लखनऊः गाजीपुर थाना क्षेत्र में 28 साल पहले महिला, उसके दो पुत्रों व पुत्री की नृशंस हत्या करने तथा पुत्री के साथ दुराचार करने के आरोपी बबलू सिंह भंडारी को अपर सत्र न्यायाधीश फूलचंद कुशवाहा ने बरी कर दिया है. कोर्ट ने पुलिस की लचर विवेचना और अभियोजन की सुस्ती पर भी सख्त टिप्पणियां की हैं.
अदालत ने कहा कि इस मामले में विवेचना अत्यंत ही लापरवाही पूर्ण तरीके से की गई है. कहा कि पुलिस ने अन्य अभियुक्त ताहिर हुसैन एवं धर्मेंद्र सिंह को जब गिरफ्तार किया था, तब न तो उनके फिंगर प्रिंट लिए और न ही उनकी डीएनए प्रोफाइलिंग कराई गई. अदालत ने कहा कि मृतका किरन के बिस्तर से मिले साक्ष्य से दुराचार की पुष्टि होती है. परंतु पुलिस ने किसी भी अभियुक्त की डीएनए प्रोफाइलिंग नहीं कराई, अगर विवेचक द्वारा अभियुक्तों का डीएनए बिस्तर पर मिले साक्ष्य से मिलान कराया जाता तो मामले में परिणाम दूसरा हो सकता था.
अदालत ने कहा कि इस मामले में मात्र दो गवाह पेश किए गए, जबकि अन्य गवाहों की उपस्थिति के लिए महानिदेशक अभियोजन व गृह सचिव को भी अनेकों पत्र कोर्ट द्वारा भेजे गए. अदालत ने अपने निर्णय की टिप्पणी में यह भी कहा है कि मुकदमे की केस डायरी भी गायब थी, जिसे उपलब्ध कराने के लिए अनेकों बार लिखा गया लेकिन वह भी उपलब्ध नहीं हो पाई.
क्या थी घटना?
घटना गाजीपुर थाना क्षेत्र की है, जहां पर 19 दिसंबर 1994 की रात में महिला व उसके दो पुत्रों के अलावा पुत्री की हत्या कर दी गई. इस घटना में पुत्री के साथ दुराचार किए जाने के साक्ष्य भी पुलिस को मिले थे. इस नृशंस हत्याकांड को अंजाम दिए का मुख्य कारण बताया गया कि घटना का एक आरोपी महिला की पुत्री से जबरन शादी करना चाहता था. आरोप था कि घटना के एक सप्ताह पहले महिला को आरोपी ने धमकी दी थी कि अगर उसकी पुत्री से उसकी शादी नहीं होगी तो वह पूरे परिवार का सफाया कर देगा. पत्नी से अलग रह रहे पति को उसके बेटे ने बताया था कि धनीराम वर्मा, धर्मेंद्र सिंह, बबलू भंडारी और ताहिर हुसैन मां से लड़ाई झगड़ा कर रहे हैं और कह रहे हैं कि पुत्री से शादी होकर रहेगी. इस मामले में पुलिस ने बबलू भंडारी, धनीराम वर्मा एवं ताहिर हुसैन के खिलाफ अदालत में हत्या एवं दुराचार को लेकर आरोप पत्र दाखिल किया था. इसके बाद ताहिर हुसैन फरार हो गया और धनीराम वर्मा की वर्ष 1999 में मृत्यु हो गई.