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लखनऊ: चिकित्सक लें मरीज के प्रोफेशन की जानकारी, पता चलेगा एस्बेस्टस का व्यक्ति पर प्रभाव - मुख्य अतिथि प्रोफेसर आर्थर फ्रैंक

यूपी के लखनऊ में सोमवार को एस्बेस्टस को लेकर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया. कार्यक्रम में फिलाडेल्फिया यूएसए के ड्रिजल डोर्नसिफॅ स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ से एनवायरमेंटल एंड ऑक्यूपेशनल हेल्थ के प्रोफेसर आर्थर फ्रैंक बतौर मुख्य अतिथि के रूप में शामल हुए.

यूएसए के प्रोफेसर आर्थर फ्रैंक मुख्य अतिथि
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Published : Sep 17, 2019, 9:14 AM IST

लखनऊ: डॉ राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में सोमवार को एक व्याख्यान का आयोजन किया गया. इस व्याख्यान का विषय 'व्हाट इज द बिग डील अबाउट एस्बेस्टस' रखा गया था. व्याख्यान में फिलाडेल्फिया यूएसए के ड्रिजल डोर्नसिफॅ स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ से एनवायरमेंटल एंड ऑक्यूपेशनल हेल्थ के प्रोफेसर आर्थर फ्रैंक बतौर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे.

आरएमएनएल में एस्बेस्टस पर जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन.
एस्बेस्टस के इस्तेमाल पर जागरुकता कार्यक्रमआयोजन में प्रोफेसर आर्थर फ्रैंक ने एस्बेस्टस के लगातार इस्तेमाल और उससे जुड़ी बीमारियों पर जानकारी देते हुए बताया कि एस्बेस्टस तमाम तरह के वर्किंग प्लेस पर इस्तेमाल होता है. इसकी सबसे बड़ी बात यह है कि इसकी जरा सी मात्रा भी शरीर में जाने पर बड़ा नुकसान कर सकती है. एक बार शरीर में जाने पर एस्बेस्टस से पैदा हुई बीमारियों का पता लगभग 30 से 50 वर्ष बाद चलता है. इससे सबसे ज्यादा फेफड़ों से संबंधित बीमारियां जन्म लेती हैं.

इसे भी पढ़ें-लखनऊ: सरकार के मंत्री खोल रहे बिजली व्यवस्था की पोल, कांग्रेस ने ली चुटकी

पलमोनरी एक्सपर्ट डॉ राजेंद्र प्रसाद कहते हैं कि प्रो आर्थर फ्रैंक की बात बिल्कुल सही है. कुछ वर्षों पहले मैंने भी एस्बेस्टस की वजह से होने वाली बीमारी पर कुछ मरीजों को देखा था और इसकी पहचान कर इसे एक जर्नल में प्रकाशित भी करवाया था. इसकी वजह से ज्यादातर बीमारियां होती हैं और यह मेलिगनेंट होते हैं. वर्किंग प्लेस पर एस्बेस्टस की वजह से यह बीमारियां ज्यादा दिखती हैं. आयोजन में संस्थान के निदेशक प्रोफेसर एके त्रिपाठी, डीन प्रोफेसर नुजहत हुसैन के साथ कई अन्य संस्थानों के रेस्पिरेट्री मेडिसिन, जनरल मेडिसिन, पीडियाट्रिक्स विभागों के विशेषज्ञ और आईआईटीआर, सीडीआरआई जैसे विभिन्न शोध संस्थानों के वैज्ञानिक और विद्यार्थियों ने प्रतिभाग किया.

इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य एस्बेस्टस जैसी बीमारी के बारे में जागरूकता फैलाना है. क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में एस्बेस्टस की वजह से बीमारियों में बढ़ोतरी हुई है. इस व्याख्यान के माध्यम से हम विद्यार्थियों, वैज्ञानिकों और तमाम अन्य चिकित्सकों में इस बात के प्रति जागरूकता फैलाने की कोशिश कर रहे हैं कि वह इसे अच्छी तरह समझें.
डॉ. ए के त्रिपाठी, निदेशक डॉ राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान

लखनऊ: डॉ राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में सोमवार को एक व्याख्यान का आयोजन किया गया. इस व्याख्यान का विषय 'व्हाट इज द बिग डील अबाउट एस्बेस्टस' रखा गया था. व्याख्यान में फिलाडेल्फिया यूएसए के ड्रिजल डोर्नसिफॅ स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ से एनवायरमेंटल एंड ऑक्यूपेशनल हेल्थ के प्रोफेसर आर्थर फ्रैंक बतौर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे.

आरएमएनएल में एस्बेस्टस पर जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन.
एस्बेस्टस के इस्तेमाल पर जागरुकता कार्यक्रमआयोजन में प्रोफेसर आर्थर फ्रैंक ने एस्बेस्टस के लगातार इस्तेमाल और उससे जुड़ी बीमारियों पर जानकारी देते हुए बताया कि एस्बेस्टस तमाम तरह के वर्किंग प्लेस पर इस्तेमाल होता है. इसकी सबसे बड़ी बात यह है कि इसकी जरा सी मात्रा भी शरीर में जाने पर बड़ा नुकसान कर सकती है. एक बार शरीर में जाने पर एस्बेस्टस से पैदा हुई बीमारियों का पता लगभग 30 से 50 वर्ष बाद चलता है. इससे सबसे ज्यादा फेफड़ों से संबंधित बीमारियां जन्म लेती हैं.

