लखनऊ: राजधानी में 5 फरवरी को शुरू हुए 11वें डिफेंस एक्सपो का रविवार को समापन हुआ. डिफेंस एक्सपो 2020 में आर्मी डॉग्स यूनिट भी अपनी क्षमता दिखाई. इस यूनिट के डॉग भले ही जवानों के इशारों पर चले लेकिन ये इनसे एक पोस्ट सीनियर होते हैं. ऑपरेशन के दौरान डॉग कमांडिंग पोजीशन में होते हैं. इन डॉग ने एक बार दुश्मन या माइंस का संकेत दे दिया तो हैंडलर को उसे मानने के सिवाय कोई विकल्प नहीं होता है.
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स्पेशल ट्रेनिंग
शुरूआती ट्रेनिंग के बाद इन स्निफर डॉग्स की 36 हफ्तों की ट्रेनिंग होती है. इस दौरान हर डॉग का किट बैग अलाट किया जाता है. इन्हें एक जवान की तरह हर गुण सिखाया जाता है. इन डॉग को दुश्मन और भीड़ भरे इलाके में कोई खास खुशबू पहचानने के साथ-साथ बर्फ के नीचे दबे लोगों को ढूंढने की भी ट्रेनिंग दी जाती है.
सबसे भरोसेमंद
ज्यादा जोखिम वाले ऑपरेशन में डॉग स्क्वाड सबसे भरोसेमंद होते हैं. 500 से 800 मीटर से सूंघकर खतरा भांपने की इनकी कला दुश्मनों पर कहर ढाती है. इनके कॉलर पर कैमरा लगा दिया जाए तो दुश्मन के इलाके में जाकर काफी कुछ रिकॉर्ड कर लाते हैं. यही नहीं यह काफी देर बिना भौंके रह सकते हैं.
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जैसी ब्रीड वैसा काम
अमूमन जर्मन शेफर्ड को गार्ड और इन्फेंट्री पेट्रोलिंग में लगाया जाता है तो लैब्राडोर को सर्च ऑपरेशन में लगाया जाता है. वहीं मेलानाइस ऑफ भारतीय नस्ल के मुधोल हाउंड को मैन टू मैन ऑपेरशन में लगाया जाता है.
8-9 साल में रिटायरमेंट
स्पेशल डॉग्स करीब 8 से 9 साल सेवा में रहते हैं. बारूद जैसी चीजों के कारण इनकी सेहत जल्दी गिरने लगती है. इन्हें सैलरी के तौर पर बेहद खास खाना और सुविधाएं मिलती हैं. यह शुरुआत से आखिरी तक एक ही यूनिट में रहते हैं. रिटायरमेंट के बाद ज्यादातर डॉग को सेना के जवान ही गोद ले लेते हैं.