लखनऊ: राजधानी के हजरतगंज में स्वतंत्रता सेनानी ऊदा देवी के इतिहास को पाठ्यक्रमों में शामिल करने को लेकर लोगों ने पैदल मार्च किया. इस दौरान मोहनलालगंज सांसद कौशल किशोर भी मौजूद रहे. यह प्रदर्शन सारथ महासंघ के यूथ ब्रिगेड के बैनर तले किया गया.
बता दें कि ऊदा देवी, एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थीं, जिन्होंने 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारतीय सिपाहियों की ओर से युद्ध में भाग लिया था. ये अवध के छठे नवाब वाजिद अली शाह के महिला दस्ते की सदस्य थीं. इस विद्रोह के समय हुई लखनऊ की घेराबंदी के समय लगभग 2 हजार भारतीय सिपाहियों के शरणस्थल सिकन्दर बाग पर ब्रिटिश फौजों द्वारा चढ़ाई की गई थी. 16 नवंबर 1857 को बाग में शरण लिए इन 2 हजार भारतीय सिपाहियों का ब्रिटिश फौजों द्वारा संहार कर दिया गया था.
बता दें कि, इस लड़ाई के दौरान ऊदा देवी ने पुरुषों के वस्त्र धारण कर स्वयं को एक पुरुष के रूप में तैयार किया था. लड़ाई के समय वो अपने साथ एक बंदूक और कुछ गोला बारूद लेकर एक ऊंचे पेड़ पर चढ़ गई थीं. उन्होंने हमलावर ब्रिटिश सैनिकों को सिकंदर बाग में तब तक प्रवेश नहीं करने दिया था, जब तक कि उनका गोला बारूद खत्म नहीं हो गया.
ऊदा देवी 16 नवम्बर 1857 को 36 अंग्रेज सैनिकों को मौत के घाट उतारकर वीरगति को प्राप्त हुई थीं. वहीं जब वे पेड़ से उतर रही थीं, तभी ब्रिटिश सैनिकों ने उन्हें गोली मार दी थी. इसके बाद ब्रिटिश सल्तनत के सिपाहियों ने बाग में प्रवेश किया तो उन्होंने ऊदा देवी का पूरा शरीर गोलियों से छलनी कर दिया. इस लड़ाई का स्मरण कराती ऊदा देवी की एक मूर्ति सिकन्दर बाग परिसर में कुछ ही वर्ष पूर्व स्थापित की गई है.
सार्जेण्ट फोर्ब्स मिशेल ने सिकंदर बाग के उद्यान में स्थित पीपल के एक बड़े पेड़ की ऊपरी शाखा पर बैठी एक ऐसी स्त्री का विशेष उल्लेख किया है, जिसने अंग्रेजी सेना के लगभग बत्तीस सिपाही और अफसर मारे थे. लंदन टाइम्स के संवाददाता विलियम हावर्ड रसेल ने लड़ाई के समाचारों का जो डिस्पैच लंदन भेजा, उसमें पुरुष वेशभूषा में एक स्त्री द्वारा पीपल के पेड़ से फायरिंग करने और अंग्रेजी सेना को भारी क्षति पहुंचाने का उल्लेख प्रमुखता से किया गया है. संभवतः लंदन टाइम्स में छपी खबरों के आधार पर ही कार्ल मार्क्स ने भी अपनी टिप्पणी में इस घटना को समुचित स्थान दिया. इन्हें इसकी प्रेरणा अपने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पति मक्का पासी से प्राप्त हुई थी.
10 जून 1857 को लखनऊ के चिनहट कस्बे के निकट इस्माईलगंज में हेनरी लॉरेंस के नेतृत्व में ईस्ट इंडिया कम्पनी की फौज के साथ मौलवी अहमद उल्लाह शाह की अगुवाई में संगठित, विद्रोही सेना की ऐतिहासिक लड़ाई में मक्का पासी वीरगति को प्राप्त हुए थे. इसके प्रतिशोध स्वरूप ऊदा देवी ने कानपुर से आई काल्विन कैम्बेल सेना के 32 सिपाहियों को मौत के घाट उतार दिया था. इस लड़ाई में वे खुद भी वीरगति को प्राप्त हुईं. कहा जाता है इस स्तब्ध कर देने वाली वीरता से अभिभूत होकर काल्विन कैम्बेल ने हैट उतारकर शहीद ऊदा देवी को श्रद्धांजलि दी थी.