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डिफेंस एक्सपो 2020: सेना के स्निफर डॉग ने दिखाया अपना दम

राजधानी में आयोजित 11वें डिफेंस एक्सपो का रविवार को समापन हुआ. इस बार लोगों के आकर्षण का केंद्र रहा डिफेंस एक्सपो कई सारे रिकॉर्ड भी बना गया. डिफेंस एक्सपो 2020 में आर्मी डॉग्स यूनिट ने भी अपनी क्षमता को लोहा मनवाया.

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डिफेंस एक्सपो 2020
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Published : Feb 9, 2020, 7:48 PM IST

लखनऊ: राजधानी में 5 फरवरी को शुरू हुए 11वें डिफेंस एक्सपो का रविवार को समापन हुआ. डिफेंस एक्सपो 2020 में आर्मी डॉग्स यूनिट भी अपनी क्षमता दिखाई. इस यूनिट के डॉग भले ही जवानों के इशारों पर चले लेकिन ये इनसे एक पोस्ट सीनियर होते हैं. ऑपरेशन के दौरान डॉग कमांडिंग पोजीशन में होते हैं. इन डॉग ने एक बार दुश्मन या माइंस का संकेत दे दिया तो हैंडलर को उसे मानने के सिवाय कोई विकल्प नहीं होता है.

सेना के स्निफर डॉगी ने दिखाया अपना दम.
इस तरीके से होती है भर्तीआर्मी डॉग यूनिट में सिर्फ वही डॉग भर्ती होते हैं, जिनकी ब्रीडिंग और ट्रेनिंग मेरठ स्थित 'इंडियन आर्मी रीमाउंट एंड वेटनरी कॉर्प्स में हुई हो. आर्मी की एक यूनिट में डॉग्स की 24 पोस्ट होती हैं. हर डॉग का मिलिट्री नंबर और नाम होता है.शुरुआती ट्रेनिंगसेना के इन स्निफर डॉग कि शुरुआती ट्रेनिंग में सुबह की दौड़, सामान्य ट्रेनिंग और हैंडलर के साथ तालमेल पर जोर दिया जाता है. इस हद तक ट्रेनिंग दी जाती है कि यह हैंडलर के इशारों संग मौखिक आदेश भी पहचान-मानना सीख जाते हैं.

इसे भी पढ़ें - इतिहास में दर्ज हुआ डिफेंस एक्सपो-2020, कई क्षेत्र में बने अहम रिकॉर्ड

स्पेशल ट्रेनिंग
शुरूआती ट्रेनिंग के बाद इन स्निफर डॉग्स की 36 हफ्तों की ट्रेनिंग होती है. इस दौरान हर डॉग का किट बैग अलाट किया जाता है. इन्हें एक जवान की तरह हर गुण सिखाया जाता है. इन डॉग को दुश्मन और भीड़ भरे इलाके में कोई खास खुशबू पहचानने के साथ-साथ बर्फ के नीचे दबे लोगों को ढूंढने की भी ट्रेनिंग दी जाती है.

सबसे भरोसेमंद
ज्यादा जोखिम वाले ऑपरेशन में डॉग स्क्वाड सबसे भरोसेमंद होते हैं. 500 से 800 मीटर से सूंघकर खतरा भांपने की इनकी कला दुश्मनों पर कहर ढाती है. इनके कॉलर पर कैमरा लगा दिया जाए तो दुश्मन के इलाके में जाकर काफी कुछ रिकॉर्ड कर लाते हैं. यही नहीं यह काफी देर बिना भौंके रह सकते हैं.

इसे भी पढ़ें - बढ़ा रक्षा उत्पादों का निर्यात, दिखने लगा मेक इन इंडिया का असर

जैसी ब्रीड वैसा काम
अमूमन जर्मन शेफर्ड को गार्ड और इन्फेंट्री पेट्रोलिंग में लगाया जाता है तो लैब्राडोर को सर्च ऑपरेशन में लगाया जाता है. वहीं मेलानाइस ऑफ भारतीय नस्ल के मुधोल हाउंड को मैन टू मैन ऑपेरशन में लगाया जाता है.

