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लखनऊः लॉकडाउन में बढ़ गई आशा बहुओं की जिम्मेदारी, इस तरह करती हैं काम

यूपी की राजधानी लखनऊ में आशा बहुएं लगातार अपने-अपने क्षेत्रों में कार्यरत हैं और पूरी जिम्मेदारी के साथ प्रवासियों को क्वारंटाइन करने और अपने क्षेत्र की देखभाल कर रही हैं. इसके बावजूद उनके लिए किए गए इंतजाम नाकाफी साबित हो रहे हैं. ईटीवी भारत ने कुछ ऐसी ही आशा बहुओं से उनकी परेशानी जानने की कोशिश की.

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लॉकडाउन में आशा बहुओं का काम.
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Published : May 25, 2020, 10:09 AM IST

लखनऊः लॉकडाउन में जहां चिकित्सा सुविधाएं लगातार मुहैया करवाई जा रही हैं. वहीं अब प्रवासी और दूसरे राज्यों से घर आ रहे लोगों के लिए क्वारंटाइन की व्यवस्था भी की जा रही है. दूसरे शहर से आने वाले लोगों के लिए बनाए जा रहे क्वारंटाइन सेंटर में आशा बहुओं का किरदार महत्वपूर्ण हो गया है. वह क्वारंटाइन की पूरी अवधि तक अपने-अपने क्षेत्रों में मुस्तैदी से काम कर रही हैं. इसके बावजूद उन्हें कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.

स्पेशल रिपोर्ट.

राजधानी के त्रिवेणी नगर क्षेत्र में ड्यूटी करने वाली आशा बहु शिवानी कहती हैं कि हमें काम करने में कोई परेशानी नहीं है. हम लगातार अपनी सेवाएं दे रहे हैं और आगे भी देते रहेंगे. जब भी कोई बाहर से व्यक्ति अपने घर में आता है. तब व्यक्ति को 14 दिन के लिए क्वारंटाइन करते हैं. उनके घर के बाहर फ्लायर लगाते हैं, ताकि आसपास के लोगों को पता रहे कि यहां कोई क्वारंटाइन है. साथ ही मोहल्ले में भी भेदभाव न करने और सहयोग करने के बारे में समझाते हैं, ताकि बाहर से आए हुए व्यक्ति का मनोबल न टूटे.

शिवानी कहती हैं कि अपने काम करने के साथ हमें कुछ परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है. मसलन हमें मास्क, ग्लव्स या सैनिटाइजर जैसी चीजें मुहैया नहीं करवाई गई हैं. सिर्फ एक फ्लायर मिला है. ऐसे में यदि एक से अधिक प्रवासी या दूसरे शहर से लोग आते हैं तो उनके घर के बाहर हम यह पोस्टर नहीं लगा पाएंगे.

इसे भी पढ़ें- लखनऊ: टेंपो-टैक्सी चालकों के सामने कोरोना काल में संकट का पहाड़

टेढ़ी पुलिया क्षेत्र में काम करने वाली आशा बहु नीलम त्रिपाठी बताती हैं कि जब कोई क्वारंटाइन हो जाता है तो उसके घर के बाहर फ्लायर लगाकर क्वारंटाइन शुरू होने की तारीख लिखते हैं. साथ ही नियमित समयातंराल पर आकर चेक करते हैं कि व्यक्ति की तबीयत ठीक है या नहीं. परेशानियों के बारे में नीलम कहती हैं कि हमारी एरिया में अब तक 8 प्रवासी बाहर से आ चुके हैं. जिनको हमने क्वारंटाइन करवाया है, लेकिन इनमें से कुछ लोगों ने हमारा सहयोग नहीं किया. इस पर हमें हमारे क्षेत्र के पार्षद और पुलिस की सहायता लेकर उन्हें क्वारंटाइन करना पड़ा.

जानकीपुरम क्षेत्र में काम करने वाली आशा बहु अनीता कहती हैं कि काम करने के साथ ही हमें कई अन्य तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. क्षेत्रवासियों की तरफ से सहयोग नहीं मिलता. कभी-कभी लोग बताते नहीं है कि उनके क्षेत्र में बाहर से लोग आए हैं. ऐसे में उन्हें ढूंढना मुश्किल हो जाता है. इसके अलावा विभाग से भी सुविधाएं मुहैया नहीं होती हैं. इस वजह से हमें अपने बचत के पैसों से सुरक्षा उपकरण खरीद कर लाने होते हैं और इस्तेमाल करने होते हैं.

