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कोरोना की मार ने बढ़ाया डॉक्टरों का मान, डॉक्टर्स डे पर खास बातचीत

एक तरफ जीवन बचाने की जंग तो दूसरी तरफ अपने घर परिवार की चिंता. इन दोनों का तालमेल बिठाकर डॉक्टर कोरोना संक्रमित मरीजों का इलाज कर रहे हैं. अपनी ड्यूटी निभाने के लिए ये डॉक्टर अपने घर और परिवार से भी दूर रह रहे हैं. डॉक्टर्स डे पर ईटीवी भारत ने इन्हीं में से एक कोरोना वार्ड में ड्यूटी कर चुके डॉक्टर सुधीर वर्मा से बातचीत की और उनसे कोरोना वार्ड के माहौल के बारे में जाना.

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Published : Jul 1, 2020, 10:46 PM IST

Updated : Jul 1, 2020, 11:33 PM IST

conversation with corona warriors doctor sudhir verma
कोरोना वॉरियर्स डॉक्टर सुधीर वर्मा.

लखनऊ: किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के मेडिसिन विभाग के डॉक्टर सुधीर वर्मा ने पहली बार कोरोना वायरस के संक्रमित मरीज के केजीएमयू में भर्ती होने पर अपनी ड्यूटी कोरोना वार्ड में निभाई थी. इसके बाद उन्होंने एक्टिव क्वारंटाइन के बाद पैसिव क्वारंटाइन की भूमिका भी निभाई थी. इतने लंबे समय तक घर परिवार से दूर रहकर मरीजों की लगातार सेवा करने के बाद डॉक्टर सुधीर आज भी मेडिसिन वार्ड में ड्यूटी कर रहे हैं. साथ ही कोरोना मरीजों के इलाज के लिए बनाए गए कोविड-19 हॉस्पिटल के डिप्टी मेडिकल सुपरिंटेंडेंट की भूमिका भी निभा रहे हैं.

मरीजों में कोरोना को लेकर भय का माहौल
ईटीवी भारत से बातचीत में डॉ. सुधीर ने बताया कि मार्च में जब कोरोना वायरस से संक्रमित पहली मरीज यहां भर्ती हुई थी, तब उन्होंने यहां पर ड्यूटी की थी. उस दौरान मरीजों में भय का माहौल था. उन्हें लगता था कि यदि एक बार कोरोना हो गया तो उनकी मौत निश्चित है. साथ ही डॉक्टरों में भी संक्रमण के फैलने का डर साफ तौर पर देखा जा रहा था. इस दौरान मैंने ड्यूटी करने का फैसला किया था. वह कहते हैं कि मेरी ड्यूटी पर जाने की बात सुनकर घर वालों को काफी चिंता हुई थी, तब उन्हें भी मैंने यही समझाया था कि यदि हम इनका इलाज नहीं करेंगे तो फिर कौन करेगा?

'पीपीई किट पहनने के बाद हम कुछ खा नहीं सकते'
डॉ. सुधीर बताते हैं कि वार्ड में ड्यूटी करने के दौरान लगभग साढे़ 6 घंटे तक पर्सनल प्रोटेक्शन इक्विपमेंट (PPE) को हमें पहनना पड़ता था. इसके पहनने और उतारने का एक निश्चित प्रोसीजर होता है. इस पीपीई किट को पहनने के बाद हम कुछ खा नहीं सकते थे, किसी से फोन पर बात नहीं कर सकते, एसी में नहीं बैठ सकते थे और साथ ही यह ऐसी किट है, जिससे हवा भी पास नहीं हो सकती थी. इसलिए जब भी किट उतारते थे, तो पूरी तरह से पसीने से भीगे हुए पाए जाते थे.

92 फीसद मरीज स्वस्थ होकर लौटे घर
डॉक्टर सुधीर ने बताया कि मई-जून की भीषण गर्मी में इस पीपीई किट को पहनने के दौरान काफी पसीना निकलता है और कई बार डॉक्टरों को डिहाइड्रेशन तक हो जाता है, लेकिन इसके बावजूद वे मरीजों के इलाज के लिए लगातार ड्यूटी करते हैं. उन्होंने बताया कि केजीएमयू में अब तक लगभग 250 मरीज भर्ती हो चुके हैं. इनमें से 92 प्रतिशत मरीजों को स्वस्थ होने के बाद डिस्चार्ज किया जा चुका है. वहीं जिन 08 प्रतिशत मरीजों की मौत हुई है, उनमें किसी तरह की क्रॉनिक डिजीज या फिर गंभीर बीमारी थी. इसके बावजूद उनके इलाज में कोई कसर नहीं छोड़ी गई.

