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प्रियंका का नहीं, सत्ता पाने को 'पीके' का सहारा लेगी कांग्रेस!

2017 में सपा-कांग्रेस के समझौते से बिगाड़े कांग्रेस के राजनीतिक खेल को कांग्रेस फिर से दुरुस्त करने और आगामी विधानसभा चुनाव में रणनीतिकार 'पीके' का सहारा ले सकती है. जी हां, आगामी 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस के साथ प्रशांत किशोर आ सकते हैं.

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Published : Oct 28, 2020, 5:02 PM IST

लखनऊ: 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में सत्ता पर काबिज होने के लिए कांग्रेस प्रियंका गांधी को भले ही आगे रख रही हो, लेकिन मंजिल तक पहुंचने के लिए फिर से प्रशांत किशोर 'पीके' का सहारा लेने की तैयारी हो रही है. 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव के लिए भी कांग्रेस ने पीके का सहारा लिया था. अब 2021 में पश्चिम बंगाल का चुनाव खत्म होने के बाद प्रशांत किशोर यूपी कांग्रेस के साथ जुड़ सकते हैं. पार्टी के विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि इसके लिए उच्च स्तर पर बातचीत चल रही है.

प्रियंका का नहीं, सत्ता पाने को 'पीके' का सहारा लेगी कांग्रेस!
विपक्षी दल में मच गई थी हलचल2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में किला फतह करने के लिए कांग्रेस पार्टी ने रणनीतिकार प्रशांत किशोर उत्तर प्रदेश समेत पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर के लिए पार्टी के साथ जोड़ा था. इन सभी राज्यों में उत्तर प्रदेश सबसे अहम राज्य था और यहां चुनौती भी सबसे ज्यादा थी. 14 साल बाद सत्ता में आने को बेताब भारतीय जनता पार्टी पूरा जोर लगाए हुए थी, वहीं समाजवादी पार्टी अपनी गद्दी न जाने देने के लिए पुरजोर तरीके से जुटी थी, जबकि मायावती सत्ता में वापसी करने को लालायित थीं. ऐसे में कांग्रेस के लिए चुनौती बिल्कुल भी आसान नहीं थी, लेकिन प्रशांत किशोर ने उत्तर प्रदेश में डेरा डालते हुए जब अपनी रणनीति जमीन पर लागू करने की शुरुआत की तो सभी पार्टियों में हलचल मच गई.
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'27 साल यूपी बेहाल' स्लोगन ने मचाया था धमालप्रशांत किशोर ने यूपी की सत्ता से कांग्रेस की बेदखली के बाद भारतीय जनता पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के 27 सालों में प्रदेश की दुर्दशा को लेकर एक स्लोगन दिया था. ये स्लोगन था '27 साल यूपी बेहाल'. कांग्रेस के इस स्लोगन ने जहां पार्टियों की नींद उड़ा दी थी, वहीं जनता के बीच भी धमाल मचा दिया था. आम जनता को भी ये स्लोगन काफी रास आया था और लोग कांग्रेस से भी जुड़ने लगे थे.इस तरह बनाई थी रणनीतियूपी में कांग्रेस के सिर पर जीत का सेहरा सजाने के लिए प्रशांत किशोर ने अपना जाल बिछाना शुरू किया. सबसे पहले उन्होंने कांग्रेस के संगठन को किनारे रखकर अपनी टीम को मैदान में उतारा. पार्टी मुख्यालय से लेकर प्रदेश भर में टीम ने काम करना शुरू कर दिया. जिन विधानसभा सीटों पर पार्टी ने प्रत्याशियों के नाम का एलान कर दिया था उन प्रत्याशियों से प्रशांत किशोर ने दो-दो बूथ प्रभारियों के नाम मांगे. इनमें से 80℅ नाम सही होने पर फिर से प्रत्याशियों से पांच-पांच और नाम लिए गए. इसके बाद इन सभी बूथ प्रभारियों की लखनऊ के रमाबाई अंबेडकर पार्क में प्रशांत किशोर ने मीटिंग आयोजित कराई.
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मंच पर राहुल गांधी भी रहे मौजूदरमाबाई अंबेडकर पार्क आयोजित बूथ प्रभारियों के इस मीटिंग में प्रशांत किशोर ने सभी प्रत्याशियों से प्रदेश भर से सिर्फ अपने साथ 15-15 लोगों को लाने को कहा था और इन्हीं लोगों से पूरा मैदान भर गया था. पीके की रणनीति का एक हिस्सा यहां पर बनाया गया मंच भी था. मंच को पार्क के बराबर लंबाई का बनाया गया था, जिस पर राहुल गांधी टहल-टहल कर भाषण और बूथ प्रभारियों के सवालों का जवाब दे रहे थे. इसका फायदा यह था कि मंच बड़ा होने से राहुल गांधी एक से दूसरे छोर पर सभी से रूबरू हो रहे थे.
