लखनऊ : निकाय चुनावों को लेकर हाईकोर्ट में चल रहे मामले में आए फैसले के बाद उत्तर प्रदेश में पिछड़े वर्ग (ओबीसी) को लेकर राजनीति अपने चरम पर है. सभी राजनीतिक दल अपनी अपनी रोटियां सेंकने में जुटे हैं. गौरतलब है कि हाईकोर्ट ने निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण को रद्द करते हुए जल्दी से जल्दी चुनाव कराने के लिए कहा था. अदालत में सरकार की दलीलों को मानने से इनकार कर दिया था. अदालत का यह फैसला आते ही प्रदेश के सभी छोटे बड़े दल राजनीतिक लाभ लेने के लिए मैदान में कूद पड़े और भाजपा को प्रश्नों का दुश्मन करार देने लगे. विपक्ष का आरोप है कि भाजपा सरकार ने जानबूझकर पिछड़ा वर्ग आरक्षण में अनियमितता बरती और सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय फार्मूले को नहीं अपनाया. एक छोटी सी भूल से भाजपा सरकार भी मुसीबत में घिर गई और उसे बचाव में उतरना पड़ा. प्रदेश में 45 से 55 फासद तक ओबीसी आबादी मानी जाती है. स्वाभाविक है कि इतने बड़े वर्ग को कोई भी राजनीतिक दल नाराज करना नहीं चाहेगा, बल्कि सभी पिछड़े वर्ग को भी लुभाना चाहते हैं. हालांकि इस वर्ग का सर्वाधिक समर्थन भाजपा को हासिल है. यही कारण है कि इसी कारण वह केंद्र और राज्य की सत्ता में है.
दरअसल सरकार को निकाय चुनाव में आरक्षण देने से पहले सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार ट्रिपल टेस्ट का फार्मूला अपनाना चाहिए था. सुप्रीम कोर्ट ने फार्मूला दिया था कि ओबीसी आरक्षण के लिए एक आयोग का गठन करना होगा, जो अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी पर अपनी रिपोर्ट देगा, जिसके आधार पर ही आरक्षण लागू किया जाएगा. आरक्षण लागू करने के लिए तीन मानक रखे जाएंगे, जिसे ट्रिपल टेस्ट नाम दिया गया. इसके तहत देखना था कि पिछड़ा वर्ग की आर्थिक और शैक्षिक स्थिति कैसी है? उन्हें आरक्षण देने की जरूरत है अथवा नहीं? और उन्हें आरक्षण दिया भी जा सकता है या नहीं. इस दौरान यह भी ध्यान रखना था कि कुल आरक्षण 50 से फीसद से ज्यादा न हो. इस मुद्दे पर राजनीति शुरू होने के बाद योगी सरकार ने आनन-फानन आयोग का गठन किया और हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गई. स्वाभाविक है कि भाजपा डैमेज कंट्रोल में जुट गई है और वह किसी स्तर पर पार्टी को कोई नुकसान होने देना नहीं चाहती. वहीं गुरुवार को इस मुद्दे को लेकर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और भाजपा पर पिछड़ों का आरक्षण खत्म करने की राजनीति का आरोप लगाया. बसपा प्रमुख मायावती ने भी ट्वीट कर भाजपा सरकार को घेरने की कोशिश की. अन्य छोटे दलों ने भी अपने-अपने पैतरे चले. सवाल उठता है कि क्या इन दलों की राजनीति से भाजपा को कोई नुकसान होगा?
इस विषय पर राजनीतिक विश्लेषक डॉ दिलीप अग्निहोत्री (Political analyst Dr Dilip Agnihotri) कहते हैं कि प्रदेश के सभी क्षेत्रीय दलों का अस्तित्व जाति और मजहब की राजनीति पर ही टिका हुआ है, लेकिन अब यह बात समझनी होगी कि यह निर्णय कोर्ट का है किसी राजनीतिक दल अथवा सरकार का नहीं. इन राजनीतिक दलों के पास अपनी बात रखने का एक माध्यम सिर्फ कोर्ट ही है. यदि वह और कोई कृत्य करते हैं तो इसे गलत माना जाना चाहिए. सरकार सुप्रीम कोर्ट गई है और वह शीर्ष अदालत से अपने निर्णय पर पुनर्विचार के लिए आग्रह कर सकती है, क्योंकि कोर्ट में अपनी बात रखने का यही एक माध्यम है. निश्चितरूप से सरकार इस विषय में अपने तथ्य प्रस्तुत करेगी. सरकार की कोशिश होगी कि वह अदालत को अपनी बात से संतुष्ट कर पाए. यह भी देखना होगा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) सहित भाजपा के कई मुख्यमंत्री पिछड़े वर्ग से ही आते हैं. प्रदेश में भी भाजपा ने पिछड़े वर्ग के नेताओं को अच्छा खासा प्रतिनिधित्व दे रखा है. हालांकि जाति के आधार पर सारे निर्णय करना कोई अच्छी बात नहीं है. सबके साथ न्याय होना चाहिए और सबको महत्व मिलना चाहिए. सरकार यह अपनी लड़ाई संविधान के अनुसार ही लड़ रही है. इसलिए अभी इस मामले में लोगों को इंतजार करना चाहिए. कोर्ट का निर्णय आने के बाद क्या रास्ता हो सकता था यह भी विपक्षी दलों को बताना चाहिए था. सिर्फ हो हल्ला या बयानबाजी करने से इस मामले का समाधान नहीं निकलेगा. सरकार कोई भी होती रास्ता सिर्फ यही बचा था. जहां तक विपक्ष की बात है, तो उन्हें भी राजनीति करनी है. उन्हें एक मुद्दा मिला है और वह उसे भुनाने की कोशिश तो करेंगे ही.
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