लखनऊ. प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिला स्थित गोला गोकर्णनाथ विधानसभा सीट पर उपचुनाव को लेकर चुनाव प्रचार चरम पर है. इस सीट पर तीन नवंबर को मतदान होना है, जबकि मतगणना छह नवंबर को की जाएगी. इस सीट से 2022 में भाजपा प्रत्याशी अरविंद गिरि जीतकर आए थे. विगत दिनों ह्रदयाघात के कारण उनका निधन हो गया था, जिसके बाद यहां उप चुनाव हो रहा है. भाजपा ने अरविंद गिरि के पुत्र अमन गिरि को अपना प्रत्याशी बनाया है. वहीं सपा ने विनय तिवारी को अपना उम्मीदवार बनाया है. विनय 2012 के चुनावों में पहली बार जीत हासिल कर विधानसभा पहुंचे थे.
गौरतलब है कि अरविंद गिरि छात्र राजनीति से आए थे और समाजवादी विचारों से आकर्षित होकर उन्होंने सपा के टिकट पर 1996 में पहली बार विधानसभा का चुनाव जीता था. 2012 की पराजय को यदि छोड़ दें तो वह तीन बार सपा के टिकट पर जीतकर विधानसभा पहुंचे, जबकि 2017 में उन्होंने भाजपा का दामन थामा और 2017 और 2022 में भी विधानसभा चुनाव जीतने में कामयाब रहे. लोकप्रिय नेता और अपने पिता के आकस्मिक निधन के बाद उनके स्थान पर भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतरे अमन गिरि को निश्चित रूप से लोगों की सहानुभूति का लाभ मिलेगा. दूसरी बात यह है कि भाजपा का संगठन किसी भी चुनाव को हल्के में नहीं लेता. पार्टी इस उप चुनाव में भी अपनी पूरी ताकत झोंक रही है.
प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी आज भी लखीमपुर में हैं और वह पहले भी यहां का दौरा कर चुके हैं. प्रदेश के संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह कल ही पार्टी उम्मीदवार के पक्ष में प्रचार करके लौटे हैं. 31 अक्टूबर को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद यहां प्रचार के लिए जाने वाले हैं. पड़ोसी जिले शाहजहांपुर के निवासी और प्रदेश के सहकारिता मंत्री जेपीएस राठौर भी 30 और 31 अक्टूबर को लखीमपुर में उप चुनाव में प्रचार करने पहुंचेंगे. यही नहीं पार्टी के अन्य कई बड़े नेता, उप मुख्यमंत्री और अन्य मंत्री भी यहां प्रचार करने के लिए आ चुके हैं. ऐसे में भाजपा अपना दांव पूरी मजबूती से चल रही है और पार्टी के नेताओं को लगता है कि वह उप चुनाव में भी आसानी से जीत हासिल करने में कामयाब हो जाएंगे.
अब बात करते हैं समाजवादी पार्टी की. सपा ने इस सीट पर विनय तिवारी के चिरपरिचित चेहरे पर ही दांव लगाया है. वह इस सीट से ही पहली बार 2012 में विधान सभा चुनाव लड़े थे और जीत भी हासिल की थी. हालांकि 2017 और 2022 में उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा. इस उप चुनाव के कुछ दिन पहले पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के निधन के कारण पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव व पार्टी के अन्य नेता अंतिम संस्कार की रस्मों में व्यस्त हो गए. इस कारण कई बड़े नेता विनय तिवारी के पक्ष में प्रचार करने नहीं पहुंच सके. रही-सही कसर मोहम्मद आजम खान को सजा सुनाए जाने से पूरी हो गई. इस सीट पर प्रचार के लिए अभी तक अखिलेश यादव का कोई कार्यक्रम तय नहीं है. हालांकि आजमगढ़ के लोकसभा उप चुनाव में भी अखिलेश प्रचार के लिए नहीं गए थे. ऐसे में कम ही उम्मीद है कि अखिलेश यहां प्रचार के लिए जाएंगे.
दोनों दलों की स्थिति देखकर ऐसा नहीं लगता है कि मुकाबला बहुत कड़ा होने वाला है, लेकिन इससे यह सबक तो मिलता ही है कि किसी भी मुकाबले को कमतर नहीं आंकना चाहिए. भाजपा जिस तरह से रणनीति बनाकर चुनाव मैदान में उतरती है, जीतने की इच्छा रखने वाले को उससे दो कदम आगे सोचना पड़ेगा. यह बात और है कि इस सीट पर जीत-हार का सरकार और राजनीतिक दलों पर कोई खास फर्क भले न पड़ने वाला हो, लेकिन जीत और हार से मनोबल पर फर्क तो पड़ता ही है.
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