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प्रदेश भर में आयोजित की 'खाट सभा'रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने राहुल गांधी को साथ में रखकर प्रदेश भर में 'खाट सभा' का आयोजन किया. इस सभा में कोई मंच बनाने के बजाय खाट पर बैठकर सभाएं हो रही थीं. इसमें किसान भी खाट पर बैठते थे और राहुल गांधी के साथ कांग्रेस के बड़े नेता भी. यह खाट सभा भी चुनाव पर चर्चा का विषय बनी रही. खाट सभा के आयोजन के पीछे मकसद यही था कि सभी किसान, गरीब और मजदूर बड़े नेता के साथ खाट पर बैठ सकें और खुद को नेता के बराबर ही समझ सकें.कर्जा माफ, बिजली बिल हाफकांग्रेस पार्टी के लिए प्रशांत किशोर ने किसान मांग पत्र लांच किया और इसका स्लोगन दिया 'कर्जा माफ बिजली बिल हाफ'. किसानों से एक फार्म भरवाया जाता था जिसमें जो किसान कर्जा माफी चाहते थे और बिजली का बिल हाफ चाहते थे ऐसे किसानों ने फार्म भरे और लाखों की संख्या में फार्म प्रशांत किशोर के पास आ गए. हर विधानसभा से 30,000 फार्म भरवाए गए थे. हजारों के फोन नंबर भी मौजूद थे. इनसे लगातार संपर्क किया जाता था जिससे यह कांग्रेस से पूरी तरह जुड़े रहें और किसी भी पार्टी की तरफ रुख न कर पाएं.
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यूपी को दो भागों में बांटाप्रशांत किशोर ने अपनी रणनीति के तहत उत्तर प्रदेश को दो भागों में बांट दिया था. आठ-आठ बड़े नेताओं को दोनों भागों की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. एक तरफ शीला दीक्षित तो दूसरी तरफ राज बब्बर नेतृत्व कर रहे थे. समीकरण साधने के लिए शीला दीक्षित को ब्राह्मण चेहरे के रूप में तो उनके साथ क्षत्रिय वोटरों को लुभाने के लिए डॉक्टर संजय सिंह को लगाया गया था. उधर राज बब्बर के साथ ब्राह्मण चेहरे प्रमोद तिवारी को लगा दिया और रोड शो कराया. बस पर बैठकर यह नेता आम जनता से लगातार संपर्क कर रहे थे जिसका असर भी साफ दिखाई देने लगा था.शुरू हुआ पीके का विरोधउत्तर प्रदेश में कांग्रेस के लिए पीके की रणनीति पूरी तरह सही दिशा में चल रही थी कि अचानक कांग्रेस पार्टी के नेता दो खेमों में बंटने लगे. एक खेमे के सीनियर नेताओं ने प्रशांत किशोर पर आरोप लगाने शुरू कर दिए कि वह बड़े नेताओं की कोई इज्जत ही नहीं करते हैं. सम्मान देना तो दूर नेताओं से सही बात भी नहीं करते हैं. यहीं से पीके के विरोध के साथ समझौते की इबारत लिखनी शुरू हो गई. समझौते ने फेल कर दी रणनीतिकार की रणनीतिरणनीतिकार प्रशांत किशोर कांग्रेस को सत्ता पर काबिज कराने की रणनीति बना रहे थे, लेकिन इधर कांग्रेस पार्टी के नेता समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर समझौते की रणनीति बना रहे थे. 'पीके' को इस रणनीति खबर भी न लगी और उधर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी और समाजवादी पार्टी का समझौता हो गया. राहुल गांधी और अखिलेश यादव ने हाथ मिला लिया और रणनीतिकार की सारी रणनीति धरी रह गई. हालांकि चुनाव परिणाम आने के बाद कांग्रेस को समझ में आ गया कि उसका फैसला गलत था.