ये भी पढ़ें: उत्तर प्रदेश में एक दिन में किए गए 26 हजार कोरोना टेस्ट

लगातार कोरोना मरीजों का कर रहे इलाज
डॉक्टर सुधीर कोरोना वायरस के संक्रमित मरीजों का इलाज करने वाली पहली टीम में शामिल थे. एक्टिव और पैसिव क्वारंटाइन की अवधि पूरी करने के बाद आज भी वे लगातार कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों के लिए काम कर रहे हैं. इसके अलावा वे मरीजों के साथ-साथ उनके तीमारदारों और अन्य डॉक्टर्स की टीम की हौसला अफजाई भी कर रहे हैं.

लखनऊ: किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के मेडिसिन विभाग के डॉक्टर सुधीर वर्मा ने पहली बार कोरोना वायरस के संक्रमित मरीज के केजीएमयू में भर्ती होने पर अपनी ड्यूटी कोरोना वार्ड में निभाई थी. इसके बाद उन्होंने एक्टिव क्वारंटाइन के बाद पैसिव क्वारंटाइन की भूमिका भी निभाई थी. इतने लंबे समय तक घर परिवार से दूर रहकर मरीजों की लगातार सेवा करने के बाद डॉक्टर सुधीर आज भी मेडिसिन वार्ड में ड्यूटी कर रहे हैं. साथ ही कोरोना मरीजों के इलाज के लिए बनाए गए कोविड-19 हॉस्पिटल के डिप्टी मेडिकल सुपरिंटेंडेंट की भूमिका भी निभा रहे हैं.

मरीजों में कोरोना को लेकर भय का माहौल
ईटीवी भारत से बातचीत में डॉ. सुधीर ने बताया कि मार्च में जब कोरोना वायरस से संक्रमित पहली मरीज यहां भर्ती हुई थी, तब उन्होंने यहां पर ड्यूटी की थी. उस दौरान मरीजों में भय का माहौल था. उन्हें लगता था कि यदि एक बार कोरोना हो गया तो उनकी मौत निश्चित है. साथ ही डॉक्टरों में भी संक्रमण के फैलने का डर साफ तौर पर देखा जा रहा था. इस दौरान मैंने ड्यूटी करने का फैसला किया था. वह कहते हैं कि मेरी ड्यूटी पर जाने की बात सुनकर घर वालों को काफी चिंता हुई थी, तब उन्हें भी मैंने यही समझाया था कि यदि हम इनका इलाज नहीं करेंगे तो फिर कौन करेगा?

'पीपीई किट पहनने के बाद हम कुछ खा नहीं सकते'
डॉ. सुधीर बताते हैं कि वार्ड में ड्यूटी करने के दौरान लगभग साढे़ 6 घंटे तक पर्सनल प्रोटेक्शन इक्विपमेंट (PPE) को हमें पहनना पड़ता था. इसके पहनने और उतारने का एक निश्चित प्रोसीजर होता है. इस पीपीई किट को पहनने के बाद हम कुछ खा नहीं सकते थे, किसी से फोन पर बात नहीं कर सकते, एसी में नहीं बैठ सकते थे और साथ ही यह ऐसी किट है, जिससे हवा भी पास नहीं हो सकती थी. इसलिए जब भी किट उतारते थे, तो पूरी तरह से पसीने से भीगे हुए पाए जाते थे.

92 फीसद मरीज स्वस्थ होकर लौटे घर
डॉक्टर सुधीर ने बताया कि मई-जून की भीषण गर्मी में इस पीपीई किट को पहनने के दौरान काफी पसीना निकलता है और कई बार डॉक्टरों को डिहाइड्रेशन तक हो जाता है, लेकिन इसके बावजूद वे मरीजों के इलाज के लिए लगातार ड्यूटी करते हैं. उन्होंने बताया कि केजीएमयू में अब तक लगभग 250 मरीज भर्ती हो चुके हैं. इनमें से 92 प्रतिशत मरीजों को स्वस्थ होने के बाद डिस्चार्ज किया जा चुका है. वहीं जिन 08 प्रतिशत मरीजों की मौत हुई है, उनमें किसी तरह की क्रॉनिक डिजीज या फिर गंभीर बीमारी थी. इसके बावजूद उनके इलाज में कोई कसर नहीं छोड़ी गई.

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लगातार कोरोना मरीजों का कर रहे इलाज
डॉक्टर सुधीर कोरोना वायरस के संक्रमित मरीजों का इलाज करने वाली पहली टीम में शामिल थे. एक्टिव और पैसिव क्वारंटाइन की अवधि पूरी करने के बाद आज भी वे लगातार कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों के लिए काम कर रहे हैं. इसके अलावा वे मरीजों के साथ-साथ उनके तीमारदारों और अन्य डॉक्टर्स की टीम की हौसला अफजाई भी कर रहे हैं.

Last Updated : Jul 1, 2020, 11:33 PM IST
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