लखनऊ : योगी सरकार ने एक महत्वपूर्ण आदेश जारी करते हुए, इलाहाबाद उच्च न्यायालय और इसकी लखनऊ खंडपीठ में सरकार के मुकदमों की पैरवी के लिए लाखों की फीस देकर विशेष अधिवक्ता नियुक्त करने की परंपरा पर रोक लगा दी है. सरकार ने कहा है कि हाईकोर्ट में सरकारी वकील ही उसके मुकदमों की पैरवी करेंगे. हालांकि अपरिहार्य परिस्थितियों में जब विशेष अधिवक्ता को नियुक्त करना आवश्यक होगा, तब सम्बंधित मामले के सभी तथ्यों से महाधिवक्ता को अवगत कराया जाएगा.
दरअसल प्रदेश के महाधिवक्ता अजय कुमार मिश्र (Advocate General Ajay Kumar Mishra) ने पत्र भेजकर शासन को बताया कि तमाम सरकारी विभाग और एजेंसियां सामान्य मुकदमों की पैरवी के लिए भी लाखों की फीस देकर विशेष अधिवक्ता नियुक्त कर रही हैं. इससे न केवल सरकार पर लाखों का व्यय भार बढ़ता है अपितु इससे पहले से तैनात सरकारी अधिवक्ताओं का मनेाबल भी गिरता और उनकी छवि धूमिल होती है. कहा गया कि बिना कोई कारण इंगित किए विशेष अधिवक्ताओं की नियुक्ति कर दे रही हैं. जिससे सरकारी खजाने पर फिजूल का भार पड़ रहा है.
महाधिवक्ता (Advocate General) ने कहा कि विशेष अधिवक्ताओं की आबद्धता (engagement of special advocates) पर पांच लाख रुपये के इर्द गिर्द प्रति पेशी के हिसाब से की जा रही है यानि कि यदि मुकदमा महीने में तीन बार लग गया तो विशेष अधिवक्ता को 15 लाख रुपये फीस देनी पड़ती है और यदि मुकदमा कई पेशी चला तो कई लाख का बिल विशेष अधिवक्ता का बन जाता है. महाधिवक्ता अजय कुमार मिश्र (Advocate General Ajay Kumar Mishra) के अनुरोध पर राज्य सरकार ने 16 दिसंबर को शासनादेश जारी कर दिया है. विषेश सचिव न्याय इंद्रजीत सिंह (Special Secretary Justice Inderjit Singh) ने शासनादेश जारी करते हुए कहा है कि सामान्य तौर पर उच्च न्यायालय में पैरवी हेतु पहले से नियुक्त सरकारी अधिवक्ताओं में से किसी को आबद्ध किया जाए.
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