लखनऊ: उत्तर प्रदेश की सियासत में 3 दशक बाद अपने पैर जमाकर हाथ मजबूत करने की कोशिश कर रही कांग्रेस पार्टी की मेहनत रंग नहीं ला पा रही है. अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले सेमीफाइनल के तौर पर देखे जा रहे पंचायत चुनाव में भी कांग्रेस पार्टी कोई करिश्मा नहीं कर पाई. पार्टी के बयानवीर नेता पंचायत चुनाव में बेहतरीन प्रदर्शन का दम भरते रहे, लेकिन जब नतीजे आए तो उनके दावों की हवा निकल गई. नेता 'शिखर' पर पहुंचने का दावा कर रहे थे लेकिन पार्टी 'शून्य' पर रह गई. जिला पंचायत सदस्य का चुनाव हो या जिला पंचायत अध्यक्ष का या फिर ब्लॉक प्रमुख का. यूपी में कांग्रेस की हर जगह किरकिरी ही हुई है. खास बात ये भी है कि पंचायत चुनावों में कांग्रेस पार्टी ने पानी की तरह करोड़ों रुपए बहाए, लेकिन इसका भी पार्टी को कोई प्रतिफल नहीं मिला.
अपना दामन साफ करने में जुटे नेता
उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव से पहले कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने दावा किया था कांग्रेस पार्टी इन चुनावों में बेहतरीन प्रदर्शन करेगी और 2022 में यूपी में कांग्रेस अपनी सरकार बनाएगी. पंचायत चुनाव हुए और नतीजे भी आ गए. कांग्रेस की हालत पूरे प्रदेश में खस्ता की खस्ता ही रह गई. ऐसे में खुद को दोष देने के बजाय कांग्रेस पार्टी के नेता अब पूरी तरह सरकारी मशीनरी पर ही दोषारोपण कर अपना दामन साफ करने में जुटे हुए हैं.
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी के कितने जिला पंचायत सदस्य बने हैं? जब इस बारे में पार्टी नेताओं से अधिकृत आंकड़ा मांगा जा रहा है तो जिलों पर टालकर मुख्यालय पल्ला झाड़ रहा है. यानी कांग्रेस पार्टी के पास जिला पंचायत सदस्यों की जीत का आंकड़ा तक मौजूद नहीं है. जबकि दम भरा जा रहा है कि 270 से ऊपर जिला पंचायत सदस्य कांग्रेस पार्टी के हैं. इतना ही नहीं पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष यह भी दावा करते हैं कि 500 से ज्यादा सीटों पर कांग्रेस पार्टी दूसरे नंबर पर रही जबकि 700 से ज्यादा सीट पर तीसरे नंबर पर पार्टी प्रत्याशी रहे हैं, लेकिन पार्टी के अंदर ही यह चर्चा है कि दूसरे और तीसरे नंबर पर रहने से विधानसभा चुनाव के नतीजे पार्टी के पक्ष में नहीं आ सकते हैं, ऐसे में इनकी गणना करना भी निरर्थक है.
लखनऊ में 25 सीटों पर उतारे प्रत्याशी
कांग्रेस पार्टी ने लखनऊ की 25 सीटों पर जिला पंचायत सदस्य प्रत्याशी मैदान में उतारे थे, लेकिन एक भी प्रत्याशी जीत की दहलीज तक कदम नहीं रख सका. हालांकि लखनऊ के लिए यह सुखद स्थिति हो सकती है कि कांग्रेस पार्टी का मत प्रतिशत बढ़ गया है. इसके पीछे पार्टी के जिला अध्यक्ष वेद प्रकाश त्रिपाठी की अपनी मेहनत रही है न कि प्रदेश नेतृत्व का कोई समर्थन.
सोनिया की सीट पर भी न जीत पाया जिला पंचायत अध्यक्ष
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू के नेतृत्व में कितनी मेहनत कर रही है और इसका नतीजा क्या निकल रहा है. इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी की रायबरेली सीट पर तक कांग्रेस पार्टी जिला पंचायत अध्यक्ष नहीं जिता पाई. बाकायदा इसके लिए प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू प्रत्याशी के समर्थन में मैदान में उतरे थे. पूरे प्रदेश में जिला पंचायत अध्यक्ष की एक सीट भी कांग्रेस पार्टी के खाते में नहीं आई. करोड़ों खर्च कर भी नतीजा सिफर ही रहा. सोनिया गांधी की सीट पर भी कांग्रेस की बेइज्जती ही हो गई.
