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अखिलेश ने रखी गठबंधन की नींव, फायदा पाकर भी माया ने छोड़ा साथ

जीरो सीट पर खड़ी बहुजन समाज पार्टी को अखिलेश यादव के कदम ने ऑक्सीजन ही नहीं दी बल्कि पूरी ताकत दे दी. वहीं बहुजन समाज पार्टी अध्यक्ष मायावती ने यह कह कर गठबंधन तोड़ दिया कि उन्हें यादवों का वोट नहीं मिला.

सपा बसपा गठबंधन में दरार.
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Published : Jun 4, 2019, 8:36 PM IST

लखनऊ: भारतीय जनता पार्टी की केंद्र में 2014 और उत्तर प्रदेश में 2017 में सरकार बनने के बाद एक दूसरे के धुर विरोधी समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी साथ आ गए. दोनों पार्टियों का गठबंधन हुआ. यह गठबंधन जिस उद्देश्य के साथ हुआ था, वह पूरा न हो सका. यही वजह रही कि दोनों दलों में एक बार फिर दरार पड़ती दिख रही है. गठबंधन को लेकर पहले से ही चर्चा आम थी कि लोकसभा चुनाव में जीत नहीं मिली तो गठबंधन टूट सकता है.

सपा बसपा गठबंधन में दरार.

बसपा सुप्रीमों ने कहा यादवों का नहीं मिला वोट

  • बहुजन समाज पार्टी अध्यक्ष मायावती ने जिस प्रकार से मंगलवार को यह कह कर गठबंधन तोड़ दिया कि उन्हें यादवों का वोट नहीं मिला.
  • इसके माध्यम से वह यह भी कहना चाहती हैं कि सपा का जनाधार समाप्त हो गया है.
  • इसके साथ ही उन्होंने कहा कि यह गठबंधन केवल राजनीतिक स्वार्थ के लिए ही नहीं है बल्कि हम दोनों के बीच आगे भी संबंध रहेंगे.
  • मायावती ने कहा कि राजनीतिक मजबूरियां होने के नाते यह गठबंधन टूट रहा है.
  • हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि आगे आवश्यकता पड़ने पर यह गठबंधन हो सकता है.
  • इससे साफ है कि मायावती ने अपने लिए सारी संभावनाएं खुली रखी हैं.

गठबंधन में दरार

  • समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का गठबंधन करने का अखिलेश यादव को श्रेय जाता है, लेकिन इसे तोड़ने का श्रेय मायावती को जाता है.
  • दरअसल 2017 में अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवा दी, तो उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था.
  • अखिलेश को यह लगने लगा कि 2014 के बाद 2017 में भी इस प्रकार से अगर बीजेपी ने जीत दर्ज की है तो हो सकता है कि 2019 में भी भाजपा की यही स्थिति बने.
  • ऐसे में समाजवादी पार्टी का खड़ा हो पाना मुश्किल होगा.
  • समाजवादी पार्टी के लिए अपनी पार्टी को मजबूत करने से ज्यादा भाजपा को रोकना जरूरी हो गया.
  • इसके साथ ही अखिलेश यादव पूरी शिद्दत से गठबंधन करने में जुट गए.

गठबंधन के लिए पहले आए थे अखिलेश

  • अखिलेश यादव बार-बार मीडिया में गठबंधन के लिए कहते रहें.
  • बहुजन समाज पार्टी की शुरुआती दिनों में कोई भी प्रतिक्रिया नहीं आई.
  • जब यह गठबंधन होने को हुआ तब भी अखिलेश काफी झुके दिखे.
  • जिस जगह पर गठबंधन का ऐलान होना था वहां अखिलेश यादव काफी पहले पहुंचे.
  • अखिलेश के पहुंचने के करीब आधे घंटे बाद मायावती पहुंचीं.
  • जीरो सीट पर खड़ी बहुजन समाज पार्टी को अखिलेश यादव के इस कदम ने ऑक्सीजन ही नहीं दी बल्कि पूरी ताकत दे दी.
  • अखिलेश यादव के झुक कर गठबंधन करना उनके समर्थकों को भी अच्छा नहीं लगा.

