लखनऊ : पॉक्सो के एक मामले में विवेचक ने पीड़ित बच्चे का बिना मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान कराने के मामले में अभियुक्त के खिलाफ चर्जशीट दाखिल कर दिया. यही नहीं फॉरेंसिक जांच के संबंध में सैंपल संकलित करने के लिए पीड़ित को डॉक्टर के समक्ष घटना के 8 दिन बाद प्रस्तुत किया गया. कोर्ट ने इस लापरवाही पर संज्ञान लेकर विवेचक और विवेचना के पर्यवेक्षीय अधिकारी/सहायक पुलिस आयुक्त के खिलाफ कार्रवाही का आदेश दिया है. कोर्ट ने पर्यवेक्षीय अधिकारी/सहायक पुलिस आयुक्त को पत्र भेजने का निर्देश दिया है. यह आदेश पॉक्सो एक्ट के विशेष न्यायाधीश अरविंद मिश्रा ने मामले के अभियुक्त की जमानत अर्जी की सुनवाई के बाद दिया.
कोर्ट ने मजिस्ट्रेट बयान न होने की स्थिति में अभियुक्त की जमानत मंजूर कर ली.
ये है मामला :
मोहनलालगंज थाने में एक FIR दर्ज कराई गई थी. दर्ज FIR में कहा गया था कि 31 जनवरी 2022 को वादी के बेटे को खेलने के बहाने बुलाकर अभियुक्त ने जानवरों के बाड़े में उसके साथ दुष्कर्म किया है. जमानत अर्जी पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि 13 वर्षीय कुकर्म पीड़ित का कलम बंद बयान विवेचक द्वारा नहीं कराया गया है.
इसके अलावा फॉरेंसिक जांच के लिए नमूना संकलन के लिए भी पीड़ित बालक को 8 फरवरी 2022 को घटना के 8 दिनों बाद विवेचक द्वारा डॉक्टर के समक्ष ले जाया गया. कोर्ट ने कहा कि विवेचक ने नमूना अत्यधिक विलंब से संकलित कराया है. ऐसी स्थिति में इतने विलंब से संकलित किए गए नमूने में घटना के संबंध में कोई भी सहायक साक्ष्य प्राप्त करने की संभावना न्यूनतम हो जाती है. कोर्ट ने कहा कि इस केस में आरोप पत्र दिखिल हो चुका है. लिहाजा विवेचना में हस्तक्षेप की संभावना नहीं है. कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में यह भी कहा कि विवेचक के इस आचरण से अभियुक्त को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से लाभ मिला है.