लखनऊ : अगले साल लोकसभा के चुनाव होने हैं. इसे लेकर प्रदेश में सभी दल अपनी-अपनी तैयारी में जुट गए हैं, लेकिन देश की सत्ता में दोबारा आने का सपना देख रही कांग्रेस उत्तर प्रदेश में निष्क्रिय दिखाई देती है. हार पर हार मिलने के बावजूद पार्टी उत्तर प्रदेश में संगठन को सुधारने का कोई भी निर्णय समय पर नहीं ले पा रही है. मार्च 2022 में हुए विधानसभा चुनावों में करारी हार के बाद तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया था. पार्टी को नया प्रदेश अध्यक्ष घोषित करने में छह महीने से ज्यादा का वक्त लग गया. नए प्रदेश अध्यक्ष को आठ महीने से ज्यादा का वक्त बीत चुका है और पर राज्य का संगठन नहीं बना पाए हैं. ऐसे में लोकसभा चुनावों के लिए कांग्रेस की स्थिति समझी जा सकती है.
लंबे इंतजार के बाद अक्टूबर 2022 में कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने बृजलाल खाबरी को उत्तर प्रदेश का नया अध्यक्ष बनाया, नसीमुद्दीन सिद्दीकी को पश्चिम क्षेत्र का प्रांतीय अध्यक्ष, अजय राय को प्रयागराज क्षेत्र का प्रांतीय अध्यक्ष, नकुल दुबे को अवध क्षेत्र का प्रांतीय अध्यक्ष, विधायक वीरेंद्र चौधरी को पूर्वांचल का क्षेत्रीय अध्यक्ष, योगेश दीक्षित को बृज क्षेत्र का प्रांतीय अध्यक्ष और अनिल यादव को बुंदेलखंड और कानपुर क्षेत्र का प्रांतीय अध्यक्ष बनाया गया. इन नामों की घोषणा करते समय केंद्रीय नेतृत्व ने सभी जातीय समीकरणों का ध्यान रखा. इससे उम्मीद की जाने लगी कि प्रदेश अध्यक्ष और प्रांतीय अध्यक्ष मिलकर ध्वस्त हो चुका पार्टी का संगठन फिर से मजबूत करेंगे. हालांकि यह उम्मीद कोरी ही साबित हुई. पार्टी में भीतरी राजनीति इस कदर हावी है कि प्रदेश अध्यक्ष कोई निर्णय ही नहीं कर पाते. कई अन्य नेता सीधे ऊपर से फरमान ले आते हैं. कई नेता इसलिए खफा हैं कि उन्हें प्रियंका गांधी के निजी सचिव से 'तकलीफ' है. पार्टी में और भी कई तरह की राजनीति है. ऐसे में लोकसभा की तैयारी का होश किसे है.
कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव और उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी भी जैसे उत्तर प्रदेश को भूल गई हैं. जुलाई 2022 के बाद वह प्रदेश कांग्रेस कार्यालय तक नहीं आई हैं. ऐसे में पार्टी की स्थिति का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है. वह 2019 के लोकसभा चुनावों से ठीक पहले राजनीति में सक्रिय हुई थीं. उस समय उन्हें पूर्वी उत्तर प्रदेश का जिम्मा देते हुए पार्टी महासचिव बनाया गया था. बाद में वह उत्तर प्रदेश की प्रभारी बनीं और 2022 के विधानसभा चुनावों में पार्टी के लिए खूब प्रचार भी किया. हालांकि इस चुनाव में पार्टी की बहुत बुरी हार हुई. प्रदेश में पार्टी की हार क्यों हुई, इस हार के सबक क्या रहे और कारणों की मीमांसा कर सुधार कैसे किया जाए, यह सोचने की बजाय नेतृत्व हाथ पर हाथ धरे बैठा है. फिर लोकसभा चुनाव में चमत्कार भला कैसे होगा.
उत्तर प्रदेश से लोकसभा में भी कांग्रेस की बहुत बुरी स्थिति है. सोनिया गांधी प्रदेश में कांग्रेस की एक मात्र सांसद हैं जो रायबरेली विधानसभा सीट से 2019 में चुनाव जीती थीं. वहीं 2022 के विधानसभा चुनावों में पार्टी के सिर्फ दो नेता जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. इनमें प्रतापगढ़ की रामपुर खास विधानसभा सीट से आराधना मिश्रा तीसरी बार विधायक बनकर आई थीं, जबकि महाराजगंज जिले की फरेंदा विधानसभा सीट से वीरेंद्र चौधरी विधायक बने थे. उत्तर प्रदेश से राज्यसभा में कांग्रेस का कोई सदस्य नहीं है और पार्टी का यही हाल विधान परिषद में भी है. अब कहा जा रहा है कि पार्टी प्रदेश में नया संगठन बनाने की सोच रही है. हालांकि समय पर न उठाया गया कोई भी कदम प्रभावी नहीं होता.
कर्नाटक में पूर्ण बहुमत से मिली जीत से कांग्रेस उत्साहित है और निश्चित रूप से उत्तर प्रदेश में संगठन में सुधार के लिए पार्टी जल्दी ही कोई कदम उठा सकती है, क्योंकि केंद्र में सत्ता पाने का सपना बिना उत्तर प्रदेश में अच्छा प्रदर्शन किए साकार नहीं हो सकता. यह कहना है राजनीतिक विश्लेषक डॉ. प्रदीप यादव का. डॉ. प्रदीप कहते हैं कि कांग्रेस नेतृत्व देख चुका है कि प्रियंका गांधी 2019 और 2022 में कोई करिश्मा नहीं कर पाई हैं. ऐसे में पार्टी कोई नया दांव खेल सकती है. यह जरूर है कि पार्टी निर्णय करने में देर करती है, लेकिन शायद इस बार वह यह गलती न दोहराए. क्योंकि देश में भाजपा विरोधी गठजोड़ बन रहा है. स्वाभाविक है कि कांग्रेस की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका होगी. ऐसे में पार्टी उत्तर प्रदेश को भला कमजोर कैसे छोड़ सकती है.