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पूर्वज बनाते थे नवाबों के लिए चांदी के 'नागरे व चप्पल', अब बेटी ने संभाली विरासत - चांदी के नागरे व चप्पल

नवाबों की नगरी कहे जाने वाले लखनऊ की चिकनकारी दुनिया भर में प्रसिद्ध है. वहीं राजधानी के तालकटोरा इलाके में एक परिवार ऐसा रहता है, जिनके बुजुर्ग नवाबों के समय में चांदी के नागरे और चप्पल बनाया करते थे.

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200 साल बना रहे चांदी के नागरे व चप्पल.
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Published : Mar 1, 2020, 9:24 AM IST

लखनऊ: लखनऊ का नाम जैसे ही जुबां पर आता है तो भूल भुलैया, घंटाघर, छोटा इमामबाड़ा समेत कई ऐतिहासिक इमारतों की तस्वीर आंखों के सामने आ जाती हैं. इस शहर का अपना एक इतिहास रहा है. नवाबों की नगरी कहे जाने वाले लखनऊ की चिकनकारी दुनिया भर में प्रसिद्ध है. वहीं इस शहर में एक कला ऐसी भी है, जिसको शायद बहुत कम लोग जानते हों. जी हां राजधानी के तालकटोरा इलाके में एक परिवार ऐसा रहता है, जिनके बुजुर्ग नवाबों के समय में चांदी के नागरे और चप्पल बनाया करते थे.

200 साल बना रहे चांदी के नागरे व चप्पल.

200 साल से बना रहे चांदी के नागरे व चप्पल

घर के मुखिया अशफाक खान बताते हैं कि करीब 200 साल से यह कारोबार चला रहे हैं. खास बात यह है कि विरासत में मिले इस कारोबार को अब इनकी बेटी ने संभाल लिया है. छोटी बेटी आफिया इस कारोबार में पिता का पूरा साथ देती हैं.

बेटी ने संभाली बाप-दादा की विरासत

कारीगर अशफाक खान बताते हैं कि यह कारीगरी बाप-दादा के जमाने से चली आ रही है. यह काम करीब 200 साल से उनके यहां किया जा रहा है. इसको बनाने में 4 से 5 दिन लग जाते हैं. कारीगर अशफाक खान की बेटी आफिया ने बताया कि हम खुद नागरे बनाते हैं, जब तक जिंदा हैं, तब तक इस कारोबार को जिंदा रखेंगे.

15 से 20,000 रुपये में यह बनकर तैयार होता है. हम राजधानी के दुकानदारों को देते हैं और बाहर के लोग दुकानदारों से ले जाते हैं. जो मजदूरी मिलती है उससे परिवार चल जाता है.

अशफाक खान, कारीगर

लखनऊ: लखनऊ का नाम जैसे ही जुबां पर आता है तो भूल भुलैया, घंटाघर, छोटा इमामबाड़ा समेत कई ऐतिहासिक इमारतों की तस्वीर आंखों के सामने आ जाती हैं. इस शहर का अपना एक इतिहास रहा है. नवाबों की नगरी कहे जाने वाले लखनऊ की चिकनकारी दुनिया भर में प्रसिद्ध है. वहीं इस शहर में एक कला ऐसी भी है, जिसको शायद बहुत कम लोग जानते हों. जी हां राजधानी के तालकटोरा इलाके में एक परिवार ऐसा रहता है, जिनके बुजुर्ग नवाबों के समय में चांदी के नागरे और चप्पल बनाया करते थे.

200 साल बना रहे चांदी के नागरे व चप्पल.

200 साल से बना रहे चांदी के नागरे व चप्पल

घर के मुखिया अशफाक खान बताते हैं कि करीब 200 साल से यह कारोबार चला रहे हैं. खास बात यह है कि विरासत में मिले इस कारोबार को अब इनकी बेटी ने संभाल लिया है. छोटी बेटी आफिया इस कारोबार में पिता का पूरा साथ देती हैं.

बेटी ने संभाली बाप-दादा की विरासत

कारीगर अशफाक खान बताते हैं कि यह कारीगरी बाप-दादा के जमाने से चली आ रही है. यह काम करीब 200 साल से उनके यहां किया जा रहा है. इसको बनाने में 4 से 5 दिन लग जाते हैं. कारीगर अशफाक खान की बेटी आफिया ने बताया कि हम खुद नागरे बनाते हैं, जब तक जिंदा हैं, तब तक इस कारोबार को जिंदा रखेंगे.

15 से 20,000 रुपये में यह बनकर तैयार होता है. हम राजधानी के दुकानदारों को देते हैं और बाहर के लोग दुकानदारों से ले जाते हैं. जो मजदूरी मिलती है उससे परिवार चल जाता है.

अशफाक खान, कारीगर

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