लखनऊ: लॉकडाउन के 65 दिन जैसे-तैसे गुजर गए. चौथा फेज खत्म होते-होते कोरोना जिंदगी में और करीब आ गया. बड़े शहरों और दूसरे राज्यों में रोजी-रोटी कमा रहे 25 लाख मजदूर भी जान पर खेलकर अपने घर पहुंच चुके हैं. उत्तर प्रदेश के हर गांव में शहर को कमाने गए लोग आज भी आ रहे हैं. धूप में तपकर, भूख से लड़कर, रास्ते में मिली दो रोटी के एहसान भी कंधे पर ढोते आए हैं. पैरों के छाले, रेल की धक्का-मुक्की के साथ ही और न जाने कितनी दर्द भरी यादें भी साथ लाए हैं अपने गांव में.
क्या अब उनकी राज्य की सरकार इस दर्द को कम करेगी या फिर वह दोबारा पेट भरने के लिए उन्हीं शहरों की ओर दौड़ेंगे, जहां से उन्हें मजदूर से मजबूर बनना पड़ा. महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, कर्नाट्क, तेलंगाना, दिल्ली, पंजाब. कितने राज्यों का नाम लें, सभी ने कोरोना से जंग में यूपी से कमाने गए भाई-बहनों को रोड पर अकेला छोड़ दिया. ये राज्य वाले यह भूल गए कि कल तक इन्हीं मजदूरों के खून-पसीने से उनकी अर्थव्यवस्था चलती थी.
सोशल सिक्योरिटी सुनिश्चित करने का ऐलान
जब लौट आए हैं, तो उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने इनकी हालत की सुध ली. शायद योगी सरकार ने इस सत्य को जान लिया कि घर का बेटा रोटी के लिए दूसरे राज्यों में परदेसी तो बनता है, मगर परदेस में उसकी कद्र नहीं होती. इसलिए योगी आदित्यनाथ ने यूपी के मजदूरों को अपने प्रदेश में ही रोजगार देने और सोशल सिक्योरिटी सुनिश्चित करने का ऐलान कर दिया.
कांग्रेस नेताओं ने जताया ऐतराज
दूसरे प्रदेश से चोट खाकर लौटे मजदूरों को दोबारा उत्तर प्रदेश से बाहर नहीं भेजने की योगी ने जब मंशा जताई तो विरोधी भी सामने आ गए. सबने योगी की जमकर आलोचना की. कर्नाटक के कांग्रेस नेता डी. के. शिवकुमार ने तो योगी को राष्ट्रवाद का पाठ तक पढ़ा डाला.
राहुल गांधी ने तो यहां तक कह डाला कि हर भारतीय के पास देश में कहीं भी जाकर अपने सपने पूरे करने का अधिकार हैं. ये लोग उत्तर प्रदेश की संपत्ति नहीं हैं, बल्कि भारत के नागरिक हैं. मगर राहुल यह भूल गए कि जब पंजाब, महाराष्ट्र, राजस्थान से मजदूर अपने गांव यूपी-बिहार लौट रहे थे तो कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने उन्हें रोकने के इंतजाम नहीं किए. रोटी नहीं दी, दवाई नहीं दी, कम से कम बातों से तसल्ली भी नहीं दी. अरे, ये सभी रोड पर दर-दर की ठोकर खाने वाले भारत के नागरिक थे तो राज्यों की सरकारें भी भारत की सरकारें थीं.
राज ठाकरे ने महाराष्ट्र सीएम को लिखा खत
अब सुनिए राज ठाकरे को, जो पहले से यूपी-बिहार के लोगों को मुंबई पर बोझ बता चुके हैं. मनसे के कार्यकर्ता उनकी राजनीति के लिए मेहनतकशों को पीट चुके हैं. उनका कहना हे कि उत्तर प्रदेश के मजदूरों को महाराष्ट्र में काम के लिए मराठा सरकार से मंजूरी लेनी पड़ेगी. राज ठाकरे को तो प्रवासी मजदूरों का आईडी प्रूफ और पूरा ब्यौरा भी चाहिए.
फिलहाल कोरोना काल में मजदूरों की मजबूरी राज्यों के बीच विवाद की वजह बन गई है. विवाद बढ़ता देख यूपी सरकार के मीडिया एडवाइजर मृत्युंजय कुमार ने सफाई दी है. उन्होंने कहा- हमारी सरकार राज्य के लोगों को वापस लाना चाहती है, लेकिन ये पता नहीं चल पा रहा है कि हमारे प्रदेश के कितने लोग कहां-कहां फंसे हैं. आने वाले वक्त में कोई अप्रिय घटना उनके साथ घटित होती है तो हमारे पास उसकी जानकारी होनी चाहिए. दरअसल ये पूरी प्रक्रिया मैपिंग की है, न कि अनुमति देने की है.
कोरोना संकटकाल में हालात नाजुक हैं. सवाल सिर्फ मजदूरों की जिंदगी का नहीं है. सवाल है उनकी सुरक्षा का, उनके आत्मसम्मान का. योगी सरकार अगर उन्हे अपने गांव में, अपने राज्य में दो जून की रोटी दिलवा दें तो कौन बेटा अपनी मां का आंचल छोड़कर जाना चाहेगा.