मायावती ने कई बार दिए झटके

  • बसपा अध्यक्ष मायावती ने पहले गठबंधन के लिए अखिलेश यादव को झुकाया.
  • जब गठबंधन हो गया तो भी वह बार-बार झटके देती रहीं.
  • चुनावी सभाओं के दौरान उन्होंने यहां तक कहा कि समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं के व्यवहार में सुधार की जरूरत है.
  • इसी बीच उन्होंने यह भी कहा कि अगर वोट ट्रांसफर होता है, तो गठबंधन जीतेगा.
  • ऐसे ही तमाम चीजों पर वह सपा को कमतर साबित करती रहीं.
  • अब सपा से ज्यादा सीटें मिलने के बावजूद मायावती ने गठबंधन तोड़ दिया.
  • दरअसल इसके पीछे की भी कहानी बताई जा रही है कि अखिलेश के खेमे में चर्चा शुरू हो गयी थी कि बसपा का वोट सपा को नहीं मिला.
  • इस चर्चा को वह भाप गयीं और सपा से वह खुद अलग हो गयीं.


बुआ-भतीजे का जो रिश्ता था, उसमें पहले ही स्थायित्व नहीं था क्योंकि शिवपाल ने कहा था कि हमारे तो कोई बहन ही नहीं है तो वह कैसे हो सकती हैं. शुरुआत से जो अटकलें थी वह अब सही साबित हो गई हैं. जब से अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी की नेतृत्व कर रहे हैं तब से वह लगातार गर्त में जा रही हैं. जहां तक भाजपा कि बात है हम लगातार जनता के बीच रहते हैं. जनता ने हमारे काम को आशीर्वाद दिया है.
-श्रीकांत शर्मा, मंत्री व उप्र सरकार के प्रवक्ता

लखनऊ: भारतीय जनता पार्टी की केंद्र में 2014 और उत्तर प्रदेश में 2017 में सरकार बनने के बाद एक दूसरे के धुर विरोधी समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी साथ आ गए. दोनों पार्टियों का गठबंधन हुआ. यह गठबंधन जिस उद्देश्य के साथ हुआ था, वह पूरा न हो सका. यही वजह रही कि दोनों दलों में एक बार फिर दरार पड़ती दिख रही है. गठबंधन को लेकर पहले से ही चर्चा आम थी कि लोकसभा चुनाव में जीत नहीं मिली तो गठबंधन टूट सकता है.

सपा बसपा गठबंधन में दरार.

बसपा सुप्रीमों ने कहा यादवों का नहीं मिला वोट

  • बहुजन समाज पार्टी अध्यक्ष मायावती ने जिस प्रकार से मंगलवार को यह कह कर गठबंधन तोड़ दिया कि उन्हें यादवों का वोट नहीं मिला.
  • इसके माध्यम से वह यह भी कहना चाहती हैं कि सपा का जनाधार समाप्त हो गया है.
  • इसके साथ ही उन्होंने कहा कि यह गठबंधन केवल राजनीतिक स्वार्थ के लिए ही नहीं है बल्कि हम दोनों के बीच आगे भी संबंध रहेंगे.
  • मायावती ने कहा कि राजनीतिक मजबूरियां होने के नाते यह गठबंधन टूट रहा है.
  • हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि आगे आवश्यकता पड़ने पर यह गठबंधन हो सकता है.
  • इससे साफ है कि मायावती ने अपने लिए सारी संभावनाएं खुली रखी हैं.

गठबंधन में दरार

  • समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का गठबंधन करने का अखिलेश यादव को श्रेय जाता है, लेकिन इसे तोड़ने का श्रेय मायावती को जाता है.
  • दरअसल 2017 में अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवा दी, तो उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था.
  • अखिलेश को यह लगने लगा कि 2014 के बाद 2017 में भी इस प्रकार से अगर बीजेपी ने जीत दर्ज की है तो हो सकता है कि 2019 में भी भाजपा की यही स्थिति बने.
  • ऐसे में समाजवादी पार्टी का खड़ा हो पाना मुश्किल होगा.
  • समाजवादी पार्टी के लिए अपनी पार्टी को मजबूत करने से ज्यादा भाजपा को रोकना जरूरी हो गया.
  • इसके साथ ही अखिलेश यादव पूरी शिद्दत से गठबंधन करने में जुट गए.

