लखनऊ : एक तरफ कंपनियां जहां विद्युत नियामक आयोग में बिजली दरों में भारी बढ़ोतरी प्रस्तावित करते हुए वार्षिक राजस्व आवश्यकता व बिजली दर प्रस्ताव दाखिल कर चुकी हैं, वहीं दूसरी तरफ उपभोक्ता परिषद लगातार इसका विरोध कर रहा है. विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि "अगर प्रस्तावित बढ़ोतरी लागू हो गई तो एक बार उत्तर प्रदेश देश के टॉप तीन राज्यों में शामिल हो जाएगा, जहां सबसे अधिक बिजली दरें घरेलू विद्युत उपभोक्ताओं की होंगी. ऐसे में अभी भी समय है उत्तर प्रदेश सरकार को पूरे मामले पर हस्तक्षेप करना चाहिए. पहले जहां घरेलू विद्युत उपभोक्ताओं की दरें अन्तिम स्लैब 500 यूनिट के ऊपर होती थी अब वह अन्तिम स्लैब 300 यूनिट के ऊपर आ गई, जबकि लगातार उपभोक्ताओं के घरों में विद्युत से चलने वाले उपकरण की बढ़ोतरी हो रही है. पिछले 10 वर्षों में घरेलू उपभोक्ताओं के अन्तिम स्लैब की बिजली दरों में व्यापक बढ़ोतरी हुई है."
उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा का कहना है कि "उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग ने जब वर्ष 2022-23 का टैरिफ आदेश जारी किया था तो उसमें घरेलू विद्युत उपभोक्ताओं के अन्तिम स्लैब में भारी कटौती की थी. ग्रामीण घरेलू उपभोक्ताओं का पहले जो अन्तिम स्लैब छह रुपया प्रति यूनिट था, उसे 5.50 रुपया प्रति यूनिट अनुमोदित किया, जो शहरी घरेलू उपभोक्ताओं का अन्तिम स्लैब सात रुपए प्रति यूनिट था उसे नियामक आयोग ने रुपया 6.50 प्रति यूनिट अनुमोदित किया था. ऐसा इसलिए जिससे कि उत्तर प्रदेश देश में अधिकतम बिजली दर वाले पांच राज्यों की सूची से बाहर हो जाए, लेकिन हुआ क्या इस बार फिर प्रदेश की बिजली कंपनियों ने असंवैधानिक तरीके से भारी बढ़ोतरी प्रस्तावित कर दी, जबकि प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं का बिजली कंपनियों पर 25133 करोड़ सरप्लस भी निकल रहा था. ऐसे में बिजली दरों में कमी का प्रस्ताव देना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं किया. उपभोक्ता परिषद ने मुख्यमंत्री से जनहित में मांग उठाई है कि प्रदेश सरकार विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 108 के तहत विद्युत नियामक आयोग को प्रदेश के उपभोक्ताओं का बिजली कंपनियों पर निकल रहे सरप्लस के एवज में बिजली दरों में कमी का निर्देश दें."
यह भी पढ़ें : Murder In Sultanpur : शराबी ससुर ने लाठी से पीट-पीटकर चचेरी बहू की हत्या कर दी