ब्लॉक प्रमुख के चुनाव में भी कांग्रेस पार्टी की स्थिति दयनीय ही रही है. अभी भी पार्टी नेता यह बताने में समर्थ नहीं है कि प्रदेश भर के सभी ब्लॉक में से कांग्रेस पार्टी के कितने ब्लॉक प्रमुख बने है? लेकिन यह तय है कि यहां पर भी सोनिया गांधी की रायबरेली सीट पर कांग्रेस पार्टी को कामयाबी नहीं मिली है. यहां भी जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव की तरह ही पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया है. ऐसे में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के नेतृत्व पर सवाल खड़े होने लगे हैं.
प्रतापगढ़-अमेठी में बची पार्टी की इज्जत
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की कमान भले ही प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू के हाथ में हो, लेकिन वे अपने घर में ही पंचायत चुनाव में प्रत्याशियों को जिताने में कामयाब नहीं हो पाए हैं. जबकि कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रमोद तिवारी और नेता विधानमंडल दल आराधना मिश्रा और दीपक सिंह ने अपने-अपने क्षेत्रों में अपने दम पर ब्लॉक प्रमुख बनाया है. उन्होंने कहीं न कहीं पार्टी को यह संदेश दे दिया है कि उत्तर प्रदेश में नेतृत्व बदलने की आवश्यकता है. प्रतापगढ़ और रामपुर खास में दिग्गज नेता प्रमोद तिवारी और विधायक आराधना मिश्रा ने अपने दम पर कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशियों को ब्लॉक प्रमुख बनाया है. यही वजह है कि पार्टी की पांच से ज्यादा सीट कांग्रेस पार्टी के पक्ष में आई हैं, वही एमएलसी दीपक सिंह ने अमेठी में पार्टी के प्रत्याशी को जीत दिलाकर कांग्रेस को जिंदा रखा है.
करोड़ों खर्च कर भी पार्टी शून्य
उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव को लेकर कांग्रेस पार्टी की गंभीरता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि कांग्रेस आलाकमान की तरफ से प्रत्याशियों को चुनाव लड़ने के लिए पैसे भेजे गए थे. पार्टी के सूत्रों की मानें तो हाईकमान ने जिला पंचायत सदस्य के हर प्रत्याशी को ₹50,000 भेजे थे जबकि उनके हाथ तक पहुंचते-पहुंचते ₹40,000 ही बचे. प्रदेश में कई जिलों के ऑडियो भी वायरल हुए थे. जिसमें से प्रत्याशी साफ तौर पर ₹36,000 ही मिलने का दावा कर रहे थे. कहा जा रहा था कि ₹4000 जिला अध्यक्ष ने बिना कारण से ही ले लिया, इसकी कोई रसीद भी नहीं दी. ऐसे में इन चुनावों में भी कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने आपदा में अवसर तलाश लिया और एक बड़े घोटाले को अंजाम भी दे डाला. शायद यह भी वजह हो सकती है कि करोड़ों रुपए खर्च कर भी पार्टी पंचायत चुनाव में 'शून्य' पर ही रह गई.
सेल्फ सेंट्रिक पॉलिटिक्स करते हैं कांग्रेस नेता
राजनीतिक विश्लेषक योगेश मिश्रा का कहना है कि कांग्रेस पार्टी के नेता चाहे सोनिया गांधी हों या राहुल गांधी. वे अपने विधानसभा क्षेत्र में एमएलए तक नहीं जिता पाते हैं. जहां तक बात पंचायत चुनावों की है तो इन चुनावों में मैनेजमेंट हो सकता है लेकिन विधानसभा चुनाव में मैनेजमेंट नहीं होता है, वहां भी कांग्रेस पार्टी के नेता चुनाव नहीं जीत पाते हैं. दरअसल, वजह ये है कि कांग्रेस पार्टी के नेता सिर्फ सेल्फ सेंट्रिक पॉलिटिक्स करते हैं, पीपल्स सेंट्रिक पॉलिटिक्स होती नहीं है तो जनता इन्हें कैसे एक्सेप्ट करे. जनता भी वही करती है कि इन्हें सेल्फ जिताकर भेज देती है. बाकी इनके विधायक नहीं जिताती है. कांग्रेस के नेता सीजनल पॉलिटिक्स करते हैं. चुनाव के समय घर से बाहर निकलते हैं. प्रियंका गांधी ट्वीट ट्वीट खेलती हैं. कहा जा रहा था कि वह यहां आएंगी, घर बन रहा है, वहां रहेंगी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. तो जब आप सीजनल पॉलिटिक्स ही करेंगे तो उत्तर प्रदेश में फुल टाइम पॉलिटिक्स करने वाली भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी मौजूद हैं ऐसे में जनता कभी आपको एक्सेप्ट नहीं कर सकती.
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