लखनऊ: केंद्र और प्रदेश में बीजेपी की सहयोगी अपना दल को उत्तर प्रदेश में स्वतंत्र देव सिंह के बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष बनने से परेशानी है. अपना दल को लग रहा है कि उनके वोटर्स पर बीजेपी ने सेंधमारी शुरू कर दी है. अपना दल को यह भी लग रहा है कि कहीं स्वतंत्र देव सिंह के सहारे बीजेपी अपने से अपना दल को 'स्वतंत्र' तो करना नहीं चाह रही है.
वजह साफ है अपना दल के पास कुर्मी वोटर्स की ताकत है, इसीलिए बीजेपी सहयोगी दल के रूप में अपना दल को अपने साथ मिलाकर चल रही थी. अब जब स्वतंत्र देव सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया है, तो कुर्मी समाज का आकर्षण बीजेपी की तरफ बढ़ सकता है.
लोकसभा चुनाव में कई बार अल्टीमेटम देती नजर आईं थी अनुप्रिया:
मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में अपना दल की अध्यक्ष रहीं अनुप्रिया पटेल को उत्तर प्रदेश में बेहतर परिणाम देने का इनाम मिला था. मोदी सरकार में अनुप्रिया को केंद्रीय राज्य मंत्री बनाया था. इस बार के लोकसभा चुनाव से पहले अनुप्रिया पटेल बीजेपी को सीटों के बंटवारे में कई बार अल्टीमेटम देती नजर आईं. चुनाव में दोनों का गठबंधन तो नहीं टूटा, लेकिन बीजेपी ने चुनाव नतीजों के बाद अनुप्रिया को किनारे जरूर कर दिया.
मोदी पार्ट 2 में अनुप्रिया को नहीं मिली कोई अहम जिम्मेदारी:
लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी की सत्ता में वापसी हुई, लेकिन अनुप्रिया पटेल की केंद्रीय मंत्रिमंडल में वापसी न हो पाई. वह सिर्फ सांसद ही बनकर रह गईं और इस तरह बीजेपी ने अनुप्रिया से लोकसभा चुनाव से पहले सीटों के बंटबारे को लेकर दी जा रही धमकी का हिसाब-किताब बराबर कर लिया. इसके बाद तो जैसे बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में कुर्मी समाज के वोटर्स पर अपनी नजर गड़ा दी है. वर्तमान सांसद व अपना दल की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल को मजबूती देने वाले कुर्मी समाज पर बीजेपी का वर्चस्व स्थापित करने के लिए ही बीजेपी ने यहां पर स्वतंत्र देव सिंह को कुर्मी समाज की राजनीति बीजेपी के पक्ष में मोड़ने के लिए प्रदेश अध्यक्ष की कमान स्वतंत्र देव सिंह को थमा दी.
अनुप्रिया को 2022 विधानसभा चुनावों में लग सकता है झटका:
इससे अब अनुप्रिया की पार्टी को कुर्मी समाज के बीजेपी की तरफ खिसकने का डर सा सताने लगा है. हालांकि दोनों पार्टियों के नेता यह जरूर कह रहे हैं की दोनों एक-दूसरे के सहयोगी हैं. ऐसे में हम अपने अपने लिए काम कर रहे हैं किसी का भी किसी से नुकसान नहीं है, लेकिन साफ जाहिर है कि केंद्र और प्रदेश में बीजेपी की सरकार है और कुर्मी वर्ग का ही बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष बन गया है तो कुर्मियों का सत्ता की तरफ आकर्षण बढ़ना भी तय माना जा रहा है. इससे अनुप्रिया की पार्टी को आगामी 2022 के विधानसभा चुनावों में झटका भी लग सकता है.
जी नहीं, स्वतंत्र देव सिंह के बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष बनने से अपना दल को किसी भी तरह का नुकसान नहीं होगा. हम उनके सहयोगी दल हैं वह हमारे सहयोगी दल हैं. हमारा उनके संगठन में कोई दखल नहीं है उनका हमारे संगठन में कोई दखल नहीं. यह अच्छी बात है कि पिछड़े बढ़ रहे हैं, चाहे किसी भी दल में हों या सर्विस में या कहीं और हमारा उद्देश्य ही है कि पिछड़ों को बढ़ावा मिले.
- राजेश पटेल, प्रवक्ता अपना दल (सोनेलाल)
ये अपना दल 1993 के बाद बना और अपना अस्तित्व जमाता चला आ रहा है. भले ही विधानसभा में उसके कोई सदस्य न रहे हों, लेकिन सभी चुनावों में कैंडिडेट खड़ा करता रहा है. जब से बीजेपी से अपना दल का गठबंधन हुआ तब से उसे दो सांसद मिले और एमएलए भी मिले. हम एक-दूसरे के सहयोगी हैं उनके काम में हमारा हस्तक्षेप नहीं है और हमारे काम में उनका कोई हस्तक्षेप नहीं है.
- जुगल किशोर, प्रवक्ता, भारतीय जनता पार्टी
भले ही बीजेपी और अपना दल के नेता एक दूसरे को अपना सहयोगी बता रहे हों, एक दूसरे के संगठन में दखल न देने की बात कह रहे हों, लेकिन दोनों को ही मालूम है कि कुर्मी समाज के सहारे दोनों ही पार्टियों को अपनी राजनीति चमकानी है. उन पर अपना हक जमाना है. अब यह तो चुनाव में ही पता चलेगा कि कुर्मी समाज का विश्वास जीतने में अपना दल और भाजपा में कौन कामयाब होता है.