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नवाबों के समय से तैयार कर रहे शाही जरी के कारीगर क्यों हैं अब परेशान, जानिए - हुसैनाबाद ट्रस्ट

उत्तर प्रदेश के लखनऊ में शाही जरी को पहली मोहर्रम को अपने रेवती अंदाज में नवाबों के दौर से निकाली जाती रही है. हुसैनाबाद ट्रस्ट ने उनके बजट में कोई बढ़ोतरी नहीं की है. जिससे यह शाही कारीगर परेशान हैं.

शाही जरी बनाते कारीगर
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Published : Aug 28, 2019, 10:20 AM IST

लखनऊ: कर्बला के शहीदों की याद में पहली मोहर्रम को अपने रिवायती अंदाज में शाही जरी निकाली है. शाही जरी का काम इन दिनों लखनऊ के छोटे इमामबाड़े में खास कारीगर करने में व्यस्त हैं, लेकिन बढ़ती महंगाई के मद्देनजर पिछले 4 साल से हुसैनाबाद ट्रस्ट ने इनके बजट में कोई बढ़ोतरी नहीं की है. जिससे शाही जरी के कारीगरों में मायूसी है.

शाही जरी के कारीगरों की मांग.

शाही जरी के कारीगर मायूस
ऐतिहासिक बड़े इमामबाड़े से छोटे इमामबाड़े तक पहली मोहर्रम को निकाले जाने वाले मोम की शाही जरी को बना रहे जरवल शहर के नसीम अली और उनके परिवार के लोग बरसों से यह काम करते आए हैं. जिस पर हुसैनाबाद ट्रस्ट की ओर से उनको इनाम से भी नवाजा जाता है, लेकिन बढ़ती महंगाई के चलते पिछले 4 सालों से हुसैनाबाद ट्रस्ट ने उनके बजट में कोई बढ़ोतरी नहीं की है. जिसे यह शाही कारीगर अब मायूस हैं.

शाही जरी कारीगरों की मांग

शाही जरी में काफी महंगा साजो सामान इस्तेमाल होता है. इसकी वजह से हाथ कुछ नहीं बचता. जिससे परिवार गरीबी और मुफलिसी में जिंदगी बिताने को मजबूर है, लेकिन इस काम को सिर्फ इसलिए करते हैं क्योंकि यह मौला का काम है. जो बाप दादा के जमाने से होता आ रहा है. ऐतिहासिक शाही जरी के कारीगरों की मांग है कि शाही जरी के बजट को बढ़ाया जाए, जिससे हम शाही जरी को बनाने में अपने हुनर का और भी बेहतर ढंग से प्रदर्शन कर सके.
ये भी पढ़ें-योगी सरकार ने बढ़ाया पेट्रोल और डीजल पर वैट

लखनऊ: कर्बला के शहीदों की याद में पहली मोहर्रम को अपने रिवायती अंदाज में शाही जरी निकाली है. शाही जरी का काम इन दिनों लखनऊ के छोटे इमामबाड़े में खास कारीगर करने में व्यस्त हैं, लेकिन बढ़ती महंगाई के मद्देनजर पिछले 4 साल से हुसैनाबाद ट्रस्ट ने इनके बजट में कोई बढ़ोतरी नहीं की है. जिससे शाही जरी के कारीगरों में मायूसी है.

शाही जरी के कारीगरों की मांग.

शाही जरी के कारीगर मायूस
ऐतिहासिक बड़े इमामबाड़े से छोटे इमामबाड़े तक पहली मोहर्रम को निकाले जाने वाले मोम की शाही जरी को बना रहे जरवल शहर के नसीम अली और उनके परिवार के लोग बरसों से यह काम करते आए हैं. जिस पर हुसैनाबाद ट्रस्ट की ओर से उनको इनाम से भी नवाजा जाता है, लेकिन बढ़ती महंगाई के चलते पिछले 4 सालों से हुसैनाबाद ट्रस्ट ने उनके बजट में कोई बढ़ोतरी नहीं की है. जिसे यह शाही कारीगर अब मायूस हैं.

शाही जरी कारीगरों की मांग

शाही जरी में काफी महंगा साजो सामान इस्तेमाल होता है. इसकी वजह से हाथ कुछ नहीं बचता. जिससे परिवार गरीबी और मुफलिसी में जिंदगी बिताने को मजबूर है, लेकिन इस काम को सिर्फ इसलिए करते हैं क्योंकि यह मौला का काम है. जो बाप दादा के जमाने से होता आ रहा है. ऐतिहासिक शाही जरी के कारीगरों की मांग है कि शाही जरी के बजट को बढ़ाया जाए, जिससे हम शाही जरी को बनाने में अपने हुनर का और भी बेहतर ढंग से प्रदर्शन कर सके.
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Intro:कर्बला के शहीदों की याद में पहली मोहर्रम को अपने रिवायती अंदाज में निकाली जाने वाली शाही जरी का काम इन दिनों लखनऊ के छोटे इमामबाड़े में खास कारीगर करने में व्यस्त हैं लेकिन बढ़ती महंगाई के मद्देनजर पिछले 4 साल से हुसैनाबाद ट्रस्ट ने इनके बजट में कोई बढ़ोतरी नहीं की है जिससे शाही जरी के कारीगरों में मायूसी है।


Body:ऐतिहासिक बड़े इमामबाड़े से छोटे इमामबाड़े तक पहली मोहर्रम को निकाले जाने वाले मोम की शाही जरी को बना रहे जरवल शहर के नसीम अली और उनके परिवार के लोग बरसों से यह काम करते आए हैं जिस पर हुसैनाबाद ट्रस्ट की ओर से उनको इनाम से भी नवाजा जाता है लेकिन बढ़ती महंगाई के चलते पिछले 4 सालों से हुसैनाबाद ट्रस्ट ने उनके बजट में कोई बढ़ोतरी नहीं की है जिस यह शाही कारीगर अब मायूस हैं उनका कहना है कि इसमें काफी महंगा साजो सामान इस्तेमाल होता है जिसकी वजह से हम लोगों के हाथ कुछ नहीं बचता जिससे हमारा परिवार गरीबी और मुफलिसी में जिंदगी बिताने को मजबूर है लेकिन इस काम को सिर्फ इसलिए करते हैं क्योंकि यह मौला का काम है जो हमारे बाप दादा के जमाने से होता आ रहा है। ऐतिहासिक शाही जरी के कारीगरों की मांग है की शाही ज़री के बजट को बढ़ाया जाए जिससे हम शाही जरी को बनाने में अपने हुनर का और भी बेहतर ढंग से प्रदर्शन कर सके।

बाइट1- फ़िरोज़, ठेकेदार
बाइट2- नसीम अली, शाही कारीगर
बाइट3- राजू, शाही कारीगर


Conclusion:आपको बता दें कि यह वही शाही जारी है जो पहली मोहर्रम को अपने रेवती अंदाज में नवाबों के दौर से निकाली जाती रही है और इसी दिन से कर्बला के शहीद इमाम हुसैन की याद में मनाया जाने वाला मोहर्रम का आगाज होता है।
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