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न होता समझौता तो मिलतीं 50 से ज्यादा सीटेंकांग्रेस पार्टी के नेता बताते हैं कि 2017 में अगर समाजवादी पार्टी के साथ कांग्रेस का समझौता न हुआ होता तो हरहाल में पार्टी 50 से 55 सीटें जीतने में कामयाब हो जाती. इतना सब कुछ होने के बाद पार्टी सिर्फ सात सीटें ही जीतने में सफल हो पाई. कांग्रेस कुल 121 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, वहीं अगर समझौता न होता और पीके की रणनीति पर चलते तो उत्तर प्रदेश में सभी सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशी चुनाव लड़ते और जीत का आंकड़ा कई गुना ज्यादा होता.पिछली भूल को सुधारने के लिए फिर पीके को आमंत्रणकांग्रेस पार्टी से 2017 में समझौते की जो भूल हुई थी और पीके को दरकिनार कर दिया था, उसी भूल को सुधारने के लिए अब 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव से पहले फिर से पार्टी 'पीके' को आमंत्रित करने का प्लान बना रही है. विश्वस्त सूत्रों की मानें तो 2021 के आखिर तक प्रशांत किशोर फिर से यूपी कांग्रेस के साथ जुड़ सकते हैं.
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इस बार प्रियंका का भी मिलेगा साथ2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में प्रियंका गांधी सक्रिय राजनीति में नहीं थीं, लेकिन इस बार वे राष्ट्रीय महासचिव के साथ ही यूपी प्रभारी का भी दायित्व निभा रही हैं. उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री का चेहरा भी वही होंगी, ऐसे में इस बार प्रशांत किशोर और प्रियंका गांधी साथ मिलकर मैदान में उतार सकते हैं.कौन हैं प्रशांत किशोर?प्रशांत किशोर यानी पीके का नाम पहली बार 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारी जीत के बाद चर्चा में आया था. इसके बाद हर राजनीतिक दल प्रशांत किशोर की मांग करने लगे. जैसे प्रशांत किशोर जीत की गारंटी हो गए हों. 2015 में नीतीश कुमार ने पीके को लिया और चुनाव में जीत हासिल की. यहां पर बीजेपी को सत्ता से दूर होना पड़ा. दो साल बाद उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब में कांग्रेस ने अपनी हालत सुधारने के लिए पीके को रणनीतिकार बनाया. हालांकि कांग्रेस ने पंजाब तो जीत लिया, लेकिन समझौते के चलते उत्तर प्रदेश में कुछ नहीं हो पाया और उत्तराखंड में कांग्रेस खंड-खंड हो गई.

लखनऊ: 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में सत्ता पर काबिज होने के लिए कांग्रेस प्रियंका गांधी को भले ही आगे रख रही हो, लेकिन मंजिल तक पहुंचने के लिए फिर से प्रशांत किशोर 'पीके' का सहारा लेने की तैयारी हो रही है. 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव के लिए भी कांग्रेस ने पीके का सहारा लिया था. अब 2021 में पश्चिम बंगाल का चुनाव खत्म होने के बाद प्रशांत किशोर यूपी कांग्रेस के साथ जुड़ सकते हैं. पार्टी के विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि इसके लिए उच्च स्तर पर बातचीत चल रही है.

प्रियंका का नहीं, सत्ता पाने को 'पीके' का सहारा लेगी कांग्रेस!
विपक्षी दल में मच गई थी हलचल2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में किला फतह करने के लिए कांग्रेस पार्टी ने रणनीतिकार प्रशांत किशोर उत्तर प्रदेश समेत पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर के लिए पार्टी के साथ जोड़ा था. इन सभी राज्यों में उत्तर प्रदेश सबसे अहम राज्य था और यहां चुनौती भी सबसे ज्यादा थी. 14 साल बाद सत्ता में आने को बेताब भारतीय जनता पार्टी पूरा जोर लगाए हुए थी, वहीं समाजवादी पार्टी अपनी गद्दी न जाने देने के लिए पुरजोर तरीके से जुटी थी, जबकि मायावती सत्ता में वापसी करने को लालायित थीं. ऐसे में कांग्रेस के लिए चुनौती बिल्कुल भी आसान नहीं थी, लेकिन प्रशांत किशोर ने उत्तर प्रदेश में डेरा डालते हुए जब अपनी रणनीति जमीन पर लागू करने की शुरुआत की तो सभी पार्टियों में हलचल मच गई.