8-9 साल में रिटायरमेंट
स्पेशल डॉग्स करीब 8 से 9 साल सेवा में रहते हैं. बारूद जैसी चीजों के कारण इनकी सेहत जल्दी गिरने लगती है. इन्हें सैलरी के तौर पर बेहद खास खाना और सुविधाएं मिलती हैं. यह शुरुआत से आखिरी तक एक ही यूनिट में रहते हैं. रिटायरमेंट के बाद ज्यादातर डॉग को सेना के जवान ही गोद ले लेते हैं.

लखनऊ: राजधानी में 5 फरवरी को शुरू हुए 11वें डिफेंस एक्सपो का रविवार को समापन हुआ. डिफेंस एक्सपो 2020 में आर्मी डॉग्स यूनिट भी अपनी क्षमता दिखाई. इस यूनिट के डॉग भले ही जवानों के इशारों पर चले लेकिन ये इनसे एक पोस्ट सीनियर होते हैं. ऑपरेशन के दौरान डॉग कमांडिंग पोजीशन में होते हैं. इन डॉग ने एक बार दुश्मन या माइंस का संकेत दे दिया तो हैंडलर को उसे मानने के सिवाय कोई विकल्प नहीं होता है.

सेना के स्निफर डॉगी ने दिखाया अपना दम.
इस तरीके से होती है भर्तीआर्मी डॉग यूनिट में सिर्फ वही डॉग भर्ती होते हैं, जिनकी ब्रीडिंग और ट्रेनिंग मेरठ स्थित 'इंडियन आर्मी रीमाउंट एंड वेटनरी कॉर्प्स में हुई हो. आर्मी की एक यूनिट में डॉग्स की 24 पोस्ट होती हैं. हर डॉग का मिलिट्री नंबर और नाम होता है.शुरुआती ट्रेनिंगसेना के इन स्निफर डॉग कि शुरुआती ट्रेनिंग में सुबह की दौड़, सामान्य ट्रेनिंग और हैंडलर के साथ तालमेल पर जोर दिया जाता है. इस हद तक ट्रेनिंग दी जाती है कि यह हैंडलर के इशारों संग मौखिक आदेश भी पहचान-मानना सीख जाते हैं.

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स्पेशल ट्रेनिंग
शुरूआती ट्रेनिंग के बाद इन स्निफर डॉग्स की 36 हफ्तों की ट्रेनिंग होती है. इस दौरान हर डॉग का किट बैग अलाट किया जाता है. इन्हें एक जवान की तरह हर गुण सिखाया जाता है. इन डॉग को दुश्मन और भीड़ भरे इलाके में कोई खास खुशबू पहचानने के साथ-साथ बर्फ के नीचे दबे लोगों को ढूंढने की भी ट्रेनिंग दी जाती है.

सबसे भरोसेमंद
ज्यादा जोखिम वाले ऑपरेशन में डॉग स्क्वाड सबसे भरोसेमंद होते हैं. 500 से 800 मीटर से सूंघकर खतरा भांपने की इनकी कला दुश्मनों पर कहर ढाती है. इनके कॉलर पर कैमरा लगा दिया जाए तो दुश्मन के इलाके में जाकर काफी कुछ रिकॉर्ड कर लाते हैं. यही नहीं यह काफी देर बिना भौंके रह सकते हैं.

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जैसी ब्रीड वैसा काम
अमूमन जर्मन शेफर्ड को गार्ड और इन्फेंट्री पेट्रोलिंग में लगाया जाता है तो लैब्राडोर को सर्च ऑपरेशन में लगाया जाता है. वहीं मेलानाइस ऑफ भारतीय नस्ल के मुधोल हाउंड को मैन टू मैन ऑपेरशन में लगाया जाता है.

8-9 साल में रिटायरमेंट
स्पेशल डॉग्स करीब 8 से 9 साल सेवा में रहते हैं. बारूद जैसी चीजों के कारण इनकी सेहत जल्दी गिरने लगती है. इन्हें सैलरी के तौर पर बेहद खास खाना और सुविधाएं मिलती हैं. यह शुरुआत से आखिरी तक एक ही यूनिट में रहते हैं. रिटायरमेंट के बाद ज्यादातर डॉग को सेना के जवान ही गोद ले लेते हैं.

