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लखनऊ विश्वविद्यालय के आर्ट डिपार्टमेंट का हाल, सुविधाओं के अभाव में स्टूडेंट्स बनाते हैं मूर्ति - art department students upset

लखनऊ विश्वविद्यालय के आर्ट डिपार्टमेंट का हाल बेहद खराब है. स्टूडेंट का कहना है कि यहां पर न तो साफ-सफाई होती है और न ही कोई फैसिलिटी प्रॉवाइड की जाती है. डिपार्टमेंट की ओर से जितनी भी सुविधाएं एक स्टूडेंट्स को मिलनी चाहिए वह सिर्फ कागजों तक ही सीमित हैं

लखनऊ विश्वविद्यालय आर्ट डिपार्टमेंट
लखनऊ विश्वविद्यालय आर्ट डिपार्टमेंट
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Published : Apr 16, 2022, 12:46 PM IST

लखनऊ: लखनऊ विश्वविद्यालय के आर्ट डिपार्टमेंट का हाल बेहद खराब है. स्टूडेंट का कहना है कि यहां पर न तो साफ-सफाई होती है और न ही कोई फैसिलिटी प्रॉवाइड की जाती है. डिपार्टमेंट की ओर से जितनी भी सुविधाएं एक स्टूडेंट्स को मिलनी चाहिए वह सिर्फ कागजों तक ही सीमित हैं, जबकि बीए-बीएससी से अलग फाइन आर्ट्स के स्टूडेंट की फीस ज्यादा हाई है. बावजूद इसके डिपार्टमेंट की ओर से कोई भी व्यवस्था नहीं दी गई है. यहां तक कि क्लास में पढ़ाई करने के लिए स्टूडेंट्स के बैठने तक की व्यवस्था नहीं है. बेंच हैं तो वह टूटी हैं. मटके में स्टूडेंट्स पानी रखते हैं.

सामान्य तौर पर मूर्ति बनाने में मिट्टी, सीमेंट, पीओपी और चाक की आवश्यकता पड़ती है, जोकि स्टूडेंट्स को विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से नहीं दिया जाता है. ऐसे में स्टूडेंट्स की जेब पर इन तमाम खर्चों का भार पड़ता है. ईटीवी भारत की ग्राउंड रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि क्लास रूम में कितनी ज्यादा गंदगी है. न सिर्फ क्लासरूम बल्कि क्लास के बाहर पार्क में जहां स्टूडेंट पेंटिंग करते हैं, वहां भी काफी गंदगी है. जमीनों पर काई जमी हुई है. कुछ स्टूडेंट्स ने बताया कि कर्मचारी सफाई करने नहीं आते हैं. कभी आते हैं तो ऊपर-ऊपर से ही साफ करके चले जाते हैं. अच्छे से सफाई नहीं करते हैं. स्टूडेंट्स ने बताया कि क्लास में बैठने के लिए बेंच नहीं है, कुर्सी नहीं है. प्लास्टिक की कुर्सी स्टूडेंट्स खुद खरीद के लाए हैं, ताकि बैठकर काम कर सके.

लखनऊ विश्वविद्यालय आर्ट डिपार्टमेंट

फीस हाई, फैसिलिटीज लो

स्टूडेंट्स ने बताया कि बैचलर कोर्स की फीस 18 से 22 हजार रुपये तक है. वहीं, मास्टर कोर्स की फीस 40 से 60 हजार रुपये तक है. फाइन आर्ट्स का एक स्टूडेंट हजारों में फीस जमा कर रहा है, लेकिन डिपार्टमेंट की ओर से स्टूडेंट को पेंटिंग में लगने वाले सामान से लेकर क्लास में बैठने वाली कुर्सी तक उपलब्ध नहीं है. डिपार्टमेंट में स्टूडेंट के लिए पानी तक की व्यवस्था नहीं है. सभी स्टूडेंट्स ने कुछ पैसे कलेक्ट करके फिलहाल मटके लगवाए हैं, जबकि यह काम डिपार्टमेंट का है.

मूर्ति बनाने में पांच से सात हजार रुपये का खर्चा

स्टूडेंट्स बताते हैं कि हम पढ़ाई कर रहे हैं और हमारे लिए जरूरी है कि हम जितना प्रैक्टिस करेंगे उतना ज्यादा हमारे हाथ में सफाई आएगी. हमारी पूरी पढ़ाई हाथों की सफाई पर ही निर्भर करती है. इसलिए, हम स्टूडेंट्स ज्यादा से ज्यादा मूर्ति बनाने की कोशिश करते हैं. एक मूर्ति बनाने में पांच से सात हजार रुपये तक का खर्चा आता है. जो स्टूडेंट अपने जेब से खर्चा करते हैं. हम लोग बस किसी तरह से मैनेज करते हैं कि अभाव में ही जितना संभव हो सकता है उतनी प्रैक्टिस कर मूर्ति बनाते हैं. विश्वविद्यालय प्रशासन और हमारे आर्ट डिपार्टमेंट की ओर से हमें कुछ भी मूर्ति बनाने का सामान नहीं दिया जाता है.

