लखनऊ : सिटी मांटेसरी स्कूल में बीते तीन नवंबर से शुरू हुए 24वें अंतर्राष्ट्रीय मुख्य न्यायाधीश सम्मेलन में आए हुए 61 देशों के 250 से अधिक मुख्य न्यायाधीश तथा राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री ने सामूहिक प्रस्ताव तैयार किया है. सहमित बनी है कि इसराइल व गाजा के बीच हो रहे युद्ध में फंसे बच्चों के अधिकारों को हर हाल में सुरक्षित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ (यूनाइटेड) को प्रस्ताव भेजा जाएगा. सम्मेलन के अंतिम दिन चार दिनों तक चले गहन चिंतन मनन व मंथन के बाद तैयार हो रहे लखनऊ घोषणा पत्र पर न्यायाधीश व कानूनविदों ने सहमति जाहिर की है. चार दिवसीय मुख्य न्यायाधीश सम्मेलन में पहले ही दिन से इजराइल व गाजा में हो रहे युद्ध का मुद्दा मुख्य रूप से छाया रहा.
डॉ. जगदीश गांधी ने कहा कि सम्मेलन के माध्यम से हम 1 से 14 साल तक के बच्चों के अधिकारों की रक्षा की आवाज बुलंद करते हैं. इसके लिए विश्व में एक सर्वमान्य कानून व वर्ल्ड कोर्ट ऑफ़ जस्टिस बनाने की मांग करते है. जिस तरह से रूस और यूक्रेन का युद्ध दो साल से अधिक समय से चल रहा है. ऐसे में यूक्रेन के बच्चों का भविष्य अंधकार में पड़ गया है. इस तरह बीते एक महीने से इजरायल और फिलीस्तीन के बीच हो रहे युद्ध में करीब 5000 से अधिक बच्चों की मौत हुई है. फिलिस्तीन में करीब 10 हजार से अधिक नागरिकों की मौत हो चुकी है. इजराइल भी अपने 3000 से अधिक नागरिकों को इस युद्ध में गंवा चुका है. ऐसे में इस बार इस सम्मेलन के माध्यम से हर साल तैयार होने वाले "लखनऊ घोषणा पत्र" में इस बार इजरायल व फिलिस्तीन की लड़ाई को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ को एक प्रस्ताव भेजा जाएगा.
संयुक्त राष्ट्र संघ सिर्फ युद्ध रोकने की बात करता है बच्चों के अधिकारों की नहीं : डॉ. जगदीश गांधी ने बताया कि इस अंतरराष्ट्रीय न्यायाधीश सम्मेलन में आए न्यायाधीशों व प्रमुख देशों के राष्ट्राध्यक्ष का मानना है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र का गठन का मुख्य उद्देश्य था कि विश्व में किसी भी तरह के युद्ध की विभीषिका को रोका जा सके. पर आज के समय संयुक्त राष्ट्र संघ अपने इस मूल उद्देश्य को भी नहीं पूरा कर पा रहा है. ऐसे में युद्ध का दंश झेलने वाले बच्चों के लिए अब समय आ गया है कि अलग से कानून लाया जाए और इस तरह के युद्ध को रोका जा सके. डॉ. गांधी ने कहा कि हमारे (भारतीय) संविधान के आर्टिकल 51 में निहित है.
मॉरीशस हमेशा से भारत के साथ बेहतर संबंध रखने में कामयाब रहा
मॉरीशस दुनिया का इकलौता ऐसा देश है जिसकी अपनी खुद की कोई जानता नहीं है. यह देश भारत, चीन, अफ्रीका, अमेरिका और यूरोपीय यूनियन के कई देशों से आकर बसे लोगों का एक मिलता जुलता समूह का देश है. मॉरीशस में मौजूदा समय में 5 लाख से अधिक भारतीय मूल के लोग रहते है. बीते 10 सालों में भारत और मॉरीशस के बीच में व्यापारिक संबंध काफी तेजी से विकसित हुए हैं. इसी का एक बड़ा उदाहरण यह है कि भारत सरकार ने 2017 में मॉरीशस में मेट्रो रेल परियोजना शुरू करने की बात कही थी. आज भारत के सहयोग से हमारे पांच बड़े शहरों में मेट्रो परियोजना अंतिम चरण में है. अगले साल तक या परियोजना पूरी हो जाएगी.
यह बातें सिटी मांटेसरी स्कूल कानपुर रोड कैंपस में चल रहे 24वें अंतर्राष्ट्रीय मुख्य न्यायाधीश सम्मेलन के दौरान मॉरीशस के उपराष्ट्रपति मैरी सिरिल एडी बोइसेजोन ने कहीं. उन्होंने कहा कि मॉरीशस की संस्कृति में इंद्रधनुषी छटा दिखती है. मॉरीशस की भाषा और संस्कृति उन लोगों की संस्कृति के साथ मिलकर बनी है. कई देशों की संस्कृति और भाषा का यहां देखने और सुनने को मिलती है. मॉरीशस जैसे देश को भारत जैसे बड़े देश के सहयोग मिलने से यहां के व्यापार और पर्यटन को काफी बढ़ावा मिलता है. मॉरीशस जैसे देशों को विकसित देशों के अलावा विकासशील देशों का भी सहयोग मिलने से इसका व्यापक फायदा न केवल भारत बल्कि हमारे देश में रह रहे दूसरे देशों के लोगों को और उनके देश को भी मिलता है.
उपराष्ट्रपति मैरी सिरिल एडी बोइसेजोन ने कहा कि 189 साल पहले भारत से कुछ लोग मॉरीशस पहुंचे थे. आज मॉरीशस में तकरीबन पांच लाख लोग भारतीय मूल के भारत और मॉरीशस के बीच इंपोर्ट और एक्सपोर्ट का अच्छा काम होता है. मॉरीशस शरीर को फायदा पहुंचाने वाली शुगर भारत को एक्सपोर्ट करता है तो वहीं मॉरीशस अफ्रीकन यूनियन का मेंबर भी है. ऐसे में मॉरीशस भारत में बनने वाले उत्पादों को लेकर मॉरीशस में उनकी जरूरत के हिसाब से बदलाव कर अपने लोगों तक पहुंचना है. साथ ही यह इस अफ्रीकन यूनियन के दूसरे देशों को भी भेज सकता है. आने वाले समय में भारत और मॉरीशस के बीच व्यापारिक संबंध काफी बेहतर होने जा रहे हैं. इसका फायदा न केवल हमें होगा बल्कि भारत के इंपोर्ट और एक्सपोर्ट बिजनेस को भी अच्छा लाभ मिलेगा. भारत मॉरीशस के सहयोग से आसानी से अपना समान अफ्रीकी देशों में भेज सकता है.
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