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'27 साल यूपी बेहाल' स्लोगन ने मचाया था धमालप्रशांत किशोर ने यूपी की सत्ता से कांग्रेस की बेदखली के बाद भारतीय जनता पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के 27 सालों में प्रदेश की दुर्दशा को लेकर एक स्लोगन दिया था. ये स्लोगन था '27 साल यूपी बेहाल'. कांग्रेस के इस स्लोगन ने जहां पार्टियों की नींद उड़ा दी थी, वहीं जनता के बीच भी धमाल मचा दिया था. आम जनता को भी ये स्लोगन काफी रास आया था और लोग कांग्रेस से भी जुड़ने लगे थे.इस तरह बनाई थी रणनीतियूपी में कांग्रेस के सिर पर जीत का सेहरा सजाने के लिए प्रशांत किशोर ने अपना जाल बिछाना शुरू किया. सबसे पहले उन्होंने कांग्रेस के संगठन को किनारे रखकर अपनी टीम को मैदान में उतारा. पार्टी मुख्यालय से लेकर प्रदेश भर में टीम ने काम करना शुरू कर दिया. जिन विधानसभा सीटों पर पार्टी ने प्रत्याशियों के नाम का एलान कर दिया था उन प्रत्याशियों से प्रशांत किशोर ने दो-दो बूथ प्रभारियों के नाम मांगे. इनमें से 80℅ नाम सही होने पर फिर से प्रत्याशियों से पांच-पांच और नाम लिए गए. इसके बाद इन सभी बूथ प्रभारियों की लखनऊ के रमाबाई अंबेडकर पार्क में प्रशांत किशोर ने मीटिंग आयोजित कराई.
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प्रियंका का नहीं, सत्ता पाने को 'पीके' का सहारा लेगी कांग्रेस!
मंच पर राहुल गांधी भी रहे मौजूदरमाबाई अंबेडकर पार्क आयोजित बूथ प्रभारियों के इस मीटिंग में प्रशांत किशोर ने सभी प्रत्याशियों से प्रदेश भर से सिर्फ अपने साथ 15-15 लोगों को लाने को कहा था और इन्हीं लोगों से पूरा मैदान भर गया था. पीके की रणनीति का एक हिस्सा यहां पर बनाया गया मंच भी था. मंच को पार्क के बराबर लंबाई का बनाया गया था, जिस पर राहुल गांधी टहल-टहल कर भाषण और बूथ प्रभारियों के सवालों का जवाब दे रहे थे. इसका फायदा यह था कि मंच बड़ा होने से राहुल गांधी एक से दूसरे छोर पर सभी से रूबरू हो रहे थे.
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प्रदेश भर में आयोजित की 'खाट सभा'रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने राहुल गांधी को साथ में रखकर प्रदेश भर में 'खाट सभा' का आयोजन किया. इस सभा में कोई मंच बनाने के बजाय खाट पर बैठकर सभाएं हो रही थीं. इसमें किसान भी खाट पर बैठते थे और राहुल गांधी के साथ कांग्रेस के बड़े नेता भी. यह खाट सभा भी चुनाव पर चर्चा का विषय बनी रही. खाट सभा के आयोजन के पीछे मकसद यही था कि सभी किसान, गरीब और मजदूर बड़े नेता के साथ खाट पर बैठ सकें और खुद को नेता के बराबर ही समझ सकें.कर्जा माफ, बिजली बिल हाफकांग्रेस पार्टी के लिए प्रशांत किशोर ने किसान मांग पत्र लांच किया और इसका स्लोगन दिया 'कर्जा माफ बिजली बिल हाफ'. किसानों से एक फार्म भरवाया जाता था जिसमें जो किसान कर्जा माफी चाहते थे और बिजली का बिल हाफ चाहते थे ऐसे किसानों ने फार्म भरे और लाखों की संख्या में फार्म प्रशांत किशोर के पास आ गए. हर विधानसभा से 30,000 फार्म भरवाए गए थे. हजारों के फोन नंबर भी मौजूद थे. इनसे लगातार संपर्क किया जाता था जिससे यह कांग्रेस से पूरी तरह जुड़े रहें और किसी भी पार्टी की तरफ रुख न कर पाएं.
