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कार्टून और वीडियो गेम खराब कर रहे बच्चों की भाषा, बिगाड़ रहे मानसिक संतुलन

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Published : Jul 6, 2021, 1:29 PM IST

Updated : Jul 6, 2021, 4:19 PM IST

कोरोना संक्रमण के चलते पिछले डेढ़ साल से बच्चे घरों में कैद हैं. इसके नतीजे अब सामने आने लगे हैं. अभिभावक समझ नहीं पा रहे हैं कि बच्चों में आने वाले इस बदलाव को कैसे संभाला जाए.

बदल रहा बच्चों का बर्ताव
बदल रहा बच्चों का बर्ताव

लखनऊः कोरोना संक्रमण के चलते पिछले डेढ़ साल से बच्चे घरों में कैद हैं. जिसकी वजह से उनके स्वभाव में बदलाव आ रहा है. ईटीवी भारत की टीम ने बच्चों में आ रहे बदलाव और सुधार के लिए आवश्यक कदम को लेकर लखनऊ के कुछ विशेषज्ञों से बात की.

बच्चों में आ रहा चिड़चिड़ापन और गुस्सा

ऑनलाइन क्लास से बदल रहा बच्चों का व्यवहार

4 साल का प्रत्यूष स्कूल के ऑनलाइन क्लास से जैसे ही बोर होने लगता है, तो वो मोबाइल पर गेम खेलना शुरू कर देता है. प्रत्यूष के पिता आलोक बताते हैं, कि बीते कुछ दिनों से मोबाइल गेम और कार्टून देखने पर ज्यादा समय बिता रहा है. नतीजा जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल कार्टून में किया जाता है, वैसी ही भाषा प्रत्यूष भी बोलने लगा है. इतना ही नहीं मोबाइल गेम में होने वाली मारकाट को देखकर आजकल वो गुस्सैल होता जा रहा है. ये हाल सिर्फ प्रत्यूष का नहीं है, लखनऊ में ज्यादातर बच्चों के साथ इस तरह की समस्या देखने को मिल रही है. कोरोना संक्रमण के चलते पिछले डेढ़ साल से बच्चे घरों में कैद हैं. इसके नतीजे अब सामने आने लगे हैं. अभिभावक समझ नहीं पा रहे हैं कि बच्चों में आने वाले इस बदलाव को कैसे संभालें.

बच्चों में आ रहा चिड़चिड़ापन और गुस्सा

बच्चों में चिड़चिड़ापन और गुस्सा दिख रहा है. गोमती नगर के यूरो किड्स स्कूल की शिक्षिका पपिंदर कौर बताती हैं कि पहले स्कूल में आकर ऑफलाइन शिक्षा लेने वाले बच्चों और अब ऑनलाइन क्लास में बैठने वाले बच्चों के बर्ताव में बहुत अंतर आया है. बच्चों में अग्रेसन बहुत ज्यादा है, वे जल्दी आपकी बात नहीं सुनते. उनकी शब्दावली बहुत ही खराब होती जा रही है. कई बार देखने को मिल रहा है कि जिस तरह की भाषा कार्टून और वीडियो गेम में इस्तेमाल की जाती है उसी तरह के अपशब्द बच्चों को बोलने हुए देखा जा रहा है. गेम्स को देखकर बच्चे झगड़ालू हो रहे हैं.

लखनऊ प्रीस्कूल एसोसिएशन के अध्यक्ष अनूप अग्रवाल कहते हैं कि बच्चों में काफी ऊर्जा होती है. 5 साल तक बच्चे के मस्तिक के 90 फीसदी हिस्से का विकास होता है. ये वो उम्र है जब वह सबसे ज्यादा सीखते हैं. पहले स्कूल खुले होने के कारण वो नई-नई चीजें सीखने के लिए तैयार हैं. कोरोना वायरस पर रहने के कारण उनकी इस ऊर्जा को एक दिशा मिलती थी. बच्चों की ऊर्जा वही है और उनका मस्तिष्क भी नई चीजें सीखने के लिए तैयार है. कोरोना वायरस पर रहने की वजह से उनकी इस ऊर्जा को सही दिशा नहीं मिल पाई. वीडियो गेम और कार्टून जैसी चीजों में ज्यादा समय बिताने लगे. अब स्थिति ये है कि जैसे वीडियो गेम में मारकाट दिखाई जाती है उसी तरह बच्चे भी झगड़ालू होने लगे.

