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भाजपा में आकर अपर्णा यादव ने घाटे का सौदा तो नहीं कर लिया

समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव 2022 के विधानसभा चुनावों से ठीक पहले 19 जनवरी 2022 को भाजपा में शामिल हुई थीं. इस चुनाव में उन्होंने भाजपा के लिए जोर-शोर से प्रचार भी किया. हालांकि वह इस चुनाव में प्रत्याशी नहीं थीं. सीटों की घोषणा होने से पहले कयास लगाए जा रहे थे कि वह लखनऊ की कैंट विधानसभा सीट से मैदान में उतरेंगी. हालांकि सीटों की घोषणा हुई तो सूची में उनका नाम ही नहीं था. यूपी के ब्यूरो चीफ आलोक त्रिपाठी का पढ़ें यह विशेष लेख...

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Published : Nov 19, 2022, 9:42 PM IST

Updated : Nov 19, 2022, 11:04 PM IST

लखनऊ : समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव 2022 के विधानसभा चुनावों से ठीक पहले 19 जनवरी 2022 को भाजपा में शामिल हुई थीं. इस चुनाव में उन्होंने भाजपा के लिए जोर-शोर से प्रचार भी किया. हालांकि वह इस चुनाव में प्रत्याशी नहीं थीं. सीटों की घोषणा होने से पहले कयास लगाए जा रहे थे कि वह लखनऊ की कैंट विधानसभा सीट से मैदान में उतरेंगी. हालांकि सीटों की घोषणा हुई तो सूची में उनका नाम ही नहीं था. अपर्णा यादव को भाजपा में नौ माह और प्रदेश में सरकार बने सात माह से ज्यादा का समय गुजर चुका है, लेकिन पार्टी ने उन्हें कोई जिम्मेदारी नहीं दी है. ऐसे में कयास लगाए जाने लगे हैं कि कहीं अपर्णा यादव ने भाजपा का साथ देकर कोई गलती तो नहीं कर दी है.

राजनीति विज्ञान में स्नातक और इंग्लैंड के मैनचेस्टर विश्वविद्यालय से अंतरराष्ट्रीय संबंधों में मास्टर्स की डिग्री (Masters Degree in International Relations) हासिल करने वाली अपर्णा यादव बेहद शालीन किंतु मुखर नेता मानी जाती हैं. वह बेबाकी से अपने विचार रखती आई हैं, लेकिन उन्होंने कभी मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया. अपर्णा यादव 2014 में उस वक्त चर्चा में आईं, जब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ भारत अभियान का शुभारंभ किया. बिना इस बात की परवाह किए कि उनके गुरु व ससुर मुलायम सिंह यादव और जेठ सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव क्या कहेंगे? समाजवादी पार्टी पर इसका क्या प्रभाव होगा. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके इस अभियान की मुक्त कंठ से प्रशंसा की. वह यहीं नहीं रुकीं, उन्होंने ने केंद्र सरकार के कुछ और फैसलों की भी सराहना की. उस वक्त उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की ही सरकार थी.

भाजपा की सदस्यता ग्रहण करतीं अपर्णा. (फाइल फोटो)
भाजपा की सदस्यता ग्रहण करतीं अपर्णा. (फाइल फोटो)

2017 के विधानसभा चुनावों में अपर्णा यादव ने सक्रिय राजनीति में कदम रखा और समाजवादी पार्टी के टिकट पर राजधानी लखनऊ की कैंट विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरीं. इस चुनाव में उन्हें भाजपा की रीता बहुगुणा जोशी से 33 हजार से अधिक मतों से पराजय का सामना करना पड़ा. 2017 का चुनाव भारतीय जनता पार्टी ने जीता और योगी आदित्यनाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. 2017 में अपनी पराजय के बाद उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अपना भाई बताते हुए कहा कि वह प्रदेश के लिए अच्छा कार्य करेंगे. योगी आदित्यनाथ और अपर्णा यादव के रिश्ते बहुत मधुर माने जाते हैं. दरअसल संन्यास लेने से पहले योगी का नाम अजय बिष्ट था. अपर्णा भी बिष्ट हैं और दोनों ही नेता उत्तराखंड स्थित गढ़वाल के मूल निवासी हैं. 2017 के बाद अपर्णा यादव के कई ऐसे बयान आए जो भारतीय जनता पार्टी को खुश करने वाले और सपा को आहत करने वाले थे. हालांकि इन बयानों में कोई व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं थी.