गठबंधन के लिए पहले आए थे अखिलेश

  • अखिलेश यादव बार-बार मीडिया में गठबंधन के लिए कहते रहें.
  • बहुजन समाज पार्टी की शुरुआती दिनों में कोई भी प्रतिक्रिया नहीं आई.
  • जब यह गठबंधन होने को हुआ तब भी अखिलेश काफी झुके दिखे.
  • जिस जगह पर गठबंधन का ऐलान होना था वहां अखिलेश यादव काफी पहले पहुंचे.
  • अखिलेश के पहुंचने के करीब आधे घंटे बाद मायावती पहुंचीं.
  • जीरो सीट पर खड़ी बहुजन समाज पार्टी को अखिलेश यादव के इस कदम ने ऑक्सीजन ही नहीं दी बल्कि पूरी ताकत दे दी.
  • अखिलेश यादव के झुक कर गठबंधन करना उनके समर्थकों को भी अच्छा नहीं लगा.

मायावती ने कई बार दिए झटके

  • बसपा अध्यक्ष मायावती ने पहले गठबंधन के लिए अखिलेश यादव को झुकाया.
  • जब गठबंधन हो गया तो भी वह बार-बार झटके देती रहीं.
  • चुनावी सभाओं के दौरान उन्होंने यहां तक कहा कि समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं के व्यवहार में सुधार की जरूरत है.
  • इसी बीच उन्होंने यह भी कहा कि अगर वोट ट्रांसफर होता है, तो गठबंधन जीतेगा.
  • ऐसे ही तमाम चीजों पर वह सपा को कमतर साबित करती रहीं.
  • अब सपा से ज्यादा सीटें मिलने के बावजूद मायावती ने गठबंधन तोड़ दिया.
  • दरअसल इसके पीछे की भी कहानी बताई जा रही है कि अखिलेश के खेमे में चर्चा शुरू हो गयी थी कि बसपा का वोट सपा को नहीं मिला.
  • इस चर्चा को वह भाप गयीं और सपा से वह खुद अलग हो गयीं.


बुआ-भतीजे का जो रिश्ता था, उसमें पहले ही स्थायित्व नहीं था क्योंकि शिवपाल ने कहा था कि हमारे तो कोई बहन ही नहीं है तो वह कैसे हो सकती हैं. शुरुआत से जो अटकलें थी वह अब सही साबित हो गई हैं. जब से अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी की नेतृत्व कर रहे हैं तब से वह लगातार गर्त में जा रही हैं. जहां तक भाजपा कि बात है हम लगातार जनता के बीच रहते हैं. जनता ने हमारे काम को आशीर्वाद दिया है.
-श्रीकांत शर्मा, मंत्री व उप्र सरकार के प्रवक्ता

Intro:लखनऊ। भारतीय जनता पार्टी की केंद्र में 2014 और उत्तर प्रदेश में 2017 में सरकार बनने के बाद एक दूसरे के धुर विरोधी समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी साथ आ गए। दोनों पार्टियों का गठबंधन हुआ। यह गठबंधन जिस उद्देश्य के साथ हुआ था। वह पूरा ना हो सका। यही वजह रही कि दोनों दलों में एक बार फिर दरार पड़ गई है। गठबंधन को लेकर पहले से ही चर्चा आम थी कि लोकसभा चुनाव में जीत नहीं मिली तो टूट जाएगा। सीटें जीत गए तो भी विधानसभा चुनाव में अलग ही लड़ेंगे क्योंकि दोनों नेता यूपी का सीएम बनना चाहेंगे।


Body:बहुजन समाज पार्टी अध्यक्ष मायावती ने जिस प्रकार से आज यह कह के गठबंधन तोड़ दिया कि उन्हें यादवों का वोट नहीं मिला, इसके माध्यम से वह यह भी कहना चाही हैं कि सपा का जनाधार समाप्त हो गया है।

इसके साथ ही उन्होंने कहा कि यह गठबंधन केवल राजनीतिक स्वार्थ के लिए ही नहीं है बल्कि हम दोनों के बीच आगे भी संबंध रहेंगे। लेकिन राजनीतिक मजबूरियां होने के नाते यह गठबंधन टूट रहा है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि आगे आवश्यकता पड़ने पर यह गठबंधन हो सकता है। इससे साफ है कि मायावती ने अपने लिए सारी संभावनाएं खुली रखी हैं।

गठबंधन की नीव रखी अखिलेश ने तोड़ी मायावती

समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का गठबंधन करने का अखिलेश यादव को श्रेय जाता है लेकिन इसे तोड़ने का श्रेय मायावती को जाता है। दरअसल जब 2017 में अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवा दी तो उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था। उन्हें यह लगने लगा की 2014 के बाद 2017 में भी इस प्रकार से अगर बीजेपी ने जीत दर्ज की है तो हो सकता है कि 2019 में भी भाजपा की यही स्थिति बने। ऐसे में समाजवादी पार्टी का खड़ा हो पाना मुश्किल होगा। समाजवादी पार्टी के लिए अपनी पार्टी को मजबूत करने से ज्यादा भाजपा को रोकना जरूरी हो गया। इसके साथ ही अखिलेश यादव पूरी शिद्दत से गठबंधन करने में जुट गए।

