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लखनऊ: लेसा की मनमानी का शिकार हो रहे उपभोक्ता - arbitrary electricity bill

राजधानी के दुबग्गा उपकेंद्र में एक बिजली उपभोक्ता पिछले छह माह से ज्यादा समय से अपना बिल रिवाइज करने के लिए उपकेंद्र के चक्कर काट रहा है. लेकिन अधिकारी उपभोक्ता को इधर से उधर दौड़ा रहे हैं, कोई सुनवाई नहीं हो रही.

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हाल-ए-बिजली विभाग, उपभोक्ता त्रस्त, अधिकारी मस्त.
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Published : Oct 23, 2020, 8:49 AM IST

लखनऊ: एक तरफ बिजली का स्मार्ट मीटर उपभोक्ताओं के जी का जंजाल बना हुआ है, वहीं दूसरी तरफ विभाग में सुधार को लेकर तीन महीने के लिए टले निजीकरण के बावजूद अधिकारी सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं. उपभोक्ता अपनी समस्या को लेकर उपकेंद्रों को चक्कर लगाकर थक चुके हैं लेकिन अधिकारी हीलाहवाली से बाज नहीं आ रहे हैं.

ताजा मामला राजधानी के दुबग्गा उपकेंद्र से जुड़ा हुआ है. जहां पर उपभोक्ता पिछले छह माह से ज्यादा समय से अपना बिल रिवाइज करने के लिए उपकेंद्र के चक्कर काट रहा है. लेकिन अधिकारी उपभोक्ता को इधर से उधर दौड़ा रहे हैं. यही नहीं उच्चाधिकारियों से शिकायत के बावजूद भी सुनवाई नहीं हो रही है.

उपभोक्ता प्रशांत बाजपाई ने बताया कि हमारा घर दुबग्गा में पड़ता है. जहां पर दुबग्गा पावर हाउस के एसडीओ विवेक तिवारी से कई बार हमने अपनी समस्या बताई, लेकिन उन्होंने हमारी समस्या का कोई भी समाधान नहीं किया. दरअसल, प्रशांत बाजपेई के घर पर सौर ऊर्जा का प्लांट लगा हुआ है. आउटपुट और इनपुट के दो मीटर लगे हुए हैं. जोकि प्रशांत बाजपाई का बिजली का बिल 28 हजार लगभग बना है. जिसमें सौर ऊर्जा ने जो विद्युत बनाई है उसकी लागत 22 हजार के लगभग आ रही है.

उनका कहना यह था कि 28 हजार में से इस 22 हजार को घटाकर जितना भी शेष बिल बचता है उसे जमा कर दिया जाए. लेकिन एसडीओ उनकी बात सुनने के लिए तैयार नहीं हुए. प्रशांत आज 6 महीने से विद्युत उप केंद्र के चक्कर लगा रहे हैं. बड़ी बात तो यह है कि आज उनके घर का बिजली कनेक्शन काट दिया गया. जिससे उनका पूरा परिवार आज अंधेरे में सोने पर मजबूर है. उनके घर में पीने के लिए एक बूंद पानी नहीं है.

मामला उच्च अधिकारियों के संज्ञान में होने के बावजूद अभी तक किसी भी तरह की कार्रवाई नहीं की गई और न ही उनके घर का बिजली का कनेक्शन जोड़ा गया है. बड़ी बात तो यह है कि जब लेसा चीफ मधुकर वर्मा से बात की गई तो उन्होंने बताया कि एसडीओ को काल ट्राई करता हूं यदि मेरा फोन उठा लेते हैं तो मैं बात करता हूं. जब लेसा चीफ का फोन एसडीओ साहब नहीं उठाते हैं तो आम लोगों का फोन क्या उठाते होंगे. इससे साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ जब तक कोई ठोस कार्यवाही नहीं की जाएगी. तब तक उपभोक्ता शायद ऐसे ही दर बदर की ठोकरें खाने पर मजबूर रहेंगे.

लखनऊ: एक तरफ बिजली का स्मार्ट मीटर उपभोक्ताओं के जी का जंजाल बना हुआ है, वहीं दूसरी तरफ विभाग में सुधार को लेकर तीन महीने के लिए टले निजीकरण के बावजूद अधिकारी सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं. उपभोक्ता अपनी समस्या को लेकर उपकेंद्रों को चक्कर लगाकर थक चुके हैं लेकिन अधिकारी हीलाहवाली से बाज नहीं आ रहे हैं.

ताजा मामला राजधानी के दुबग्गा उपकेंद्र से जुड़ा हुआ है. जहां पर उपभोक्ता पिछले छह माह से ज्यादा समय से अपना बिल रिवाइज करने के लिए उपकेंद्र के चक्कर काट रहा है. लेकिन अधिकारी उपभोक्ता को इधर से उधर दौड़ा रहे हैं. यही नहीं उच्चाधिकारियों से शिकायत के बावजूद भी सुनवाई नहीं हो रही है.

उपभोक्ता प्रशांत बाजपाई ने बताया कि हमारा घर दुबग्गा में पड़ता है. जहां पर दुबग्गा पावर हाउस के एसडीओ विवेक तिवारी से कई बार हमने अपनी समस्या बताई, लेकिन उन्होंने हमारी समस्या का कोई भी समाधान नहीं किया. दरअसल, प्रशांत बाजपेई के घर पर सौर ऊर्जा का प्लांट लगा हुआ है. आउटपुट और इनपुट के दो मीटर लगे हुए हैं. जोकि प्रशांत बाजपाई का बिजली का बिल 28 हजार लगभग बना है. जिसमें सौर ऊर्जा ने जो विद्युत बनाई है उसकी लागत 22 हजार के लगभग आ रही है.

उनका कहना यह था कि 28 हजार में से इस 22 हजार को घटाकर जितना भी शेष बिल बचता है उसे जमा कर दिया जाए. लेकिन एसडीओ उनकी बात सुनने के लिए तैयार नहीं हुए. प्रशांत आज 6 महीने से विद्युत उप केंद्र के चक्कर लगा रहे हैं. बड़ी बात तो यह है कि आज उनके घर का बिजली कनेक्शन काट दिया गया. जिससे उनका पूरा परिवार आज अंधेरे में सोने पर मजबूर है. उनके घर में पीने के लिए एक बूंद पानी नहीं है.

मामला उच्च अधिकारियों के संज्ञान में होने के बावजूद अभी तक किसी भी तरह की कार्रवाई नहीं की गई और न ही उनके घर का बिजली का कनेक्शन जोड़ा गया है. बड़ी बात तो यह है कि जब लेसा चीफ मधुकर वर्मा से बात की गई तो उन्होंने बताया कि एसडीओ को काल ट्राई करता हूं यदि मेरा फोन उठा लेते हैं तो मैं बात करता हूं. जब लेसा चीफ का फोन एसडीओ साहब नहीं उठाते हैं तो आम लोगों का फोन क्या उठाते होंगे. इससे साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ जब तक कोई ठोस कार्यवाही नहीं की जाएगी. तब तक उपभोक्ता शायद ऐसे ही दर बदर की ठोकरें खाने पर मजबूर रहेंगे.

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