आशा बहुओं की परेशानियों पर परिवार कल्याण महानिदेशालय के ज्वाइंट डायरेक्टर डॉ. ओ. पी. वर्मा कहते हैं कि आशा बहुओं की हमने वीडियो के माध्यम से ट्रेनिंग करवाई है और लगातार उनका असेसमेंट करते रहते हैं. इसके अलावा सीएमओ कार्यालय से सुरक्षा उपकरणों को मुहैया करवाए जाने की बात भी कर चुके हैं. सीएमओ कार्यालय द्वारा आशा बहुओं को सैनिटाइजर, मास्क और अन्य सभी चीजें मुहैया करवाई गई हैं.

लखनऊः लॉकडाउन में जहां चिकित्सा सुविधाएं लगातार मुहैया करवाई जा रही हैं. वहीं अब प्रवासी और दूसरे राज्यों से घर आ रहे लोगों के लिए क्वारंटाइन की व्यवस्था भी की जा रही है. दूसरे शहर से आने वाले लोगों के लिए बनाए जा रहे क्वारंटाइन सेंटर में आशा बहुओं का किरदार महत्वपूर्ण हो गया है. वह क्वारंटाइन की पूरी अवधि तक अपने-अपने क्षेत्रों में मुस्तैदी से काम कर रही हैं. इसके बावजूद उन्हें कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.

स्पेशल रिपोर्ट.

राजधानी के त्रिवेणी नगर क्षेत्र में ड्यूटी करने वाली आशा बहु शिवानी कहती हैं कि हमें काम करने में कोई परेशानी नहीं है. हम लगातार अपनी सेवाएं दे रहे हैं और आगे भी देते रहेंगे. जब भी कोई बाहर से व्यक्ति अपने घर में आता है. तब व्यक्ति को 14 दिन के लिए क्वारंटाइन करते हैं. उनके घर के बाहर फ्लायर लगाते हैं, ताकि आसपास के लोगों को पता रहे कि यहां कोई क्वारंटाइन है. साथ ही मोहल्ले में भी भेदभाव न करने और सहयोग करने के बारे में समझाते हैं, ताकि बाहर से आए हुए व्यक्ति का मनोबल न टूटे.

शिवानी कहती हैं कि अपने काम करने के साथ हमें कुछ परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है. मसलन हमें मास्क, ग्लव्स या सैनिटाइजर जैसी चीजें मुहैया नहीं करवाई गई हैं. सिर्फ एक फ्लायर मिला है. ऐसे में यदि एक से अधिक प्रवासी या दूसरे शहर से लोग आते हैं तो उनके घर के बाहर हम यह पोस्टर नहीं लगा पाएंगे.

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टेढ़ी पुलिया क्षेत्र में काम करने वाली आशा बहु नीलम त्रिपाठी बताती हैं कि जब कोई क्वारंटाइन हो जाता है तो उसके घर के बाहर फ्लायर लगाकर क्वारंटाइन शुरू होने की तारीख लिखते हैं. साथ ही नियमित समयातंराल पर आकर चेक करते हैं कि व्यक्ति की तबीयत ठीक है या नहीं. परेशानियों के बारे में नीलम कहती हैं कि हमारी एरिया में अब तक 8 प्रवासी बाहर से आ चुके हैं. जिनको हमने क्वारंटाइन करवाया है, लेकिन इनमें से कुछ लोगों ने हमारा सहयोग नहीं किया. इस पर हमें हमारे क्षेत्र के पार्षद और पुलिस की सहायता लेकर उन्हें क्वारंटाइन करना पड़ा.

जानकीपुरम क्षेत्र में काम करने वाली आशा बहु अनीता कहती हैं कि काम करने के साथ ही हमें कई अन्य तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. क्षेत्रवासियों की तरफ से सहयोग नहीं मिलता. कभी-कभी लोग बताते नहीं है कि उनके क्षेत्र में बाहर से लोग आए हैं. ऐसे में उन्हें ढूंढना मुश्किल हो जाता है. इसके अलावा विभाग से भी सुविधाएं मुहैया नहीं होती हैं. इस वजह से हमें अपने बचत के पैसों से सुरक्षा उपकरण खरीद कर लाने होते हैं और इस्तेमाल करने होते हैं.

आशा बहुओं की परेशानियों पर परिवार कल्याण महानिदेशालय के ज्वाइंट डायरेक्टर डॉ. ओ. पी. वर्मा कहते हैं कि आशा बहुओं की हमने वीडियो के माध्यम से ट्रेनिंग करवाई है और लगातार उनका असेसमेंट करते रहते हैं. इसके अलावा सीएमओ कार्यालय से सुरक्षा उपकरणों को मुहैया करवाए जाने की बात भी कर चुके हैं. सीएमओ कार्यालय द्वारा आशा बहुओं को सैनिटाइजर, मास्क और अन्य सभी चीजें मुहैया करवाई गई हैं.

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