एक महीने बाद की तारीख दी जा रही है. सरकारी जिला अस्पताल में बहुत सारे मरीज पेट दर्द की समस्या से अस्पताल पहुंचते हैं, लेकिन मरीज को अल्ट्रासाउंड के लिए एक से दो महीने की तारीख दे दी जाती है. ऐसे में मजबूरी में मरीज को निश्चित पैथोलॉजी की तरफ रुख करना पड़ता है जहां पर अल्ट्रासाउंड के लिए शुल्क देना पड़ता है.

सरकारी अस्पतालों में मरीजों की भीड़
सरकारी अस्पतालों में मरीजों की भीड़

शहर के कुछ जिला अस्पताल ऐसे हैं, जहां पर वीवीआईपी भी इलाज के लिए पहुंचते हैं. मरीजों की इतनी लंबी लाइन होती है कि सभी का अल्ट्रासाउंड होना संभव नहीं होता है. एक दिन में औसतन 40 से 50 अल्ट्रासाउंड होते हैं. डॉक्टरों के मुताबिक, अगर क्वांटिटी में बढ़ोतरी करेंगे तो जाहिर तौर पर क्वालिटी भी खराब होगी, यानी कि अल्ट्रासाउंड की संख्या में बढ़ोतरी होगी तो जल्दबाजी में अल्ट्रासाउंड की जो क्वालिटी है अच्छी नहीं होगी. जल्दबाजी में कभी-कभी इधर उधर हो जाता है.

सरकारी अस्पतालों में मरीजों की भीड़
सरकारी अस्पतालों में मरीजों की भीड़

सिविल अस्पताल के सीएमएस डॉ राजेश कुमार श्रीवास्तव के मुताबिक, 'रोजाना 40 से 45 अल्ट्रासाउंड किए जाते हैं, फिलहाल अस्पताल में दो रेडियोलॉजिस्ट तैनात हैं. तीन-तीन दिन दोनों रेडियोलॉजिस्ट की ड्यूटी होती है. अल्टरनेट बेस पर रेडियोलॉजिस्ट की ड्यूटी लगाई जाती है.'

सरकारी अस्पतालों में मरीजों की भीड़
सरकारी अस्पतालों में मरीजों की भीड़

वीरांगना झलकारी बाई महिला अस्पताल की सीएमएस डॉ. निवेदिता के मुताबिक, 'अस्पताल में मात्र एक रेडियोलॉजिस्ट हैं, जिसके कारण सिर्फ 40 से 50 के बीच में महिलाओं का अल्ट्रासाउंड हो पता है. अस्पताल में गर्भवती महिलाओं के अल्ट्रासाउंड की आवश्यकता को देखते हुए एक ओर रेडियोलॉजिस्ट के लिए स्वास्थ्य निदेशालय में लिखित पत्र भेजा गया है ताकि यहां पर रेडियोलॉजिस्ट की कमी को पूरा किया जा सके, वहीं बलरामपुर अस्पताल में चार रेडियोलॉजिस्ट डॉक्टर तैनात हैं. इमरजेंसी में जो भी मरीज आते हैं उनका अल्ट्रासाउंड हो जाता है, बाकी ओपीडी वाले मरीजों की भी अल्ट्रासाउंड के लिए अधिक मशक्कत नहीं होती है, क्योंकि यहां पर रेडियोलॉजिस्ट की पर्याप्त संख्या है.'