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यूपी को दो भागों में बांटाप्रशांत किशोर ने अपनी रणनीति के तहत उत्तर प्रदेश को दो भागों में बांट दिया था. आठ-आठ बड़े नेताओं को दोनों भागों की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. एक तरफ शीला दीक्षित तो दूसरी तरफ राज बब्बर नेतृत्व कर रहे थे. समीकरण साधने के लिए शीला दीक्षित को ब्राह्मण चेहरे के रूप में तो उनके साथ क्षत्रिय वोटरों को लुभाने के लिए डॉक्टर संजय सिंह को लगाया गया था. उधर राज बब्बर के साथ ब्राह्मण चेहरे प्रमोद तिवारी को लगा दिया और रोड शो कराया. बस पर बैठकर यह नेता आम जनता से लगातार संपर्क कर रहे थे जिसका असर भी साफ दिखाई देने लगा था.शुरू हुआ पीके का विरोधउत्तर प्रदेश में कांग्रेस के लिए पीके की रणनीति पूरी तरह सही दिशा में चल रही थी कि अचानक कांग्रेस पार्टी के नेता दो खेमों में बंटने लगे. एक खेमे के सीनियर नेताओं ने प्रशांत किशोर पर आरोप लगाने शुरू कर दिए कि वह बड़े नेताओं की कोई इज्जत ही नहीं करते हैं. सम्मान देना तो दूर नेताओं से सही बात भी नहीं करते हैं. यहीं से पीके के विरोध के साथ समझौते की इबारत लिखनी शुरू हो गई. समझौते ने फेल कर दी रणनीतिकार की रणनीतिरणनीतिकार प्रशांत किशोर कांग्रेस को सत्ता पर काबिज कराने की रणनीति बना रहे थे, लेकिन इधर कांग्रेस पार्टी के नेता समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर समझौते की रणनीति बना रहे थे. 'पीके' को इस रणनीति खबर भी न लगी और उधर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी और समाजवादी पार्टी का समझौता हो गया. राहुल गांधी और अखिलेश यादव ने हाथ मिला लिया और रणनीतिकार की सारी रणनीति धरी रह गई. हालांकि चुनाव परिणाम आने के बाद कांग्रेस को समझ में आ गया कि उसका फैसला गलत था.
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प्रियंका का नहीं, सत्ता पाने को 'पीके' का सहारा लेगी कांग्रेस!
न होता समझौता तो मिलतीं 50 से ज्यादा सीटेंकांग्रेस पार्टी के नेता बताते हैं कि 2017 में अगर समाजवादी पार्टी के साथ कांग्रेस का समझौता न हुआ होता तो हरहाल में पार्टी 50 से 55 सीटें जीतने में कामयाब हो जाती. इतना सब कुछ होने के बाद पार्टी सिर्फ सात सीटें ही जीतने में सफल हो पाई. कांग्रेस कुल 121 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, वहीं अगर समझौता न होता और पीके की रणनीति पर चलते तो उत्तर प्रदेश में सभी सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशी चुनाव लड़ते और जीत का आंकड़ा कई गुना ज्यादा होता.पिछली भूल को सुधारने के लिए फिर पीके को आमंत्रणकांग्रेस पार्टी से 2017 में समझौते की जो भूल हुई थी और पीके को दरकिनार कर दिया था, उसी भूल को सुधारने के लिए अब 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव से पहले फिर से पार्टी 'पीके' को आमंत्रित करने का प्लान बना रही है. विश्वस्त सूत्रों की मानें तो 2021 के आखिर तक प्रशांत किशोर फिर से यूपी कांग्रेस के साथ जुड़ सकते हैं.
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प्रियंका का नहीं, सत्ता पाने को 'पीके' का सहारा लेगी कांग्रेस!
इस बार प्रियंका का भी मिलेगा साथ2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में प्रियंका गांधी सक्रिय राजनीति में नहीं थीं, लेकिन इस बार वे राष्ट्रीय महासचिव के साथ ही यूपी प्रभारी का भी दायित्व निभा रही हैं. उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री का चेहरा भी वही होंगी, ऐसे में इस बार प्रशांत किशोर और प्रियंका गांधी साथ मिलकर मैदान में उतार सकते हैं.कौन हैं प्रशांत किशोर?प्रशांत किशोर यानी पीके का नाम पहली बार 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारी जीत के बाद चर्चा में आया था. इसके बाद हर राजनीतिक दल प्रशांत किशोर की मांग करने लगे. जैसे प्रशांत किशोर जीत की गारंटी हो गए हों. 2015 में नीतीश कुमार ने पीके को लिया और चुनाव में जीत हासिल की. यहां पर बीजेपी को सत्ता से दूर होना पड़ा. दो साल बाद उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब में कांग्रेस ने अपनी हालत सुधारने के लिए पीके को रणनीतिकार बनाया. हालांकि कांग्रेस ने पंजाब तो जीत लिया, लेकिन समझौते के चलते उत्तर प्रदेश में कुछ नहीं हो पाया और उत्तराखंड में कांग्रेस खंड-खंड हो गई.
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