लखनऊ. उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के वक़्त जब सभी पार्टियां खुद को मजबूत करने में जुटी हैं, कांग्रेस पार्टी के वोटर और इसके बड़े नेता लगातार पार्टी का दामन छोड़ते जा रहे हैं. उत्तर प्रदेश में पार्टी से पीढ़ियों से जुड़े परिवार और इनके नेता भी लगातार दूर हो रहे हैं. इसका नतीजा यह है कि कांग्रेस चुनाव में पहले ही बैकफुट पर नजर आने लगी है. पूर्वांचल में कांग्रेस पार्टी के बड़े चेहरे के रूप में आरपीएन सिंह ने मंगलवार को कांग्रेस का 'हाथ' छोड़कर बीजेपी का कमल खिलाने का संकल्प ले लिया.
राजनीति की खानदानी विरासत को आगे बढ़ाने वाले आरपीएन दूसरी पीढ़ी के नेता थे जो कांग्रेस पार्टी से जुड़े थे. इससे पहले दूसरी पीढ़ी के ही नेता जितिन प्रसाद ने भी कांग्रेस का दामन छोड़कर भाजपा का साथ कर लिया था. उधर, बनारस में भी कांग्रेस के कद्दावर राजनीतिक घराने की चौथी पीढ़ी के नेता ललितेश पति त्रिपाठी ने कांग्रेस को अलविदा कह दिया. पीढ़ियों वाले नेताओं के पार्टी का दामन छोड़ने से कांग्रेस का हाथ कमजोर होता जा रहा है.
कुंवर आरपीएन सिंह
कुंवर आरपीएन सिंह कांग्रेस पार्टी के उत्तर प्रदेश में जाने-पहचाने चेहरे हैं. कांग्रेस पार्टी से उनका ताल्लुक बचपन से ही है क्योंकि उनके पिता सीपीएन सिंह सांसद रहे और केंद्र की इंदिरा गांधी सरकार में रक्षा राज्य मंत्री भी रहे. कुल मिलाकर कांग्रेस की गोद में ही आरपीएन सिंह ने राजनीति का ककहरा सीखा.
हालांकि अब उन्होंने इस परिवार की परंपरा को तोड़ दिया. कांग्रेस छोड़ आरपीएन सिंह बीजेपी के हो गए. आरपीएन के राजनीतिक करियर की बात की जाए तो वह 1997 से लेकर 1999 तक यूथ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे और ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के सचिव भी रहे.
15वीं लोकसभा में वह सांसद बने और कांग्रेस के मंत्रिमंडल में उन्हें सड़क परिवहन एवं राष्ट्रीय राजमार्ग राज्यमंत्री बनाया गया. इसके अलावा पेट्रोलियम राज्यमंत्री और केंद्रीय गृह राज्य मंत्री भी रहे. कुशीनगर की पडरौना विधानसभा से 1997 से लेकर 2009 तक विधायक रहे.
इसके बाद इसी क्षेत्र से सांसद बने. वर्तमान में वे झारखंड के प्रदेश प्रभारी थे और राष्ट्रीय प्रवक्ता भी. हालांकि अब उन्होंने कांग्रेस का मोह त्यागकर बीजेपी में जाना ही भविष्य के लिए बेहतर समझा. इस तरह पूर्वांचल में कांग्रेस को वे जोर का झटका दे गए.
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ललितेश पति त्रिपाठी
पूर्वांचल में जब ललितेश पति त्रिपाठी ने कांग्रेस का साथ छोड़ा तो उत्तर प्रदेश की राजनीति में यह चर्चा का विषय बन गया. कारण साफ था कि ये घराना कई दशकों से कांग्रेस पार्टी से जुड़ा हुआ था. ललितेश पति त्रिपाठी इस परिवार की चौथी पीढ़ी थे जो कांग्रेस का हिस्सा रहे लेकिन आखिर में उपेक्षा का आरोप लगाते हुए उन्होंने कांग्रेस को छोड़कर तृणमूल कांग्रेस की सदस्यता ले ली.