अभिभावक ऐसे बदल सकते हैं बच्चों का बर्ताव

लखनऊ के पायनियर मांटेसरी स्कूल की प्रिंसिपल और चाइल्ड काउंसलर डॉक्टर संध्या द्विवेदी कहती है कि बच्चों का मस्तिक बेहद कोमल होता है. ऐसे में जितनी तेजी से नकारात्मक चीजें उसके मस्तिष्क में प्रवेश करती हैं उतनी ही तेजी से उसे निकाला भी जा सकता है. लेकिन इसके लिए शुरुआत अभिभावकों को अपने स्तर पर करनी है. सबसे पहले बच्चे का टीवी स्क्रीन और कंप्यूटर स्क्रीन पर जाने के समय को कम कर दें. ये सारी परेशानियां गलत दिनचर्या का नतीजा हैं. बच्चे के सुबह उठने से लेकर रात के सोने तक का समय निर्धारित कर दें. दिन में कब खाना खाना है? कब पढ़ाई करनी है? कितनी देर मोबाइल या टीवी देखनी है? ये सब निर्धारित होना चाहिए. बच्चे की शारीरिक गतिविधियों को बढ़ा दें. सुबह योग, वॉक और दूसरी एक्सरसाइज को उसकी दिनचर्या का हिस्सा बनाएं. बच्चे को पूरा समय दें. हो सके तो शाम को कुछ वक्त के लिए बच्चे के साथ खेलें. अगर बच्चा स्क्रीन पर ज्यादा समय गुजार रहा है तो उसे टोकें. उसके लिए कुछ विकल्प तैयार करें. ताकि वो अपनी ऊर्जा को दूसरे किसी काम में लगा सकें.

इसे भी पढ़ें- दो साल का गूगल ब्वॉय देवांश मनवा रहा अपना लोहा, जानिए क्या है प्रतिभा

सामाजिक गतिविधियों में बच्चों को करें शामिल

कंप्यूटर और मोबाइल स्क्रीन से बाहर निकाल कर बच्चों को थोड़ी-थोड़ी सामाजिक गतिविधियों में शामिल किया जाए. चाइल्ड काउंसलर डॉक्टर संध्या द्विवेदी कहती हैं कि शुरुआती दौर में बच्चों की आदत को बदलना आसान होगा. लेकिन अगर इसमें देरी हुई तो आगे काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है. ये बच्चों में नकारात्मक ऊर्जा को पैदा कर सकता है. मानसिक तनाव, असंतुलन जैसी स्थिति उत्पन्न कर सकता है. जिसके भविष्य में बेहद खतरनाक नतीजे देखने को मिल सकते हैं.

लखनऊः कोरोना संक्रमण के चलते पिछले डेढ़ साल से बच्चे घरों में कैद हैं. जिसकी वजह से उनके स्वभाव में बदलाव आ रहा है. ईटीवी भारत की टीम ने बच्चों में आ रहे बदलाव और सुधार के लिए आवश्यक कदम को लेकर लखनऊ के कुछ विशेषज्ञों से बात की.

बच्चों में आ रहा चिड़चिड़ापन और गुस्सा

ऑनलाइन क्लास से बदल रहा बच्चों का व्यवहार

4 साल का प्रत्यूष स्कूल के ऑनलाइन क्लास से जैसे ही बोर होने लगता है, तो वो मोबाइल पर गेम खेलना शुरू कर देता है. प्रत्यूष के पिता आलोक बताते हैं, कि बीते कुछ दिनों से मोबाइल गेम और कार्टून देखने पर ज्यादा समय बिता रहा है. नतीजा जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल कार्टून में किया जाता है, वैसी ही भाषा प्रत्यूष भी बोलने लगा है. इतना ही नहीं मोबाइल गेम में होने वाली मारकाट को देखकर आजकल वो गुस्सैल होता जा रहा है. ये हाल सिर्फ प्रत्यूष का नहीं है, लखनऊ में ज्यादातर बच्चों के साथ इस तरह की समस्या देखने को मिल रही है. कोरोना संक्रमण के चलते पिछले डेढ़ साल से बच्चे घरों में कैद हैं. इसके नतीजे अब सामने आने लगे हैं. अभिभावक समझ नहीं पा रहे हैं कि बच्चों में आने वाले इस बदलाव को कैसे संभालें.

