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लखनऊ हाईकोर्ट: सार्वजनिक मार्गों पर बने धर्मस्थलों को हटाने के मामले में राज्य सरकार से रिपोर्ट तलब - कोर्ट ने राज्य सरकार से रिपोर्ट तलब की

हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने साल 2011 के बाद से सार्वजनिक मार्गों पर धर्मस्थलों के निर्माण को हटाए जाने को लेकर राज्य सरकार से जवाब तलब किया है. कोर्ट ने यह आदेश 2016 में दिया था, लेकिन मुख्य सचिव द्वारा अनुपालन न होने पर दोबारा से रिपोर्ट तलब की गई है.

लखनऊ हाईकोर्ट.
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Published : Feb 24, 2021, 10:57 PM IST

लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने सार्वजनिक मार्गों इत्यादि पर बने धर्मस्थलों को हटाने संबंधी अपने 3 जून 2016 के आदेश की अनुपालन रिपोर्ट राज्य सरकार से तलब की है. न्यायालय ने राज्य सरकार के अधिवक्ता को मुख्य सचिव व अन्य संबंधित अधिकारियों को इसकी जानकारी देने व दो सप्ताह के भीतर अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया है. मामले की अगली सुनवाई अब 17 मार्च को होगी. यह आदेश न्यायमूर्ति डीके उपाध्याय और न्यायमूर्ति मनीष कुमार की खंडपीठ ने लवकुश व अन्य की ओर से दाखिल की गई एक याचिका पर दिया. न्यायालय ने पाया कि उक्त याचिका पर 3 जून 2016 को न्यायालय ने आदेश में सात माह के अंदर मुख्य सचिव को अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने को कहा था, लेकिन अब तक रिपोर्ट नहीं दाखिल की गई है.

क्या था आदेश

न्यायालय ने 3 जून 2016 को जारी अपने आदेश में कहा था कि मुख्य सचिव सभी जिलाधिकारियों, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षकों और पुलिस अधीक्षकों को निर्देश जारी करें कि वे किसी भी सार्वजनिक मार्ग पर किसी भी प्रकार का धार्मिक निर्माण न होना सुनिश्चित करें. यदि 1 जनवरी 2011 या उसके बाद से इस प्रकार के निर्माण किसी सार्वजनिक मार्ग पर हुए हैं तो उसे हटाया जाए. साथ ही अनुपालन की रिपोर्ट संबंधित प्रमुख सचिव को भेजी जाए, जो दो माह के भीतर एक विस्तृत रिपोर्ट मुख्य सचिव को भेजेंगे. न्यायालय ने कहा था कि 1 जनवरी 2011 से पहले बने ऐसे निर्माण, जो सार्वजनिक मार्गों का अतिक्रमण करते हों, उन्हें एक योजना बनाकर स्थानांतरित किया जाए.

न्यायालय ने आदेश में कहा था कि 10 जून 2016 या उसके बाद सार्वजनिक मार्गों पर अतिक्रमण कर धार्मिक स्थल न बनने पाए. इसकी जिम्मेदारी सम्बंधित जिलाधिकारी, उप जिलाधिकारी, एसपी-एसएसपी और सीओ की होगी. आदेश का पालन न होने पर उक्त अधिकारी व्यक्तिगत तौर पर जिम्मेदार होंगे और आपराधिक अवमानना का जिम्मेदार होंगे. न्यायालय ने कहा था कि उक्त आदेश के अनुपालन की रिपोर्ट सात माह के पश्चात 7 जनवरी 2017 को मुख्य सचिव द्वारा न्यायालय में दाखिल की जाए.

इसके साथ ही राज्य सरकार को आदेश दिया था कि वह एक योजना बनाए, जिससे सुनिश्चित किया जा सके कि सार्वजनिक मार्गों या गलियों के यातायात के सुचारू प्रवाह में किसी भी धार्मिक गतिविधि की वजह से कोई बाधा न उत्पन्न होने पाए. इस प्रकार की धार्मिक गतिविधियां उन्हीं स्थानों पर हों, जो इसके लिए निर्धारित की गई हैं.

