लखनऊः लखनऊ विकास प्रधिकरण एलडीए में कंपनियां फाइलों की स्कैनिग या सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट करने के नाम पर लूट खसोट जारी रखे हुए हैं. हद दो तब हो जाती है जब मामला सामने आने पर भी इन कंपनियों पर कोई कार्रवाई नहीं होती. इससे वे आसानी से बचकर निकल जातीं हैं. इसी बीच प्रधिकरण अधिकारी भी कंपनियां बदकर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं.
बता दें कि प्राधिकरण में एक बार फिर से सॉफ्टवेयर कंपनी बदलने की तैयारी है. इससे पहले फाइलों की स्कैनिंग करने वाली कंपनी राइटर और सॉफ्टवेयर कंपनी डीजी टेक प्राइवेट लिमिटेड पर मुकदमे और धोखाधड़ी की कागजी कार्यवाही तो की गई, मगर उनके खिलाफ किसी तरह का जमीनी एक्शन नजर नहीं आया.
फाइलों की स्कैनिंग के नाम पर राइटर ने हजारों फाइलों में हेराफेरी भी की थी. वहीं, डीजी टेक ने 500 प्लॉटों के घोटालों को अंजाम दिया था. दोनों कंपनियों ने मिलकर लखनऊ विकास प्राधिकरण के सबसे बड़े घोटाले किए थे. करोड़ों डकारकर इनके कर्ताधर्ता आज तक आराम से अपने दूसरे धंधों में लगे हुए हैं.
किस तरह से गड़बड़ी की थी डीजी टेक ने
एलडीए के पूरे कंप्यूटर सिस्टम को खतरे में डाला गया था. कुछ समय पहले हैकरों ने इसमें सेंधमारी की थी जिसके जरिए अरबों के 500 भूखंड की हेराफेरी की गई थी. मुकदमा दर्ज करवाया गया था. करीब चार महीने पहले प्राधिकरण के तत्कालीन तहसीलदार राजेश शुक्ल की ओर से ये मुकदमा दर्ज करवाया गया. कंपनी के सीईओ अजीत मित्तल व सर्विस इंजीनियर दीपक मिश्र के खिलाफ केस दर्ज किया गया था. आरोप था कि इन लोगों ने कर्मचारियों के पासवर्ड हैक करके डिजिटल डेटा में हेराफेरी की थी जिससे प्राधिकरण को करोड़ों की हानि हुई.
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एलडीए के अफसर और कर्मचारियों की थी मिलीगभत
ये पूरी जांच संयुक्त सचिव ऋतु सुहास ने की थी जिसमें सामने आया कि कम से कम 500 भूखंड जो कि गोमती नगर, ट्रांसपोर्ट नगर, जानकीपुरम, कानपुर रोड योजना में थे, उनमें साल 2018 से खेल शुरू किया गया था. अक्टूबर 2020 तक यह जारी रहा. लॉकडाउन में जब दफ्तर बंद थे, तब भी ये खेल चला. इसमें प्रधिकरण के कर्मचारी और अधिकारियों के मिले होने की आशंका थी. इन लोगों ने कंप्यूटर पर आवंटियों के नाम बदल दिए और फाइलें गायब कर दीं.
स्कैन करने के लिए लीं फाइलें और हो गईं गायब
दूसरी ओर राइटर कंपनी पर सीबीआई और ईडी के शिकंजे में फंसे पूर्व आईएएस अधिकारी सत्येंद्र कुमार सिंह का हाथ था. उनके समय में करोड़ों का टेंडर कर प्राधिकरण की लाखों फाइलों को स्कैन करने के लिए राइटर कंपनी के हवाले किया गया था. मगर जब फाइलें मांगीं गईं तो अनेक गड़बड़ियां सामने आईं. सैकड़ों फाइलें गायब मिलीं थीं. आखिरकार इस कंपनी के अधिकारियों पर भी मुकदमे किए गए और अब काम वापस ले लिया गया है.
नई कंपनी को काम देकर पूरा सिस्टम फूलप्रूफ करने का दावा
लखनऊ विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष अक्षय त्रिपाठी ने बताया कि प्राधिकरण की संपत्तियों और अन्य महत्वपूर्ण अभिलेखों में हेरफेर की आशंका समाप्त की जाएगी. ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी का उपयोग होगा. आईआईटी के विशेषज्ञ मनेंद्र अग्रवाल, डिप्टी डायरेक्टर आईआईटी कानपुर की टीम के साथ बैठक हुई. रजिस्ट्री, आवंटन व नामांतरण में छेडछाड़ को तकनीकी के माध्यम से राका जाएगा. सॉफ्टवेयर में सिक्योरिटी से सम्बन्धित कमियों को दूर किया जाएगा.