बच्चों में आ रहा चिड़चिड़ापन और गुस्सा

बच्चों में चिड़चिड़ापन और गुस्सा दिख रहा है. गोमती नगर के यूरो किड्स स्कूल की शिक्षिका पपिंदर कौर बताती हैं कि पहले स्कूल में आकर ऑफलाइन शिक्षा लेने वाले बच्चों और अब ऑनलाइन क्लास में बैठने वाले बच्चों के बर्ताव में बहुत अंतर आया है. बच्चों में अग्रेसन बहुत ज्यादा है, वे जल्दी आपकी बात नहीं सुनते. उनकी शब्दावली बहुत ही खराब होती जा रही है. कई बार देखने को मिल रहा है कि जिस तरह की भाषा कार्टून और वीडियो गेम में इस्तेमाल की जाती है उसी तरह के अपशब्द बच्चों को बोलने हुए देखा जा रहा है. गेम्स को देखकर बच्चे झगड़ालू हो रहे हैं.

लखनऊ प्रीस्कूल एसोसिएशन के अध्यक्ष अनूप अग्रवाल कहते हैं कि बच्चों में काफी ऊर्जा होती है. 5 साल तक बच्चे के मस्तिक के 90 फीसदी हिस्से का विकास होता है. ये वो उम्र है जब वह सबसे ज्यादा सीखते हैं. पहले स्कूल खुले होने के कारण वो नई-नई चीजें सीखने के लिए तैयार हैं. कोरोना वायरस पर रहने के कारण उनकी इस ऊर्जा को एक दिशा मिलती थी. बच्चों की ऊर्जा वही है और उनका मस्तिष्क भी नई चीजें सीखने के लिए तैयार है. कोरोना वायरस पर रहने की वजह से उनकी इस ऊर्जा को सही दिशा नहीं मिल पाई. वीडियो गेम और कार्टून जैसी चीजों में ज्यादा समय बिताने लगे. अब स्थिति ये है कि जैसे वीडियो गेम में मारकाट दिखाई जाती है उसी तरह बच्चे भी झगड़ालू होने लगे.

अभिभावक ऐसे बदल सकते हैं बच्चों का बर्ताव

लखनऊ के पायनियर मांटेसरी स्कूल की प्रिंसिपल और चाइल्ड काउंसलर डॉक्टर संध्या द्विवेदी कहती है कि बच्चों का मस्तिक बेहद कोमल होता है. ऐसे में जितनी तेजी से नकारात्मक चीजें उसके मस्तिष्क में प्रवेश करती हैं उतनी ही तेजी से उसे निकाला भी जा सकता है. लेकिन इसके लिए शुरुआत अभिभावकों को अपने स्तर पर करनी है. सबसे पहले बच्चे का टीवी स्क्रीन और कंप्यूटर स्क्रीन पर जाने के समय को कम कर दें. ये सारी परेशानियां गलत दिनचर्या का नतीजा हैं. बच्चे के सुबह उठने से लेकर रात के सोने तक का समय निर्धारित कर दें. दिन में कब खाना खाना है? कब पढ़ाई करनी है? कितनी देर मोबाइल या टीवी देखनी है? ये सब निर्धारित होना चाहिए. बच्चे की शारीरिक गतिविधियों को बढ़ा दें. सुबह योग, वॉक और दूसरी एक्सरसाइज को उसकी दिनचर्या का हिस्सा बनाएं. बच्चे को पूरा समय दें. हो सके तो शाम को कुछ वक्त के लिए बच्चे के साथ खेलें. अगर बच्चा स्क्रीन पर ज्यादा समय गुजार रहा है तो उसे टोकें. उसके लिए कुछ विकल्प तैयार करें. ताकि वो अपनी ऊर्जा को दूसरे किसी काम में लगा सकें.

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सामाजिक गतिविधियों में बच्चों को करें शामिल

कंप्यूटर और मोबाइल स्क्रीन से बाहर निकाल कर बच्चों को थोड़ी-थोड़ी सामाजिक गतिविधियों में शामिल किया जाए. चाइल्ड काउंसलर डॉक्टर संध्या द्विवेदी कहती हैं कि शुरुआती दौर में बच्चों की आदत को बदलना आसान होगा. लेकिन अगर इसमें देरी हुई तो आगे काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है. ये बच्चों में नकारात्मक ऊर्जा को पैदा कर सकता है. मानसिक तनाव, असंतुलन जैसी स्थिति उत्पन्न कर सकता है. जिसके भविष्य में बेहद खतरनाक नतीजे देखने को मिल सकते हैं.

Last Updated : Jul 6, 2021, 4:19 PM IST
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