लखनऊ : प्रदेश के तमाम जिला अस्पतालों को मेडिकल कॉलेज में बदला जा रहा है, लेकिन वहां पर व्यवस्था अच्छी नहीं होने के कारण राजधानी लखनऊ के सरकारी अस्पतालों में मरीज इलाज के लिए आते हैं. दवाओं की सरकारी अस्पतालों में सबसे बड़ी समस्या होती है. इसके अलावा मरीजों को निजी पैथोलॉजी से मजबूरी में महंगी दवाएं खरीदनी पड़ती हैं. चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव आलोक कुमार के मुताबिक यूपी के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में इलाज कराने वालों को अब ब्रांडेड दवाएं सस्ती दर पर मिल सकेंगी.
उन्होंने कहा कि सरकारी अस्पतालों में ब्रांडेड दवाएं सस्ती मिलने से मरीजों को काफी फायदा होगा. इसके लिए उन्हें कहीं बाहर भी नहीं दौड़ना होगा. मेडिकल कॉलेज ही उन्हें रियायती दर पर दवाएं उपलब्ध कराएंगे. कानपुर, आगरा, मेरठ, प्रयागराज, गोरखपुर और झांसी मेडिकल कॉलेजों में हॉस्पीटल एंड इन्वेस्टीगेशन रिवाल्विंग फंड स्थापित किए जाएंगे. चिकित्सा शिक्षा विभाग के इस प्रस्ताव को मंजूरी देते हुए राज्य सरकार ने बजट में इसके लिए 12 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है. दरअसल सरकारी अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों में जेनरिक दवाएं मिलती हैं. सर्जरी सहित अन्य मामलों में कई बार विभिन्न फार्मा कंपनियों की ब्रांडेड दवाएं ही ज्यादा असरदार होती हैं. ऐसे में डॉक्टरों के लिखने पर मरीजों के तीमारदारों को यह दवाएं बाहर से खरीदनी पड़ती हैं. चिकित्सा शिक्षा विभाग ने एचआरएफ का प्रस्ताव दिया था. अब सरकार सरकारी मेडिकल कॉलेजों में बने सुपर स्पेशियलिटी ब्लाकों में मरीजों की दवाओं के के लिए दो-दो करोड़ रुपये देगी.
उन्होंने कहा कि छह पुराने मेडिकल कॉलेजों में बने नए सुपर स्पेशियलिटी ब्लाॅकों में मरीजों को अस्पताल में ही सस्ती ब्रांडेड दवाएं उपलब्ध हो सकेंगी. इस प्रस्ताव पर सरकार ने बजट में धनराशि का प्रावधान किया है. जल्दी इसके लिए अस्पतालों में काम शुरू होगा. लगभग दो महीने में इसे शुरू कर दिया जाएगा ताकि जल्द से जल्द मरीजों को इसके जरिए दवाई उपलब्ध हो सके. अभी तक कंपनियों से सीधे ब्रांडेड दवा खरीद की व्यवस्था पीजीआई, लोहिया, केजीएमयू, जिम्स ग्रेटर नोएडा आदि संस्थान में थी, मगर अब ऐसा सभी मेडिकल कॉलेजों में भी हो सकेगा.
मरीजों को मिलेगा लाभ : सरकारी अस्पताल में जब कोई मरीज इलाज के लिए पहुंचता है तो दवाई के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ती है. लोहिया अस्पताल में इलाज कराने के लिए पहुंचे जितेंद्र ने बताया कि पिछले कुछ दिनों से उनकी माताजी का इलाज लोहिया अस्पताल में चल रहा है कुछ दवाएं अंदर नहीं मिल पाती हैं. चार दवा अस्पताल में मिलती है तो तीन दवा बाहर से खरीदनी पड़ती है. इसी तरह से सिविल अस्पताल में इलाज कराने के लिए पहुंची नेहा तिवारी ने कहा कि अस्पताल में सभी दवाएं नहीं मिल पाती हैं. कुछ भी दवा अस्पताल में मिलती हैं. ऐसा एक भी दिन नहीं हुआ जब सभी दवा मिली हो. उन्होंने कहा कि अगर ऐसी सहूलियत अस्पताल में हो जाती है तो काफी अच्छा होगा. क्योंकि अस्पताल में बहुत सारे मरीज ऐसे आते हैं जो सक्षम नहीं होते हैं जो पूरी तरह से अस्पताल पर निर्भर होते हैं. अगर उन्हें यहीं पर दवाएं उपलब्ध हो जाएंगी तो उन्हें बाहर की दवाएं खरीदने की टेंशन नहीं होगी.