Intro:देखिए ईटीवी भारत की यह स्पेशल रिपोर्ट।

लखनऊ। डिफेंस एक्सपो2020 में आर्मी डॉग्स यूनिट भी अपनी क्षमता दिखा रही है। इस यूनिट के डॉग्स भले ही जवानों के इशारों चले लेकिन ये इनसे एक पोस्ट सीनियर होते हैं।

ऑपरेशन के दौरान डॉग्स कमांडिंग पोजीशन में होते हैं। इन डॉग्स ने एक बार दुश्मन या माइंस का संकेत दे दिया तो हैंडलर को मातीत की तरह उसे मानने के सिवाय कोई विकल्प नहीं होता है।

देखिए ईटीवी भारत की यह स्पेशल रिपोर्ट।


Body: इस तरीके से होती है भर्ती

आर्मी डॉग्स यूनिट में सिर्फ वही डॉग्स भर्ती होते हैं जिनकी ब्रीडिंग और ट्रेनिंग मेरठ स्थित 'इंडियन आर्मी रीमाउंट एंड वेटनरी कॉर्प्स में हुई हो। आर्मी की एक यूनिट में डॉग्स की 24 पोस्ट होती है। हर डॉग का मिलिट्री नंबर और नाम होता है।

शुरुआती ट्रेनिंग

सेना के इन स्निफर डॉग्स कि शुरुआती ट्रेनिंग में सुबह की दौड़, सामान्य ट्रेनिंग और हैंडलर के साथ तालमेल पर जोर दिया जाता है। इस हद तक ट्रेनिंग दी जाती है कि यह हैंडलर के इशारों संग मौखिक आदेश भी पहचान-मानना सीख जाते हैं।

स्पेशल ट्रेनिंग

शुरूआती ट्रेनिंग के बाद इन स्निफर डॉग्स की 36 हफ्तों की ट्रेनिंग होती है। इस दौरान हर डॉग का किट बैग अलाट किया जाता है। इन्हें एक जवान की तरह हर फन सिखाया जाता है। दुश्मन और भीड़ भरे इलाके में कोई खास खुशबू पहचानने के साथ-साथ बर्फ के नीचे दबे लोगों को ढूंढने की भी ट्रेनिंग दी जाती है।

होते हैं सबसे भरोसेमंद

ज्यादा जोखिम वाले ऑपरेशन में डॉग स्क्वाड सबसे भरोसेमंद होते हैं। 500 से 800 मीटर से सूंघकर खतरा भागने की इनकी कला दुश्मनों पर कहर से कम नहीं होती। इनके कॉलर पर कैमरा लगा दिया जाए तो दुश्मन के इलाके में जाकर काफी कुछ रिकॉर्ड कर लाते हैं। यही नहीं यह काफी देर बिना भौंके रह सकते हैं।

जैसी ब्रीड वैसा काम

अमूमन जर्मन शेफर्ड को गार्ड और इन्फेंट्री पेट्रोलिंग में लगाया जाता है तो लैब्राडोर को सर्च ऑपरेशन में लगाया जाता है। वहीं मेलानाइस ऑफ भारतीय नस्ल के मुधोल हाउंड को मैन तो मैन ऑपेरशन में लगाया जाता है।

8-9 साल में रिटायरमेंट

स्पेशल डॉग्स करीब 8 से 9 साल सेवा में रहते हैं। बारूद जैसी चीजों के कारण इनकी सेहत जल्दी गिरने लगती है। इन्हें सैलरी के तौर पर बेहद खास खाना और सुविधाएं मिलती हैं। यह शुरुआत से आखिरी तक एक ही यूनिट में रहते हैं। रिटायरमेंट के बाद ज्यादातर को सेना के जवान ही गोद ले लेते हैं।


Conclusion:डिफेंस एक्सपो2020 में जहां देशी-विदेशी कंपनियों के रक्षा उत्पाद शामिल हुए। वहीं दूसरी ओर सेना में शामिल स्निफर डॉग्स भी चर्चे जरूरी हैं। सेना को यह काफी मजबूती प्रदान करते हैं।

अनुराग मिश्र

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