लखनऊ: उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम (Uttar Pradesh State Road Transport Corporation) में अधिकारियों के साथ ड्राइवर कंडक्टर्स के बीच तनातनी कम होने का नाम नहीं ले रही है. लखनऊ परिक्षेत्र के क्षेत्रीय प्रबंधक से खफा तमाम चालक परिचालकों ने मानवाधिकार आयोग में उनके आदेशों के खिलाफ अर्जी लगाई है. ड्राइवर कंडक्टर्स की शिकायत है कि रोडवेज को घाटे में रखने की रीजनल मैनेजर साजिश रच रहे हैं. उनकी नीयत रोडवेज को प्राइवेटाइजेशन की तरफ बढ़ाना है.
यूपी रोडवेज इम्प्लाइज यूनियन के शाखा अध्यक्ष प्रदीप कुमार पांडेय और उपनगरीय डिपो के शाखा अध्यक्ष बबलू शेख ने तमाम चालक परिचालकों के हस्ताक्षर के साथ मानवाधिकार आयोग में शिकायत दर्ज कराई है. कहा है कि अधिकारी रोज नये नियम बना रहे हैं. लखनऊ क्षेत्र के क्षेत्रीय प्रबंधक मनोज कुमार पुंडीर ने उपनगरीय व हैदरगढ़ के अधिकारियों के वाट्सएप ग्रुप पर सूचना भेजी कि बस स्टेशन पर किसी भी स्थिति में 20 मिनट से ज्यादा बस खड़ी नहीं होनी चाहिए. अगर एक भी सवारी है तो बस का संचालन किया जाए.
शिकायतकर्ताओं का कहना है कि 30 सवारी से कम होने पर प्रोत्साहन भत्तों में कटौती कर ली जाती है. चालक व परिचालक को महीने में 51 फीसदी लोड फैक्टर यानी सीटों की अपेक्षा सवारियां भरनी ही होंगी. प्रदीप पांडेय का कहना है कि डग्गामार बसों का कम किराये पर अंधाधुंध संचालन हो रहा है. बस स्टेशनों के सामने से सवारियां भरी जा रही हैं. इसकी वजह से रोडवेज बसों के सामने सवारियों का संकट खड़ा हो जाता है. इन डग्गामार बसों पर अधिकारी कार्रवाई तो करते नहीं, पर कम सवारी मिलने पर हर माह चालकों परिचालकों के प्रोत्साहन भत्ते में कटौती कर ली जाती है.
पदाधिकारियों का कहना है कि डग्गामार बसों के संचालन की शिकायत की जाती है, तो अफसर ड्राइवर कंडक्टर को ही नौकरी से निकालने की चेतावनी देते हैं. उन्होंने बताया कि पूर्व में हैदरगढ़ व उपनगरीय डिपो की वरिष्ठ केन्द्र प्रभारी राधा प्रधान ने पांच सवारी होने पर निगम हित में बस को निरस्त करने का आदेश दिया था, जिससे रोडवेज को घाटे से बचाया जा सके. उन्होंने आरोप लगाया कि लखनऊ क्षेत्र के क्षेत्रीय प्रबंधक लगातार नये-नये आदेश जारी कर परिवहन निगम को प्राइवेट हाथों में सौपने की साजिश रच रहे हैं.
प्रदीप का कहना है कि लगातार परिवहन निगम मुख्यालय में अधिकारियों से शिकायत की जा रही है, लेकिन उनकी सुनवाई नहीं हो रही है. यही कारण है कि मजबूरन मानवाधिकार आयोग में गुहार लगाई है. उनका कहना है कि अफसरों की मनमानी और कर्मचारी विरोधी फैसलों के कई दस्तावेज भी मानवाधिकार आयोग के समक्ष साक्ष्य के तौर पर प्रस्तुत किए गए हैं.
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