Medical Colleges में भी मिलेंगी ब्रांडेड सस्ती दवाएं, सरकार का है ऐसा प्लान
यूपी के तमाम जिलों अस्पतालों (Medical Colleges) को मेडिकल काॅलेज में कन्वर्ट किया जा रहा है. इसके तहत अब यूपी के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में इलाज कराने वालों को ब्रांडेड दवाएं सस्ती दर पर उपलब्ध कराने की योजना है.
लखनऊ : प्रदेश के तमाम जिला अस्पतालों को मेडिकल कॉलेज में बदला जा रहा है, लेकिन वहां पर व्यवस्था अच्छी नहीं होने के कारण राजधानी लखनऊ के सरकारी अस्पतालों में मरीज इलाज के लिए आते हैं. दवाओं की सरकारी अस्पतालों में सबसे बड़ी समस्या होती है. इसके अलावा मरीजों को निजी पैथोलॉजी से मजबूरी में महंगी दवाएं खरीदनी पड़ती हैं. चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव आलोक कुमार के मुताबिक यूपी के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में इलाज कराने वालों को अब ब्रांडेड दवाएं सस्ती दर पर मिल सकेंगी.
उन्होंने कहा कि सरकारी अस्पतालों में ब्रांडेड दवाएं सस्ती मिलने से मरीजों को काफी फायदा होगा. इसके लिए उन्हें कहीं बाहर भी नहीं दौड़ना होगा. मेडिकल कॉलेज ही उन्हें रियायती दर पर दवाएं उपलब्ध कराएंगे. कानपुर, आगरा, मेरठ, प्रयागराज, गोरखपुर और झांसी मेडिकल कॉलेजों में हॉस्पीटल एंड इन्वेस्टीगेशन रिवाल्विंग फंड स्थापित किए जाएंगे. चिकित्सा शिक्षा विभाग के इस प्रस्ताव को मंजूरी देते हुए राज्य सरकार ने बजट में इसके लिए 12 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है. दरअसल सरकारी अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों में जेनरिक दवाएं मिलती हैं. सर्जरी सहित अन्य मामलों में कई बार विभिन्न फार्मा कंपनियों की ब्रांडेड दवाएं ही ज्यादा असरदार होती हैं. ऐसे में डॉक्टरों के लिखने पर मरीजों के तीमारदारों को यह दवाएं बाहर से खरीदनी पड़ती हैं. चिकित्सा शिक्षा विभाग ने एचआरएफ का प्रस्ताव दिया था. अब सरकार सरकारी मेडिकल कॉलेजों में बने सुपर स्पेशियलिटी ब्लाकों में मरीजों की दवाओं के के लिए दो-दो करोड़ रुपये देगी.
उन्होंने कहा कि छह पुराने मेडिकल कॉलेजों में बने नए सुपर स्पेशियलिटी ब्लाॅकों में मरीजों को अस्पताल में ही सस्ती ब्रांडेड दवाएं उपलब्ध हो सकेंगी. इस प्रस्ताव पर सरकार ने बजट में धनराशि का प्रावधान किया है. जल्दी इसके लिए अस्पतालों में काम शुरू होगा. लगभग दो महीने में इसे शुरू कर दिया जाएगा ताकि जल्द से जल्द मरीजों को इसके जरिए दवाई उपलब्ध हो सके. अभी तक कंपनियों से सीधे ब्रांडेड दवा खरीद की व्यवस्था पीजीआई, लोहिया, केजीएमयू, जिम्स ग्रेटर नोएडा आदि संस्थान में थी, मगर अब ऐसा सभी मेडिकल कॉलेजों में भी हो सकेगा.
मरीजों को मिलेगा लाभ : सरकारी अस्पताल में जब कोई मरीज इलाज के लिए पहुंचता है तो दवाई के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ती है. लोहिया अस्पताल में इलाज कराने के लिए पहुंचे जितेंद्र ने बताया कि पिछले कुछ दिनों से उनकी माताजी का इलाज लोहिया अस्पताल में चल रहा है कुछ दवाएं अंदर नहीं मिल पाती हैं. चार दवा अस्पताल में मिलती है तो तीन दवा बाहर से खरीदनी पड़ती है. इसी तरह से सिविल अस्पताल में इलाज कराने के लिए पहुंची नेहा तिवारी ने कहा कि अस्पताल में सभी दवाएं नहीं मिल पाती हैं. कुछ भी दवा अस्पताल में मिलती हैं. ऐसा एक भी दिन नहीं हुआ जब सभी दवा मिली हो. उन्होंने कहा कि अगर ऐसी सहूलियत अस्पताल में हो जाती है तो काफी अच्छा होगा. क्योंकि अस्पताल में बहुत सारे मरीज ऐसे आते हैं जो सक्षम नहीं होते हैं जो पूरी तरह से अस्पताल पर निर्भर होते हैं. अगर उन्हें यहीं पर दवाएं उपलब्ध हो जाएंगी तो उन्हें बाहर की दवाएं खरीदने की टेंशन नहीं होगी.