लखनऊ : बिहार में जातीय जनगणना के साथ ही उत्तर प्रदेश में भी जातीय राजनीति जोर पकड़ रही है. कांग्रेस पार्टी ने दावा किया है कि यदि वह सत्ता में आई तो हर राज्य में जातीय जनगणना कराएंगे. अन्य दल भी जातीय जनगणना की मांग कर रहे हैं. हालांकि केंद्र और राज्य में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी जातीय जनगणना नहीं चाहती है. अब जबकि लोकसभा के चुनाव सन्निकट हैं, ऐसे में एक ही फार्मूला काम करता है कि 'जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी भागीदारी.' इस मामले में उत्तर प्रदेश में भी पिछड़ी जातियों का पलड़ा सब पर भारी है. स्वाभाविक है कि जिस पार्टी को पिछड़ों का समर्थन मिलेगा, वह सत्ता के निकट उतनी ही आसानी से पहुंच जाएंगे.
आबादी की बात करें तो उत्तर प्रदेश में पिछड़ी जातियों की संख्या सबसे अधिक है. यही कारण है कि लगभग सभी पार्टियों पिछड़ों पर डोरे डालने का कोई मौका नहीं छोड़तीं. वर्ष 1991 में प्रदेश में पिछड़ी जातियों की आबादी 41 फीसद आंकी गई थी, जबकि 2001 में जारी हुई हुकुम सिंह कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार तब प्रदेश में पिछड़ी जातियों की आबादी 54 प्रतिशत से भी ज्यादा थी. हालांकि इसे लेकर अलग-अलग दावे होते रहे हैं. बावजूद इसके प्रदेश में सबसे बड़ी आबादी पिछड़ी जातियों की है, इस बात पर कोई संशय नहीं है. यही कारण है कि इन जातियों में कई ने अपनी पार्टी बना ली है और सत्ता में साझेदार हैं. कुर्मियों की राजनीति करके अपना दल का उदय हुआ. अपना दल (एस) की मुखिया अनुप्रिया पटेल दूसरी बार केंद्र सरकार में मंत्री हैं, तो उनके पति आशीष पटेल प्रदेश सरकार में मंत्री. मां और दूसरी बहन पल्लवी पटेल भी अपना दल कमेरावादी बनाकर कुर्मियों की राजनीति करती हैं. यादवों के वर्चस्व से समाजवादी पार्टी ताकत में आई. इसी दम पर मुलायम सिंह यादव तीन बार प्रदेश के मुख्यमंत्री और एक बार रक्षा मंत्री बने. उनके पुत्र अखिलेश यादव भी मुख्यमंत्री रह चुके हैं. निषादों के हितों के नाम पर भी संजय निषाद ने पार्टी गठित की और अब मंत्रिपद की मलाई काट रहे हैं. राजभर वोट बैंक के लिए ओम प्रकाश राजभर ने अपनी पार्टी बनाई है, जिसका नाम है सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी. वह पहले भाजपा गठबंधन में मंत्री रह चुके हैं और जल्दी उनकी दोबारा ताजपोशी तय है.
प्रदेश में दूसरे नंबर पर दलित और तीसरे नंबर पर सवर्ण आबादी है. ऐसे में यदि राजनीतिक दलों की बात करें, तो समाजवादी पार्टी के पास पिछड़ों में 10-11 फीसद यादवों का समर्थन हासिल है. माना जाता है कि इस बिरादरी का अधिकांश वोट समाजवादी पार्टी को ही जाता है. इसके अलावा जो भी पिछड़ी जातियां हैं, उनमें बड़ी संख्या में भारतीय जनता पार्टी को अपना समर्थन देती रही हैं. सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, अपना दल सोनेलाल और निषाद पार्टी जैसे ओबीसी वोट आधारित राजनीतिक दल भाजपा के साथ गठबंधन में शामिल हैं. भारतीय जनता पार्टी में जातीय नेतृत्व का बंटवारा भी बहुत अच्छा है. केंद्र और राज्य में ओबीसी के पर्याप्त नेताओं को सरकार और पार्टी में प्रतिनिधित्व प्राप्त है. ऐसे में अभी तक के समीकरण बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में सबसे बड़े वोट बैंक पर भाजपा की स्थिति मजबूत है. हालांकि राजनीति में हवा बदलने में समय नहीं लगता. कांग्रेस गठबंधन और बसपा आगामी चुनावों में कोई चमत्कार दिखा पाएंगे इसकी उम्मीद कम ही है.
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