लखनऊ : लोकसभा चुनावों की तारीखें जैसे-जैसे नजदीक आती जा रही हैं, राजनीतिक दल उसी के अनुसार अपना चुनावी एजेंडा सेट कर रहे हैं. लंबे अरसे से समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य हिंदू देवी-देवताओं को लेकर ऐसी टिप्पणियां करते रहे हैं, जिससे बहुसंख्यक हिंदू नाराज हैं. चाहे रामचरित मानस का विषय हो या हिंदू देवियों का प्रकरण, स्वामी प्रसाद बयान पर बयान देते रहे. इसके बावजूद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव में कभी उन्हें रोकने का प्रयास नहीं किया. उन्होंने बयानों को स्वामी प्रसाद मौर्य की निजी टिप्पणी बताते हुए प्रकरण से किनारा कर लिया था. हालांकि अब अखिलेश यादव के रुख में परिवर्तन दिखाई दे रहा है. स्वाभाविक है कि चुनाव नजदीक देख अखिलेश यादव ने रुख बदला है.
अखिलेश ने कहा-धर्म और जाति पर टिप्पणियों अनुचित |
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स्वामी की देवी-देवताओं पर टिप्पणी : गौरतलब है कि विगत माह स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा था 'विश्व में हर जाति-धर्म, नस्ल, रंग और देश में पैदा होने वाले बच्चे के दो हाथ, दो पैर, दो आंखें, दो छिद्रों वाली नाक के साथ एक सिर, पेट और पीठ ही होती है. चार और आठ हाथ वाला बच्चा आज तक पैदा नहीं हुआ. फिर चार हाथ वाली लक्ष्मी देवी कैसे पैदा हो सकती हैं. यदि देवी लक्ष्मी की पूजा करनी ही है, तो अपनी घरवाली की पूजा करें और सम्मान करें. सही मायने में वही देवी है. उसी की पूजा और सम्मान करें. इससे पहले उन्होंने हिंदू धर्म के विषय में कहा था कि 'हिंदू फारसी का शब्द है. फारसी में इसका मतलब चोर, नीच और अधम होता है. इसे धर्म कैसे माना जा सकता है. रामचरित मानस पर भी स्वामी ने विवादित बयान दिया था. तब उन्होंने कहा था कि रामचरित मानस में कुछ चौपाइयां अपत्तिजनक हैं, सरकार उन्हें हटा दे या रामचरितमानस को बैन कर दिया जाए. इससे पहले भी स्वामी प्रसाद मौर्य कई बार हिंदुओं की भावनाओं को आहत करने वाले बयान देते रहे हैं.
स्वामी प्रसाद मौर्य का साहस नहीं कि कुछ अनर्गल बोलें : राजनीतिक विश्लेषक डॉ. प्रदीप यादव कहते हैं कि पिछले एक-डेढ़ साल से स्वामी प्रसाद मौर्य जिस तरह से हिंदू विरोधी भावनाएं भड़काने वाले बयान दे रहे हैं. यह सोचना कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव इससे अनजान और असहमत रहे होंगे, यह सोचना सही नहीं है. अखिलेश यादव की शह पर ही स्वामी प्रसाद मौर्य एक वर्ग को खुश करने वाले बयान दे रहे थे. अब जबकि लोकसभा चुनाव आने वाले हैं, ऐसे में अखिलेश इस तरह के बयान जारी रहें, ऐसा नहीं चाहेंगे. उन्हें लगता है कि ऐसे बयानों से उन्हें जो लाभ मिलना था, वह मिल गया है. अब उनके कहने के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य का साहस नहीं होगा कि वह विवादित बयानबाजी करें. हिंदुओं के विषय में कहा जाता रहा है कि इस समुदाय की याददाश्त कमजोर होती है और इस समुदाय के लोग जल्दी ही सारी बातें भूल जाएंगे और सपा को इससे चुनावी नुकसान नहीं होगा. हालांकि यह सोचना अखिलेश यादव की भूल हो सकती है. अब जबकि राम मंदिर के लोकार्पण का समय नजदीक और प्रदेश में हिंदुत्व का माहौल बन रहा है. ऐसे में सपा के लिए हिंदुओं की भावनाएं आहत करना महंगा पड़ सकता है.
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