यह भी पढ़ें: आयुष्मान मरीजों की अब हर बीमारी की होगी फ्री जांच, पैकेज में होगा बदलाव

वहीं आर्ट कॉलेज के प्रिंसिपल आलोक राय का कहना है कि हमारा कॉलेज 112 साल पुराना है. पुरानी बिल्डिंग है, इसलिए दिखने में भी गंदा लगता है. सरकार की ओर से बजट कम आता है. कम बजट के चलते हम बच्चों को जरूरत का सामान अधिक नहीं दे पाते हैं. ऐसे में मूर्ति बनाने का अधिकतर सामान स्टूडेंट्स खुद लाते हैं. इस स्थिति में सरकार को बजट बढ़ाने की आवश्यकता है. सभी स्टूडेंट्स को अधिक फैसिलिटी हम प्रोवाइड कर सकते हैं.

ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप

लखनऊ: लखनऊ विश्वविद्यालय के आर्ट डिपार्टमेंट का हाल बेहद खराब है. स्टूडेंट का कहना है कि यहां पर न तो साफ-सफाई होती है और न ही कोई फैसिलिटी प्रॉवाइड की जाती है. डिपार्टमेंट की ओर से जितनी भी सुविधाएं एक स्टूडेंट्स को मिलनी चाहिए वह सिर्फ कागजों तक ही सीमित हैं, जबकि बीए-बीएससी से अलग फाइन आर्ट्स के स्टूडेंट की फीस ज्यादा हाई है. बावजूद इसके डिपार्टमेंट की ओर से कोई भी व्यवस्था नहीं दी गई है. यहां तक कि क्लास में पढ़ाई करने के लिए स्टूडेंट्स के बैठने तक की व्यवस्था नहीं है. बेंच हैं तो वह टूटी हैं. मटके में स्टूडेंट्स पानी रखते हैं.

सामान्य तौर पर मूर्ति बनाने में मिट्टी, सीमेंट, पीओपी और चाक की आवश्यकता पड़ती है, जोकि स्टूडेंट्स को विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से नहीं दिया जाता है. ऐसे में स्टूडेंट्स की जेब पर इन तमाम खर्चों का भार पड़ता है. ईटीवी भारत की ग्राउंड रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि क्लास रूम में कितनी ज्यादा गंदगी है. न सिर्फ क्लासरूम बल्कि क्लास के बाहर पार्क में जहां स्टूडेंट पेंटिंग करते हैं, वहां भी काफी गंदगी है. जमीनों पर काई जमी हुई है. कुछ स्टूडेंट्स ने बताया कि कर्मचारी सफाई करने नहीं आते हैं. कभी आते हैं तो ऊपर-ऊपर से ही साफ करके चले जाते हैं. अच्छे से सफाई नहीं करते हैं. स्टूडेंट्स ने बताया कि क्लास में बैठने के लिए बेंच नहीं है, कुर्सी नहीं है. प्लास्टिक की कुर्सी स्टूडेंट्स खुद खरीद के लाए हैं, ताकि बैठकर काम कर सके.

लखनऊ विश्वविद्यालय आर्ट डिपार्टमेंट

फीस हाई, फैसिलिटीज लो

स्टूडेंट्स ने बताया कि बैचलर कोर्स की फीस 18 से 22 हजार रुपये तक है. वहीं, मास्टर कोर्स की फीस 40 से 60 हजार रुपये तक है. फाइन आर्ट्स का एक स्टूडेंट हजारों में फीस जमा कर रहा है, लेकिन डिपार्टमेंट की ओर से स्टूडेंट को पेंटिंग में लगने वाले सामान से लेकर क्लास में बैठने वाली कुर्सी तक उपलब्ध नहीं है. डिपार्टमेंट में स्टूडेंट के लिए पानी तक की व्यवस्था नहीं है. सभी स्टूडेंट्स ने कुछ पैसे कलेक्ट करके फिलहाल मटके लगवाए हैं, जबकि यह काम डिपार्टमेंट का है.

मूर्ति बनाने में पांच से सात हजार रुपये का खर्चा

स्टूडेंट्स बताते हैं कि हम पढ़ाई कर रहे हैं और हमारे लिए जरूरी है कि हम जितना प्रैक्टिस करेंगे उतना ज्यादा हमारे हाथ में सफाई आएगी. हमारी पूरी पढ़ाई हाथों की सफाई पर ही निर्भर करती है. इसलिए, हम स्टूडेंट्स ज्यादा से ज्यादा मूर्ति बनाने की कोशिश करते हैं. एक मूर्ति बनाने में पांच से सात हजार रुपये तक का खर्चा आता है. जो स्टूडेंट अपने जेब से खर्चा करते हैं. हम लोग बस किसी तरह से मैनेज करते हैं कि अभाव में ही जितना संभव हो सकता है उतनी प्रैक्टिस कर मूर्ति बनाते हैं. विश्वविद्यालय प्रशासन और हमारे आर्ट डिपार्टमेंट की ओर से हमें कुछ भी मूर्ति बनाने का सामान नहीं दिया जाता है.

यह भी पढ़ें: आयुष्मान मरीजों की अब हर बीमारी की होगी फ्री जांच, पैकेज में होगा बदलाव

वहीं आर्ट कॉलेज के प्रिंसिपल आलोक राय का कहना है कि हमारा कॉलेज 112 साल पुराना है. पुरानी बिल्डिंग है, इसलिए दिखने में भी गंदा लगता है. सरकार की ओर से बजट कम आता है. कम बजट के चलते हम बच्चों को जरूरत का सामान अधिक नहीं दे पाते हैं. ऐसे में मूर्ति बनाने का अधिकतर सामान स्टूडेंट्स खुद लाते हैं. इस स्थिति में सरकार को बजट बढ़ाने की आवश्यकता है. सभी स्टूडेंट्स को अधिक फैसिलिटी हम प्रोवाइड कर सकते हैं.

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