ललितेश ने कांग्रेस से इस परिवार की 100 साल पुरानी परंपरा तोड़ दी. त्रिपाठी घराने ने 100 साल तक कांग्रेस पार्टी का साथ कभी नहीं छोड़ा था. ललितेश के बाबा कमलापति त्रिपाठी मिर्जापुर के मझवां सीट से चुनाव लड़ा करते थे. यहीं से विधायक से लेकर उत्तर प्रदेश के सीएम की कुर्सी तक की यात्रा तय करने में सफल हुए. इसके बाद ललितेश के बाबा लोकपति त्रिपाठी ने भी इसी सीट से अपनी पॉलिटिक्स का आगाज किया और विधायक बने.
उसके बाद ललितेश पति त्रिपाठी के पिता राजेश पति त्रिपाठी विधान परिषद सदस्य बने. इसके बाद ललितेश त्रिपाठी खुद मैदान में उतरे और 2012 में मड़िहान से विधायक बने उन्होंने लोकसभा चुनाव भी लड़ा लेकिन जब कांग्रेस में खुद को उपेक्षित महसूस करने लगे तो ललितेश ने भी इस परंपरा को तोड़ते हुए तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया.
जितिन प्रसाद
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के लिए ब्राह्मण चेहरे के तौर पर पहचान रखने वाले जितिन प्रसाद को भी कांग्रेस के नेताओं की उपेक्षा ने पार्टी छोड़ने पर मजबूर कर दिया. जितिन का परिवार भी कांग्रेस पार्टी से कई वर्षों से जुड़ा हुआ था. जितिन दूसरी पीढ़ी के नेता थे जो इस पार्टी से जुड़े थे. जितिन प्रसाद के पिता जितेंद्र प्रसाद थे जो इंदिरा गांधी के काफी करीबी रहे. जितेंद्र प्रसाद का राजनीतिक करियर 1970 में विधान परिषद सदस्य के रूप में शुरू हुआ.
पांचवीं लोकसभा में शाहजहांपुर से सांसद बने. इसके बाद 1980 और 1984 में भी यहां से चुनाव जीते. राज्यसभा सांसद 1994 में बने फिर 1999 में भी वे संसद पहुंचे. कांग्रेस सरकार में केंद्रीय मंत्री भी बने.
इसके बाद उनके बेटे जितिन प्रसाद का भी राजनीतिक करियर शुरू हो गया. साल 2001 में जितिन प्रसाद भारतीय युवा कांग्रेस के सचिव बने. साल 2004 में शाहजहांपुर लोकसभा सीट से जितिन ने लोकसभा चुनाव में विजय हासिल की और संसद पहुंच गए.
2008 में केंद्र की कांग्रेस सरकार में केंद्रीय इस्पात राज्य मंत्री बन गए. साल 2009 में धौरहरा से चुनाव लड़े और फिर से जीत हासिल की. इसके बाद उन्हें कांग्रेस सरकार में उन्हें सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री बनाया गया.
2011 से 2012 तक पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री रहे और 2012 से 2014 तक मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय उनके पास रहा. इसके बाद कांग्रेस पार्टी के साथ ही जितिन प्रसाद की भी स्थिति कमजोर होने लगी.
पार्टी में उनकी अनदेखी भी हुई. हालांकि पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी ने उन्हें प्रभारी बनाया लेकिन जितिन को महसूस होने लगा कि पार्टी उन्हें पश्चिम बंगाल जैसे राज्य का प्रभारी बनाकर उनका राजनीतिक करियर खत्म करना चाहती है.
इसके बाद जितिन ने अलग ही रास्ता अपना लिया. पार्टी से पीढ़ियों के जुड़ाव को तोड़ते हुए जितिन भगवा रंग में रंग गए. भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ली और उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री बन गए. उनके जाने से कांग्रेस पार्टी को बड़ा झटका लगा.
कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस पार्टी के लिए बेहद अहम माने जाने वाले पीढ़ियों वाले इन परिवारों का ताल्लुक पार्टी से खत्म हो गया है. इससे इन नेताओं का तो स्वार्थ सिद्ध हो सकता है लेकिन कांग्रेस पार्टी को विधानसभा चुनाव में बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है. यूपी में ऐसे नेताओं का पार्टी का साथ छोड़ने से राजनीतिक संदेश भी बिल्कुल अच्छा नहीं जा रहा है. पार्टी की विश्वसनीयता पर भी प्रश्नचिह्न लग रहे हैं.