लखनऊ : आमतौर पर एक नई दवा को लोगो के बीच लाने में लगभग एक दशक का समय लग जाता है. कैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एवं अन्य तकनीकी विकास इस समयरेखा को काफी कम कर सकते हैं और इसे तेज और अधिक सटीक बनाकर औषधि के विकास में क्रांति लाई जा सकती है. इसमें कई कॅरियर की संभावनाएं भी हैं. यह बातें सोमवार को सीडीआरआई के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. संदीप यादव ने कहीं.
कार्यक्रम की शुरुआत प्रोफेसर डॉ. अनुराधा मिश्रा, निदेशक, एआईपी, एमिटी यूनिवर्सिटी, लखनऊ द्वारा किए गए स्वागत भाषण के साथ हुई, जिसमें औषधि विकास हेतु एआई की परिवर्तनकारी क्षमता और इसके व्यापक अनुप्रयोगों पर चर्चा करने की भूमिका तैयार की. सीडीआरआई के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. संजीव यादव ने अपने व्याख्यान की शुरुआत उन विविध क्षेत्रों की एक व्यावहारिक रूपरेखा के साथ की. जिनमें सीएसआईआर-सीडीआरआई सक्रिय रूप से जुड़ा हुआ है. उन्होंने औषधि विकास प्रक्रिया के दौरान आने वाली अनेक जटिल चुनौतियों पर प्रकाश डाला.
इसके अलावा शुभम आर. लोंधे, वाम्स्टार, यूके में वरिष्ठ सॉफ्टवेयर इंजीनियर एवं आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के विशेषज्ञ ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर जानकारीपरक व्याख्यान के साथ प्रतिभागियों का ध्यान आकर्षित किया. उन्होंने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को लेकर आमजन में फैली भ्रामकता एवं संदेह की एआई कि वजह से लोगों कि नौकरियां चली जाएंगी को बेहद तर्कसंगत तरीके से दूर करने का प्रयास किया. कुछ हैंड्स-ऑन टूल का प्रदर्शन करते हुए उन्होंने बताया कि कैसे एआई कम समय मे किसी प्रोजेक्ट को तैयार करने में एक बेहद मूल्यवान उपकरण सहायक सिद्ध हो सकता है.
डॉ. जीशान फातिमा, प्रोफेसर, एआईपी, लखनऊ ने अपने समापन सम्बोधन में एआई पर जागरूकता फैलाने के लिए सीएसआईआर-सीडीआरआई के प्रयासों की सराहना की. उन्होंने कहा कि हम सीएसआईआर-सीडीआरआई और एमिटी इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मेसी के बीच आगे संयुक्त सहयोगात्मक कार्यों की आशा करते हैं ताकि महत्वाकांक्षी फार्मेसी छात्रों के लिए औषधि अनुसंधान एवं स्वास्थ्य देखभाल की उन्नति में योगदान करने का मार्ग प्रशस्त हो सके.
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