लखनऊ: बाबासाहेब भीमराव आम्बेडकर विश्वविद्यालय के बायोटेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सुनील जी बाबू ने दुनिया भर में कोविड-19 वैक्सीन के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले वैक्सीन उत्पादन रणनीतियों पर एक समीक्षा लेख प्रकाशित किया है. सार्स-कोव-2 वैक्सीन और उनके लैंडस्केप की संभावनाएं. ( प्रोस्पेक्ट्स ऑफ SARS-CoV-2 वैक्सीन्स एंड देयर लैंडस्केप), शीर्षक पर प्रकाशित इस लेख में उन्होंने कोविड-19 टीकों के लिए क्लीनिकल परीक्षणों के तहत विभिन्न टीकों और उनके उत्पादन प्लेटफार्मों पर एक समीक्षा प्रस्तुत की है.
जानिए इसके बारे में
इस समीक्षा लेख में उन्होंने विभिन्न वैक्सीन उत्पादन रणनीतियों का वर्णन किया है, जिसमें डीएनए / आरएनए और कोडन ऑप्टिमाइज़ेशन रणनीतियों के रूप में नए, अत्याधुनिक प्लेटफॉर्म शामिल हैं, जिनका प्रयोग पहली बार कोविड -19 वैक्सीन के उत्पादन में किया गया है. इन रणनीतियों के प्रयोग से टीकों के उत्पादन समय में कमी आई और कोविड-19 के टीके 4-5 महीने के रिकॉर्ड समय में पहले चरण के परीक्षणों के लिए तैयार हो गए. तीसरे चरण के नैदानिक परीक्षणों में पहुच चुके कोविड-19 टीकों पर भी विस्तृत जानकारी इस लेख के माध्यम से उपलब्ध कराई गई है. यह लेख इस बात की भी जानकारी प्रदान करता है कि कैसे आरएनए / डीएनए टीके और कोडन ऑप्टिमाइज़ेशन टेक्नोलॉज़ी ने टीके के उत्पादन में लगने वाले समय को कम कर दिया.
डॉ. सुनील जी बाबू ने अपने लेख में प्रारंभिक कोरोना वायरल प्रकोप - सार्स कोव और मर्स कोव पर भी चर्चा की, जिस पर पहले से शोध कार्य चल रहा था. इस शोध से अर्जित ज्ञान ने भी सार्स-कोव-2 के लिए वैक्सीन बनाने में मदद की. इसके अलावा, डॉ सुनील बाबू ने कोविड-19 टीका बनाने में आने वाली चुनौतियों के बारे में विस्तार से बताया और आम तौर पर लोगों को कोविड-19 टीके की उपलब्धता का अनुमान लगाया. उन्होंने बताया कि कोविड-19 टीके वर्ष 2021 के मध्य में आम जनता के लिए उपलब्ध होंगे. हालांकि, ये टीके प्रारंभिक दौर में 100 प्रतिशत प्रभावी नहीं होंगे, लेकिन अनुमानित आधार पर ये टीके 70 से 80 प्रतिशत प्रभावकारिता गणितीय मॉडलिंग के माध्यम से बीमारी को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. यह लेख इस तथ्य का भी विश्लेषण प्रस्तुत करता है कि ये टीके कितने समय तक उपयोगी होंगे और विभिन्न आयु वर्ग पर यह किस तरह से प्रभाव डालेंगे.