इतने साल बीत जाने के बाद भी न्यायालय के आदेश का अनुपालन नहीं हुआ. मुख्य सचिव ने न्यायालय में रिपोर्ट दाखिल नहीं की, जिसके एवज में कोर्ट ने बुधवार को राज्य सरकार से जवाब तलब किया है.

लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने सार्वजनिक मार्गों इत्यादि पर बने धर्मस्थलों को हटाने संबंधी अपने 3 जून 2016 के आदेश की अनुपालन रिपोर्ट राज्य सरकार से तलब की है. न्यायालय ने राज्य सरकार के अधिवक्ता को मुख्य सचिव व अन्य संबंधित अधिकारियों को इसकी जानकारी देने व दो सप्ताह के भीतर अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया है. मामले की अगली सुनवाई अब 17 मार्च को होगी. यह आदेश न्यायमूर्ति डीके उपाध्याय और न्यायमूर्ति मनीष कुमार की खंडपीठ ने लवकुश व अन्य की ओर से दाखिल की गई एक याचिका पर दिया. न्यायालय ने पाया कि उक्त याचिका पर 3 जून 2016 को न्यायालय ने आदेश में सात माह के अंदर मुख्य सचिव को अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने को कहा था, लेकिन अब तक रिपोर्ट नहीं दाखिल की गई है.

क्या था आदेश

न्यायालय ने 3 जून 2016 को जारी अपने आदेश में कहा था कि मुख्य सचिव सभी जिलाधिकारियों, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षकों और पुलिस अधीक्षकों को निर्देश जारी करें कि वे किसी भी सार्वजनिक मार्ग पर किसी भी प्रकार का धार्मिक निर्माण न होना सुनिश्चित करें. यदि 1 जनवरी 2011 या उसके बाद से इस प्रकार के निर्माण किसी सार्वजनिक मार्ग पर हुए हैं तो उसे हटाया जाए. साथ ही अनुपालन की रिपोर्ट संबंधित प्रमुख सचिव को भेजी जाए, जो दो माह के भीतर एक विस्तृत रिपोर्ट मुख्य सचिव को भेजेंगे. न्यायालय ने कहा था कि 1 जनवरी 2011 से पहले बने ऐसे निर्माण, जो सार्वजनिक मार्गों का अतिक्रमण करते हों, उन्हें एक योजना बनाकर स्थानांतरित किया जाए.

न्यायालय ने आदेश में कहा था कि 10 जून 2016 या उसके बाद सार्वजनिक मार्गों पर अतिक्रमण कर धार्मिक स्थल न बनने पाए. इसकी जिम्मेदारी सम्बंधित जिलाधिकारी, उप जिलाधिकारी, एसपी-एसएसपी और सीओ की होगी. आदेश का पालन न होने पर उक्त अधिकारी व्यक्तिगत तौर पर जिम्मेदार होंगे और आपराधिक अवमानना का जिम्मेदार होंगे. न्यायालय ने कहा था कि उक्त आदेश के अनुपालन की रिपोर्ट सात माह के पश्चात 7 जनवरी 2017 को मुख्य सचिव द्वारा न्यायालय में दाखिल की जाए.

इसके साथ ही राज्य सरकार को आदेश दिया था कि वह एक योजना बनाए, जिससे सुनिश्चित किया जा सके कि सार्वजनिक मार्गों या गलियों के यातायात के सुचारू प्रवाह में किसी भी धार्मिक गतिविधि की वजह से कोई बाधा न उत्पन्न होने पाए. इस प्रकार की धार्मिक गतिविधियां उन्हीं स्थानों पर हों, जो इसके लिए निर्धारित की गई हैं.

इतने साल बीत जाने के बाद भी न्यायालय के आदेश का अनुपालन नहीं हुआ. मुख्य सचिव ने न्यायालय में रिपोर्ट दाखिल नहीं की, जिसके एवज में कोर्ट ने बुधवार को राज्य सरकार से जवाब तलब किया है.

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