लखनऊ : केंद्र और उत्तर प्रदेश की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी ने 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारियां तेज कर दी हैं. वैसे तो हाल ही में संपन्न हुए निकाय चुनाव, जिन्हें लोकसभा चुनावों का सेमीफाइनल माना जा रहा था, भाजपा के लिए उत्साहजनक परिणाम लेकर आए हैं. लोकसभा चुनाव में यही स्थिति रही, तो भाजपा के लिए यह अच्छी खबर साबित होगी, हालांकि कर्नाटक के विधानसभा चुनावों में भाजपा के हाथ से सत्ता छिन जाने और कांग्रेस पार्टी के पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आने से विपक्ष का मनोबल भी काफी बढ़ा हुआ है. यही नहीं पूरे देश में विपक्षी दल लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा के खिलाफ लामबंद होने के प्रयास में जुट गए हैं. अभी यह कहना मुश्किल है कि विपक्षी एकता कितनी कामयाब हो पाएगी और दल आपसी मतभेद भुलाकर कितना एका हो पाएंगे, लेकिन यदि ऐसा हुआ तो भाजपा की राह आसान नहीं होगी. कुछ और चुनौतियां भी हैं, जिन पर भाजपा और गठबंधन के साथियों को जवाब देना होगा.
देश में सबसे ज्यादा 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में चुनाव जीतने के लिए भाजपा एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है. पार्टी के दिग्गज नेता रणनीति बनाने में व्यस्त हैं. पार्टी का सबसे बड़ा फोकस विपक्षी एकता को भंग करने पर है. इस बार पार्टी आलाकमान ने प्रदेश की सभी 80 लोकसभा सीटों पर जीत का लक्ष्य रखा है. यह पहली बार है जब पार्टी ने सभी सीटों पर जीत का टारगेट खुद के लिए सेट किया है. यदि भाजपा अपने लक्ष्य के करीब रहती है तो उसके लिए दिल्ली की सत्ता आसान हो जाएगी और यदि विपक्षी दलों ने समझदारी दिखाते हुए मजबूत गठबंधन किया, तो भाजपा के लिए कड़ी चुनौती जरूर खड़ी होगी. कई अन्य मुद्दे भी हैं, जिनके लिए पार्टी नेतृत्व ने वादा किया था, लेकिन उन पर कोई काम नहीं हो पाया. महंगी बिजली, छुट्टा पशुओं की समस्या, किसानों को मुफ्त बिजली का वादा, युवाओं को रोजगार के अवसर प्रदान करने की बात, जैसे तमाम मुद्दे हैं, जिन पर यदि विपक्ष ने अच्छी तैयारी की और ठीक से घेरा तो भाजपा को जवाब देना कठिन होगा. आम आदमी पार्टी के पास अपने आंकड़े और दावे होते हैं, लेकिन इन सब से इतर जमीनी हकीकत अलग ही होती है. विपक्ष भाजपा के खिलाफ उत्तर प्रदेश में कितना संगठित हो पाएगा यह कहना कठिन है. बहुजन समाज पार्टी ने 2019 में सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और चुनाव के थोड़े दिन बाद ही गठबंधन तोड़ने की घोषणा कर दी थी. सपा और बसपा आगामी चुनावों में साथ आ पाएंगे ऐसा लगभग नामुमकिन सा लगता है. कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश में अपने वजूद के संकट से जूझ रही है. पार्टी का शीर्ष नेतृत्व सिर्फ चुनावी मौकों पर ही प्रकट होता है. इससे पार्टी की छवि और भी बिगड़ी है. ऐसे में कांग्रेस से ज्यादा उम्मीद रख पाना बेईमानी ही होगा.
यदि बात 2019 में हुए लोकसभा चुनावों की करें तो इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी में 303 सीटें हासिल कर पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनाई थी, जिनमें उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में से 62 सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी, जबकि दो लोकसभा सीटें भाजपा गठबंधन के सहयोगी अपना दल के खाते में गई थीं. भाजपा गठबंधन को 353 सीटों पर सफलता मिली थी, वहीं कांग्रेस पार्टी ने देश में कुल 52 सीटों पर जीत हासिल की थी, जिसमें उसे उत्तर प्रदेश से सिर्फ एक रायबरेली की सीट पर जीत हासिल हुई थी. कांग्रेस गठबंधन को 97 सीटें मिली थीं. उत्तर प्रदेश की एकमात्र लोकसभा सीट रायबरेली से सोनिया गांधी ने चुनाव जीता था, जबकि उनके पुत्र राहुल गांधी अपनी परंपरागत अमेठी सीट से स्मृति ईरानी के हाथों पराजित हुए. यह चुनाव उत्तर प्रदेश में चिर प्रतिद्वंदी रहे सपा-बसपा साथ मिलकर लड़े थे. उस समय कयास लगाए जा रहे थे कि शायद यह गठबंधन कोई बड़ा उलटफेर करने में कामयाब हो जाए, हालांकि ऐसा कुछ नहीं हुआ और गठबंधन में बसपा के खाते में 10 सीटें गईं, तो सपा को महज पांच सीटों पर संतोष करना पड़ा. सपा के खाते में गई रामपुर सीट से मोहम्मद आजम खान चुनकर आए थे तो आजमगढ़ सीट से खुद अखिलेश यादव चुनाव जीते थे. 2022 के चुनाव को देखते हुए आजम और अखिलेश ने अपनी-अपनी लोकसभा सीट छोड़कर विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया. उपचुनाव में भाजपा ने यह दोनों सीटें भी सपा से छीन लीं. मुरादाबाद, संभल, आजमगढ़, मैनपुरी और रामपुर सीटों को सपा का गढ़ माना जाता है. सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के निधन से रिक्त हुई मैनपुरी सीट पर अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव उपचुनाव में जीत कर आई हैं.
2014 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश से 71 सीटें जीती थीं, जबकि भाजपा के सहयोगी दल ने दो सीटों पर जीत हासिल की थीं, जबकि सपा को पांच और कांग्रेस को दो सीटों पर सफलता मिली थी. बहुजन समाज पार्टी का खाता भी नहीं खुल पाया था, हालांकि उसका वोट शेयर तीसरे नंबर पर 19.6% था. भाजपा का वोट शेयर 42.3%, जबकि सपा का 22.2 % था. देखना होगा कि क्या भारतीय जनता पार्टी 2014 जैसा करिश्मा उत्तर प्रदेश में दोहरा पाएगी.