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पलमोनरी एक्सपर्ट डॉ राजेंद्र प्रसाद कहते हैं कि प्रो आर्थर फ्रैंक की बात बिल्कुल सही है. कुछ वर्षों पहले मैंने भी एस्बेस्टस की वजह से होने वाली बीमारी पर कुछ मरीजों को देखा था और इसकी पहचान कर इसे एक जर्नल में प्रकाशित भी करवाया था. इसकी वजह से ज्यादातर बीमारियां होती हैं और यह मेलिगनेंट होते हैं. वर्किंग प्लेस पर एस्बेस्टस की वजह से यह बीमारियां ज्यादा दिखती हैं. आयोजन में संस्थान के निदेशक प्रोफेसर एके त्रिपाठी, डीन प्रोफेसर नुजहत हुसैन के साथ कई अन्य संस्थानों के रेस्पिरेट्री मेडिसिन, जनरल मेडिसिन, पीडियाट्रिक्स विभागों के विशेषज्ञ और आईआईटीआर, सीडीआरआई जैसे विभिन्न शोध संस्थानों के वैज्ञानिक और विद्यार्थियों ने प्रतिभाग किया.

इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य एस्बेस्टस जैसी बीमारी के बारे में जागरूकता फैलाना है. क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में एस्बेस्टस की वजह से बीमारियों में बढ़ोतरी हुई है. इस व्याख्यान के माध्यम से हम विद्यार्थियों, वैज्ञानिकों और तमाम अन्य चिकित्सकों में इस बात के प्रति जागरूकता फैलाने की कोशिश कर रहे हैं कि वह इसे अच्छी तरह समझें.
डॉ. ए के त्रिपाठी, निदेशक डॉ राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान

Intro:लखनऊ। डॉ राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में आज एक व्याख्यान का आयोजन किया गया इस व्याख्यान का विषय 'व्हाट इज द बिग डील अबाउट एस्बेस्टस' रखा गया था। इस व्याख्यान के लिए फिलाडेल्फिया यूएसए से ड्रिजल डोर्नसिफॅ स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के एनवायरमेंटल एंड ऑक्यूपेशनल हेल्थ के प्रोफेसर आर्थर फ्रैंक बतौर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे।


Body:वीओ1 इस आयोजन में प्रोफेसर आर्थर फ्रैंक ने एस्बेस्टस के लगातार इस्तेमाल और उससे जुड़ी बीमारियों पर जानकारी दी उन्होंने बताया कि इस बेस्ट तमाम तरह के वर्किंग प्लेस इस पर इस्तेमाल होता है। इसकी सबसे बड़ी बात यह है कि इसकी जरा सी मात्रा भी शरीर में जाने पर बड़ा नुकसान कर सकती है। एक बार शरीर में जाने पर एस्बेस्टस से पैदा हुई बीमारियों का पता लगभग 30 से 50 वर्ष बाद पता चलता है। इससे सबसे ज़्यादा फेफड़ों से संबंधित बीमारियां जन्म लेती हैं। इस आयोजन पर डॉ राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के निदेशक डॉ ए के त्रिपाठी ने बताया कि इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य एस्बेस्टॉसिस जैसी बीमारी के बारे में जागरूकता फैलाना है क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में एस्बेस्टस की वजह से बीमारियों में बढ़ोतरी हुई है। इस व्याख्यान के माध्यम से हम विद्यार्थियों और तमाम अन्य वैज्ञानिकों और चिकित्सकों में इस बात के प्रति जागरूकता फैलाने की कोशिश कर रहे हैं कि वह इसे समझें। पलमोनरी एक्सपर्ट डॉ राजेंद्र प्रसाद कहते हैं कि प्रो आर्थर फ्रैंक की बात बेहद सही है। कुछ वर्षों पहले मैंने भी एस्बेस्टस की वजह से होने वाली बीमारी पर कुछ मरीजों को देखा था और इसकी पहचान कर इसे एक जर्नल में प्रकाशित भी करवाया था। इसकी वजह से ज्यादातर से संबंधित बीमारियां होती हैं और यह मेलिगनेंट होते हैं। वर्किंग प्लेस पर एस्बेस्टस की वजह से यह बीमारियां ज्यादा दिखती हैं।


Conclusion:आयोजन में संस्थान के निदेशक प्रोफेसर एके त्रिपाठी, डीन प्रोफेसर नुजहत हुसैन के साथ कई अन्य संस्थानों के रेस्पिरेट्री मेडिसिन जनरल मेडिसिन पीडियाट्रिक्स विभागों के विशेषज्ञ और आईआईटीआर, सीडीआरआई जैसे विभिन्न शोध संस्थानों के वैज्ञानिक और विद्यार्थियों ने प्रतिभाग किया। बाइट- डॉ ए के त्रिपाठी, निदेशक डॉ राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान बाइट- डॉ राजेंद्र प्रसाद, पलमोनरी एक्सपर्ट रामांशी मिश्रा
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