लखनऊ: प्रदेश में धड़ल्ले से उपयोग की जा रही पॉलीथिन पर एक बार फिर उत्तर प्रदेश शासन की नजरें टेढ़ी हुई है. अपर मुख्य सचिव रजनीश दुबे ने शनिवार को जारी निर्देश में कहा कि प्रदेश में 50 माइक्रॉन से कम की पॉलीथिन को प्रतिबंधित लगा हुआ है. इसकी बिक्री व इस्तेमाल पर पूरी तरह रोक लगी हुई है. बिक्री की निगरानी के लिए नगर निगम के अधिकारियों, नगर पंचायत एवं नगर पालिकाओं के अध्यक्षों को जिम्मेदारी दी गई है और निर्देश दिए गए हैं कि उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई होगी.
कैंसर की संभावना 80 फीसद अधिक
अपर मुख्य सचिव ने कहा कि विशेषज्ञों के मुताबिक पॉलीथिन हर रूप से जानलेवा है. यह बिना जलाए भी खतरनाक गैस छोड़ती है. पॉलीथिन को यदि नहीं भी जलाएं तो यह क्लोराइड, बेंजीन, विनायल और इथेनॉल ऑक्साइड का उत्सर्जन कर हवा में विष घोलती है. इसी वजह से पॉलीथिन फैक्ट्री में कार्य करने वालों में सामान्य लोगों की तुलना में कैंसर का खतरा 70-80 फीसद अधिक होता है. विशेषज्ञों की मानें तो पॉलीथिन से बनने वाली गैस काफी घातक होती है. प्लास्टिक की बोतल, कप आदि से लगातार चाय या पानी पीने से भी कैंसर की संभावना काफी बढ़ जाती है.
पॉलीथिन फेंकना भी पर्यावरण के लिए खतरनाक
केवल इस्तेमाल ही नहीं बल्कि चाय-कॉफी या पानी पीकर प्लास्टिक को इधर-उधर फेंकना भी खतरनाक है. यही नहीं सब्जी-फल खरीदारी करने के बाद उपयोग की गई पॉलीथिन को भूमि में गाड़ना भी खतरनाक है. इससे भूमि बंजर बन जाती है. यह पानी को भी दूषित करती है. इस पॉलीथिन के संपर्क में आने वाले पानी के उपयोग से खासी, दमा, आंखों में जलन, चक्कर आना, मांसपेशियों का शिथिल होना, दिल की बीमारी आदि होने की संभावना काफी बढ़ जाती है. पॉलीथिन का उपयोग हर रूप में घातक है, लेकिन रोजमर्रा की जरूरत है.
लोगों की सेहत को बिगड़ता है प्लास्टिक
अपर मुख्य सचिव रजनीश दुबे ने कहा कि पॉलीथिन पर्यावरण के लिए अत्यंत हानिकारक है. इसको रोकने की जरूरत है. पॉलिथीन और प्लास्टिक लोगों की सेहत बिगाड़ रहे हैं. शहर का ड्रेनेज सिस्टम अक्सर पॉलीथिन से भरा मिलता है. नालियां और नाले जाम हो जाते हैं. 40 माइक्रॉन से कम पतली पॉलीथिन पर्यावरण एवं स्वास्थ्य के लिए बेहद नुकसान दायक होती है. पॉलीथिन की जगह हमें कपड़े या जूट के थैलों का प्रयोग करना चाहिए. पॉलीथिन प्रतिबंध को सफल बनाने के लिए दुकानों, ठेलों व अन्य से लगातार पॉलीथिन जब्त की जा रही.
कम होती है पॉलिथिन रीसाइक्लिंग की संभावना
विशेषज्ञों के मुताबिक पॉलीथिन को सड़ने-गलने में एक हजार वर्ष से अधिक समय लग जाता है. यह भूमि की उर्वरा शक्ति को खत्म कर देती है. इससे पेड़-पौधों को उनकी जरूरत का पोषक तत्व नहीं मिल पाता है. इससे होने वाले नुकसान से हर कोई वाकिफ है, लेकिन इसका कोई विकल्प नहीं है. रीसाइक्लिंग आदि के मद्देनजर इसके उपयोग के लिए मानक निर्धारित किया गया, लेकिन उसकी भी अनदेखी हो रहती है. पॉलीथिन प्रकृति-पर्यावरण और मानव व जीवों से लेकर आधारभूत संसाधनों तक के लिए एक बड़ा खतरा बन गया है.
चौपाया जानवरों की मौत का कारण है पॉलीथिन
अपर मुख्य सचिव ने कहा कि पॉलीथिन में पैक कर कूड़े को फेंकना भी जानवरों के लिए काफी खतरनाक साबित हो रहा है. जिस पॉलीथिन में हम अपने कूड़े को रखकर बाहर फेंकते हैं. कई बार सड़क पर विचरण कर रहे पशु खा जाते हैं. यह उसकी मौत का सबसे बड़ा कारण बनती है.
कागज व कपड़े के बने कैरी बैग ही है विकल्प
पॉलीथिन के बदले कागज या कपड़े के बने कैरी बैग आसानी से उपयोग किए जा सकते हैं. यह किफायती होने के साथ-साथ पर्यावरण के लिए काफी लाभदायक है. अच्छी बात यह है कि हम खरीदारी के समय अपना झोला देकर भी दुकान से छोटी-छोटी चीजों को घर ला सकते है. इससे पर्यावरण की सुरक्षा होगी.
40 माइक्रॉन से कम पतली पॉलिथीन पर्यावरण एवं स्वास्थ्य के लिए हानिकारक
अपर मुख्य सचिव रजनीश दुबे ने कहा कि पॉलीथिन पर्यावरण के लिए अत्यंत हानिकारक है. इसको रोकने की जरूरत है. पॉलीथिन और प्लास्टिक लोगों की सेहत बिगाड़ रहे हैं. शहर का ड्रेनेज सिस्टम अक्सर पॉलीथिन से भरा मिलता है. नालियां और नाले जाम हो जाते हैं. 40 माइक्रॉन से कम पतली पॉलीथिन पर्यावरण एवं स्वास्थ्य के लिए बेहद नुकसानदायक होती है. पॉलीथिन की जगह हमें कपड़े या जूट के थैलों का प्रयोग करना चाहिए.
कार्रवाई के साथ जागरूकता की भी अपील
अपर मुख्य सचिव ने बताया कि पॉलीथिन प्रतिबंध को सफल बनाने के लिए दुकानों, ठेलों व अन्य से लगातार पॉलीथिन जब्त की जा रही. दुकानदारों के साथ-साथ आम जनता से भी पॉलीथिन का प्रयोग नहीं करने की अपील भी की जा रही है. प्रदेश में 50 माइक्रॉन से कम की पॉलीथिन को प्रतिबंधित लगा हुआ है. इसकी बिक्री व इस्तेमाल पर पूरी तरह रोक लगी हुई है.
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