लखनऊ: कोरोना और ब्लैक फंगस जैसी बीमारियों का एक दौर चला है. महामारी ने लोगों को ही परेशान नहीं, बल्कि रोजगार को तबाह कर दिया है. रोजगार से जुड़े लोग बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. छोटे हों या बड़े उद्योगों की स्थिति ठीक नहीं रही. इसमें भी एमएसएमई सेक्टर बहुत ही खराब दौर से गुजर रहा है. उद्यमी से लेकर श्रमिक तक इसकी चपेट में आए हैं. कोविड संक्रमण की डर से श्रमिक एक बार फैक्ट्री से बाहर निकले तो वापस नहीं आए. इससे उनकी गृहस्थी तो प्रभावित हुई ही उद्योग भी ठप पड़ गए. उद्योगों की स्थिति ऐसी हो गई है कि वे सरकार की तरफ देख रहे हैं.
स्माल इंडस्ट्री मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के चेयरमैन शैलेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा कि कोविड की पहली लहर के बाद धीरे-धीरे रिकवर किया गया. मार्च में स्थिति थोड़ी अच्छी दिख रही थी. अचानक फिर से स्थितियां बिगड़ गई. सब कुछ बंद हो गया. राज्य सरकार मानती है कि करीब 90 लाख एमएसएमई इकाइयां प्रदेश में है. एमएसएमई सेक्टर पूरी तरह से प्रभावित हो चुका है. हमारे पास कार्यशील पूंजी नहीं है. पेट्रोल की कीमत बहुत बढ़ गई है. रॉ मटेरियल के डेढ़ गुना से दोगुना रेट बढ़ गए हैं. उद्यमी श्रीवास्तव कहते हैं कि मार्केट बंद होने की वजह से हमारे पास बाजार नहीं है. पहले सरकार ने 25 फीसदी सरकारी खरीद की बात कही थी. आज वह भी नहीं है. उद्योग के ऊपर चौतरफा मार पड़ी है. इस समय सरकार को उद्योग जगत को बड़ी मदद देनी चाहिए. कम से कम 30 प्रतिशत कार्यशील पूंजी.
उद्यमियों को नहीं मिला जीएसटी रिफंड
करोड़ों रुपए का जीएसटी बकाया है. रिफंड नहीं मिल रहा है. मुरादाबाद पीतल उद्योग का केंद्र है. एक्सपोर्ट का हब है. वहां के उद्यमियों को करीब 500 करोड़ रुपये का रिफंड मिलना है. इसके लिए शासन को पत्र लिखा गया है. उद्यमियों के समक्ष इस तरह की समस्याएं हैं. सरकार अनदेखी कर रही है. सरकार अगर शुरुआती दिनों में चेत जाती तो प्रदेश की जनता इतना परेशान नहीं होती. अगर सरकार अभी समय से नहीं चेती तो उद्योग में बहुत बड़ी कठिनाइयां आएंगी. 50 फीसदी से ज्यादा उद्योग बंदी के कगार पर पहुंच चुके हैं.
फार्मा फैक्ट्रियों में प्रशिक्षित श्रमिकों की कमी
फार्मास्यूटिकल क्षेत्र के व्यापारी सुमित सक्सेना कहते हैं कि पिछली बार की तुलना में इस बार हमको सरकार का ज्यादा सपोर्ट दिखाई दिया. ट्रांसपोर्ट खुला रखा. ट्रांसपोर्टेशन में दिक्कत नहीं आई है. इस बार कोरोना काफी खतरनाक रहा. इससे लोग ज्यादा प्रभावित हुए. इसकी वजह से जो श्रमिक हमको मिलते थे, वह नहीं मिल पाए. इसलिए उत्पादन में काफी दिक्कत आई. अभी भी आ रही है. हमारे पास जो प्रशिक्षित स्टॉप था, वह अपने घर चला गया. उसके परिजन आने ही नहीं दे रहे हैं. श्रमिकों के नहीं आने से कठिनाई है.
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अप्रैल में 90 प्रतिशत बिक्री कम हुई
पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन कहते हैं कि कोविड-19 का उद्योग पर बहुत बड़ा असर पड़ा है. विशेष तौर पर मध्यम उद्यम इकाइयों पर पड़ा है. बड़े उद्योग में ऑटोमोबाइल सेक्टर को ही लीजिए सबकी दुकानें बंद रहीं. इस दौरान वाहन नहीं बिके. उत्पादन भी रुक गया. इस इंडस्ट्री से जुड़े सभी उद्योग प्रभावित हुए. अप्रैल के महीने में 90 प्रतिशत तक बिक्री कम रही. अब माना जा रहा है कि कोरोना कर्फ्यू हट जाने के बाद मार्केट में मांग काफी हद तक वापस आ जाएगी.
कम ब्याज दर पर लोन मिलने से हो सकता समाधान
पूर्व नौकरशाह आलोक रंजन कहते हैं कि एमएसएमई सेक्टर की इकाइयों की तो उससे भी बड़ी समस्या है. इनको अपने पैरों पर खड़ा होने में काफी समय लगेगा. इनको पूंजी निवेश के लिए धनराशि की आवश्यकता है. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने ऋण की सुविधा दी है. नई योजना में सिडबी के माध्यम से 16 हजार करोड़ रुपये एमएसएमई सेक्टर और 15 हजार करोड़ रुपये टूरिज्म और हॉस्पिटैलिटी सेक्टर के लिए ऋण दिया जाएगा. समस्या यह कि उन्हें मिलने वाले ऋण का मार्केट रेट पर ब्याज दर है. वह हमारे लिए बहुत अधिक है. अगर ब्याज दर में शासन कुछ कम कर दे तो ही उद्यमियों को लाभ हो पाएगा. मांग घटने की वजह से माल की बिक्री नहीं हो पा रही है. सरकार को इस ओर भी ध्यान देना होगा, अगर सरकार ध्यान नहीं देगी तो बीमार हो चुका एमएसएमई सेक्टर बीमार ही रहेगा.