राजाजीपुरम निवासी धर्मेंद्र शुक्रवार को पेट दर्द की समस्या के साथ सिविल अस्पताल में इलाज के लिए पहुंचे. जहां पर जनरल फिजिशियन ने उनको अल्ट्रासाउंड के लिए लिखा, लेकिन अल्ट्रासाउंड काउंटर पर पहुंचने के बाद उन्हें अगले महीने की 14 तारीख दी गई. यानी कि सीधे एक महीने की तारीख मरीजों को अल्ट्रासाउंड के लिए दी जा रही है. बातचीत के दौरान धर्मेंद्र ने कहा कि 'एक महीने के बाद की तारीख मिली है, तब तक या तो इंतजार करना होगा या फिर बाहर से ही अल्ट्रासाउंड करा कर रिपोर्ट यहां पर विशेषज्ञ को दिखाएंगे.' वहीं एक और महिला मरीज दीप्ति कुमारी ने बताया कि 'अपेंडिक्स का दर्द उठने पर वह अस्पताल में फिजिशियन के पास पहुंचीं, जहां पर उन्हें सर्जन की ओपीडी में भेजा गया. वर्तमान स्थिति देखने के लिए अल्ट्रासाउंड के लिए लिखा, लेकिन मरीजों की अधिक संख्या का हवाला देते हुए अगले महीने की 24 तारीख अल्ट्रासाउंड के लिए दी गई.'



राजधानी के सिविल अस्पताल में महज दो रेडियोलॉजिस्ट हैं और यहां पर इलाज के लिए प्रदेश के अन्य जिलों से भी मरीज आते हैं. आलम यह होता है कि एक से चार महीने की तिथि अल्ट्रासाउंड के लिए मिलती है. ऐसे में कई मरीज जिन्हें स्टोन या अपेंडिस की शिकायत होती है, वह दर्द से परेशान रहते हैं या फिर निजी अस्पताल का सहारा लेते हैं. इसके अलावा राजधानी के महिला अस्पतालों में भी गर्भवती महिलाओं को भी लंबी तिथि अल्ट्रासाउंड के लिए मिलती हैं. स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, विभाग में 695 अल्ट्रासाउंड मशीनें हैं. यह जिला अस्पताल से लेकर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों तक लगाई गई हैं, लेकिन हर अस्पताल में रेडियोलॉजिस्ट नहीं हैं. प्रांतीय चिकित्सा सेवा संवर्ग में इन दिनों करीब 37 रेडियोलॉजिस्ट हैं. ऐसे में एक रेडियोलॉजिस्ट को दो से तीन सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की जिम्मेदारी दी गई है. वह दो-दो दिन अलग-अलग सीएचसी पर सेवाएं दे रहे हैं. उदाहरण के तौर पर शामली के सरकारी अस्पताल में जांच सुविधा न होने से लोगों को दूसरे अस्पताल जाना पड़ता है. इसी तरह मुजफ्फरनगर, अमरोहा, मुरादाबाद, संतकबीरनगर, चित्रकूट, मऊ आदि जिलों में मशीनें हैं, लेकिन संचालन नहीं हो रहा है. महराजगंज, बांदा, मऊ आदि जिलों में कहीं सप्ताह में दो दिन तो किसी सीएचसी पर एक दिन जांच की सुविधा दी जा रही है.

स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. दीपा त्यागी का कहना है कि 'जहां मशीनें लगी हैं. उनके संचालन के बारे में अधीक्षकों से रिपोर्ट मांगी गई है, वैकल्पिक व्यवस्था बनाई जा रही है.'

एमबीबीएस डॉक्टरों को दिया जाएगा प्रशिक्षण : उन्होंने बताया कि 'अस्पतालों में रेडियोलॉजिस्ट नहीं होने के कारण तमाम दिक्कतें होती हैं, इसलिए अब प्रदेश के एमबीबीएस डॉक्टरों को विभिन्न चिकित्सा संस्थानों में छह माह का रेडियो डायग्नोसिस प्रशिक्षण दिया जाएगा. फिर इन्हें अल्ट्रासाउंड जांच में लगाया जाएगा. प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले डॉक्टर सरकारी अस्पताल में गर्भवती महिलाओं के एब्डोमेनल अल्ट्रासाउंड करेंगे. काउंसिलिंग के जरिए चयनित 42 डॉक्टरों को नौ मेडिकल कॉलेजों में भेजा जाएगा. इसके जरिए कुछ रेडियोलॉजिस्ट डॉक्टर की कमी की पूर्ति होगी, क्योंकि प्रदेश के बहुत सारे अस्पतालों में लगातार रेडियोलॉजिस्ट डॉक्टरों की कमी के कारण मशीनें होते हुए भी जांच नहीं हो पाती है.'

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