अखिलेश यादव बार-बार मीडिया में गठबंधन के लिए कहते रहे। बहुजन समाज पार्टी की शुरुआती दिनों में कोई भी प्रतिक्रिया नहीं आई।।जब यहबगठबंधन होने को हुआ तब भी अखिलेश काफी झुके दिखे। जिस जगह पर गठबंधन का ऐलान होना था वहां अखिलेश यादव काफी पहले पहुंचे। वह बसपा अध्यक्ष मायावती का इंतजार कर रहे थे। अखिलेश के पहुंचने के करीब आधे घंटे बाद मायावती पहुंचीं। उनके स्वागत में बाहर आकर खड़े हुए। जीरो सीट पर खड़ी बहुजन समाज पार्टी को अखिलेश यादव के इस कदम ने ऑक्सीजन ही नहीं दी बल्कि पूरी ताकत दे दी।

अखिलेश यादव के झुक कर गठबंधन करना उनके समर्थकों को भी अच्छा नहीं लगा। अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव ने मायावती के पैर छुए। इसका भी मायावती ने जिक्र किया। उन्होंने कहा कि अखिलेश और उनकी पत्नी ने उन्हें बहुत सम्मान दिया। वहीं मायावती के भतीजे आकाश ने नेता जी(मुलायम सिंह यादव) का भी पैर नहीं छुआ। अखिलेश समर्थकों में इसको लेकर भी नाराजगी रही। मीडिया जगत में भी यह बात खूब चर्चा में रही।

मायावती ने कई बार दिए झटके

बसपा अध्यक्ष मायावती ने पहले गठबंधन के लिए अखिलेश यादव को झुकाया। जब गठबंधन हो गया तो भी वह बार-बार झटके देती रहीं। चुनावी सभाओं के दौरान उन्होंने यहां तक कहा कि समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं के व्यवहार में सुधार की जरूरत है। इसी बीच उन्होंने यह भी कहा कि अगर वोट ट्रांसफर होता है तो गठबंधन जीतेगा। ऐसे ही तमाम चीजों पर वह सपा को कमतर साबित करती रहीं। अब सपा से ज्यादा सीटें मिलने के बावजूद मायावती ने गठबंधन तोड़ दिया। दरअसल इसके पीछे की भी कहानी बताई जा रही है कि अखिलेश के खेमे में चर्चा शुरू हो गयी थी कि बसपा का वोट सपा को नहीं मिला। इस चर्चा को वह भाप गयीं और सपा से वह खुद अलग हो गयीं।


श्रीकांत शर्मा ने कहा कि बुआ भतीजे का जो रिश्ता था। उसमें पहले ही स्थायित्व नहीं था क्योंकि शिवपाल जी ने कहा था कि हमारे तो कोई बहन ही नहीं है तो वह कैसे हो सकती हैं। शुरुआत से जो अटकलें थी वाह अब सही साबित हो गई हैं। जब से अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी का नेतृत्व कर रहे तब से वह लगातार गर्त में जा रही है। स्पा कहां तक गर्त में जाएगी, यह अखिलेश यादव अपने वक्तव्य से बताएंगे। जहां तक भाजपा की बात है हम लगातार जनता के बीच रहते हैं। जनता ने हमारे काम को आशीर्वाद दिया है। हमारे नेता देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी जी का जो गठजोड़ था वह पहले ही देश और प्रदेश की जनता से मजबूत गठजोड़ था। इस मजबूत गठजोड़ से जब मौका परस्त सपा बसपा गठजोड़ टकराया तो उसका चूर चूर होना सुनिश्चित था। निश्चित था। आगे इसकी दिशा क्या होगी, मुझे लगता है यह उनके घर का मसला है। बुआ जी, चाचा जी, भतीजा जी और पिताजी। इसलिए इस पर क्या कहना।

बाईट- श्रीकांत शर्मा, मंत्री व उप्र सरकार के प्रवक्ता

बाईट-सियाराम पांडेय शांत, स्तंभकार


Conclusion:
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