लखनऊः मुगलों और नवाबों के कार्यकाल के दौरान हिंदुस्तान में कई ऐसी बेशकीमती और ऐतिहासिक इमारतें हैं जो आज भी देश की मुख्य धरोहरों में अपनी खास पहचान रखती हैं. जिसमें से लखनऊ का एक छोटा इमामबाड़ा भी शामिल है.
अनदेखी का शिकार हो रहा इमामबाड़ा
नवाबों के कार्यकाल के दौरान लखनऊ में बनवाया गया यह इमामबाड़ा बेहद खूबसूरत और धार्मिक स्थल भी है. जहां पर बड़ी संख्या में पर्यटकों के साथ कई बड़े धार्मिक आयोजन भी होते हैं. यह ऐतिहासिक इमामबाड़ा इन दिनों अनदेखी का शिकार होता जा रहा है. इस इमामबाड़े के खराब रख रखाव के चलते कई हिस्से दरकते जा रहे हैं, जिस पर हुसैनाबाद ट्रस्ट को ध्यान देने की जरूरत है.
क्या है छोटे इमामबाड़े का इतिहास
अवध के तीसरे नवाब मोहम्मद अली शाह ने यह इमामबाड़ा सन् 1837 में बनवाया था, जिसका मकसद लखनऊ की खूबसूरती में चार चांद लगाना तो था ही साथ ही शिया मुसलमानों की अजादारी के मकसद से इस इमामबाड़े का निर्माण कराया गया था. यहां पर मोहर्रम के दौरान कई बड़े धार्मिक जुलूस और मजलिस मातम के आयोजन होते हैं. साथ ही देश-विदेश से बड़ी संख्या में पर्यटक इस इमामबाड़े का दीदार करने आते हैं. पर्यटक इस इमामबाड़े की यादों को अपने साथ ले जाते हैं.
200 साल पुराना है इमामबाड़ा
लखनऊ में बनीं कई इमारतें ऐसी हैं जो धार्मिक स्थल के अलावा पर्यटकों की सैरगाह के लिए भी पसंदीदा मानी जाती हैं, जिसमे यह इमामबाड़ा भी शुमार है. वक्त के साथ-साथ तकरीबन 200 साल पुराना यह इमामबाड़ा खराब रख रखाव और मरम्मत के अभाव के चलते अपनी खूबसूरती खोता जा रहा है. इमामबाड़े के कई हिस्से ऐसे हैं जो बदहाली की दास्तां बयान कर रहे हैं.
देखभाल के लिए हुआ ट्रस्ट का गठन
इस इमामबाड़े की देखभाल के लिए 1839 में हुसैनाबाद ट्रस्ट का गठन किया गया था. ट्रस्ट की अनदेखी के चलते लखनऊ की बहुत सी इमारतें अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही हैं. ट्रस्ट की लापरवाही का असर इस इमामबाड़े पर भी देखने को मिल रहा है. ट्रस्ट की ओर से इस इमामबाड़े के रखरखाव को लेकर तमाम बंदोबस्त के दावे किए जाते हैं. फिर भी इस इमामबाड़े के कई गुम्बद और मीनार दरक रहे हैं. यही नहीं कई हिस्सों में प्लास्टर उखड़कर भी गिर चुका है.
शिया मुसलमानों में है नाराजगी
इमामबाड़े की बिगड़ती हालत पर जिम्मेदार बोलने से कतराते रहते हैं लेकिन इमामबाड़े के बेहतर रखरखाव के लिए कोई बेहतर कदम नहीं उठाते हैं. इमामबाड़े की इस हालत से शिया मुसलमानों में काफी नाराजगी है. वहीं इन इमारतों की बेहतर ढंग से देखभाल और रखरखाव के लिए सरकार से भी मांग होती रही है.
क्या कहते हैं जानकार
पुराने लखनऊ के रहने वाले और ऐतिहासिक इमारतों के जानकार हाजी हसन का कहना है कि ट्रस्ट में एक बड़ी रकम इन इमारतों से आती है. सरकार की ओर से भी इन इमारतों की देखरेख के लिए कड़े दिशा-निर्देश जारी होते रहते हैं. इसके बावजूद हुसैनाबाद ट्रस्ट की हीलाहवाली के चलते इन इमारतों की देख रेख सही से नहीं हो पाती है.
विदेशों में भी है इमामबाड़े की खास पहचान
हुसैनाबाद ट्रस्ट के अधीन आने वाली कई इमारतें अपना अस्तित्व खोती जा रही हैं. हाजी हसन का कहना है कि जरूरत इस बात की है कि इन इमारतों के रखरखाव के लिए और इनकी मरम्मत के लिए विशेष कदम उठाए जाएं. ताकि इन बेशकीमती धरोहरों को अपनी आने वाली नस्लों के लिए बचाया जा सके. यह इमारतें मुगलों और नवाबों के दौर की वो इमारते हैं, जो देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी खास पहचान रखती हैं.