मुलायम सिंह यादव का आशीर्वाद लेतीं अपर्णा यादव. (फाइल फोटो)
मुलायम सिंह यादव का आशीर्वाद लेतीं अपर्णा यादव. (फाइल फोटो)

भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय से शास्‍त्रीय संगीत की ठुमरी विधा में शिक्षा लेने वाली अपर्णा यादव ने इसके बाद अपनी सामाजिक सक्रियता बढ़ाई. वह 'बी अवेयर' नाम का एक सामाजिक संगठन चलाती हैं. यह संगठन महिला अधिकारों और जागरूकता को लेकर काम करता है. कोविड काल में भी वह इस संगठन के माध्यम से खूब सक्रिय रहीं. 19 जनवरी 2022 को भाजपा में शामिल होने के बाद विधानसभा चुनावों में अपर्णा उम्मीदवार भले ही नहीं बनीं, किंतु उन्होंने पार्टी के लिए जमकर प्रचार किया. वह इस जीत से बेहद प्रसन्न हुईं. राष्ट्र धर्म को सबसे ऊपर मानने वाली अपर्णा यादव ने भाजपा में शामिल होते समय कहा था 'मैं भाजपा की बहुत आभारी हूं. मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी से प्रभावित रही हूं. मेरे लिए राष्ट्र हमेशा सबसे पहले आता है और राष्ट्र धर्म सबसे जरूरी है, मैं उसी राह पर निकली हूं.'

प्रधानमंत्री के साथ शेल्फी. (फाइल फोटो)
प्रधानमंत्री के साथ शेल्फी. (फाइल फोटो)

प्रदेश में विधानसभा चुनाव संपन्न होने के बाद कयास लगाए गए कि उन्हें मंत्री बनाया जाएगा, लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ. फिर चर्चाएं उठीं कि विधान परिषद के चुनाव में उन्हें उनकी मेहनत का पारितोषिक मिलेगा, लेकिन यह मौका भी खाली गया. मुलायम सिंह के निधन के बाद रिक्त हुई मैनपुरी संसदीय सीट पर अपनी जेठानी डिपंल यादव के खिलाफ उनके चुनाव लड़ने की चर्चा चली, लेकिन यह चर्चा भी बेनतीजा रही. अब कहा जा रहा है कि निकाय चुनावों में भाजपा उन्हें राजधानी लखनऊ से मेयर पद का प्रत्याशी बना सकती है. हालांकि लोगों का भरोसा अब इन अटकलों से उठ चुका है. राजनीतिक हलकों में यह कहा जाने लगा है कि अपर्णा यादव ने भाजपा में जाकर बड़ी गलती की है. यदि चुनाव से पहले ही वह अपनी शर्तें भाजपा पर जाहिर कर देतीं, तो शायद उन्हें कुछ मिल जाता. अब उन्हें भाजपा में वह सम्मान मिल पाए, जिसे सोचकर वह पार्टी में आई थीं, कहना कठिन है. हालांकि भारतीय जनता पार्टी कभी अपने पत्ते नहीं खोलती है. पार्टी को अपर्णा का कब और क्या करना है, सही वक्त पर ही पता चलेगा.

यह भी पढ़ें : पनियाला के लिए संजीवनी साबित होगी जीआई के लिए योगी सरकार की पहल

लखनऊ : समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव 2022 के विधानसभा चुनावों से ठीक पहले 19 जनवरी 2022 को भाजपा में शामिल हुई थीं. इस चुनाव में उन्होंने भाजपा के लिए जोर-शोर से प्रचार भी किया. हालांकि वह इस चुनाव में प्रत्याशी नहीं थीं. सीटों की घोषणा होने से पहले कयास लगाए जा रहे थे कि वह लखनऊ की कैंट विधानसभा सीट से मैदान में उतरेंगी. हालांकि सीटों की घोषणा हुई तो सूची में उनका नाम ही नहीं था. अपर्णा यादव को भाजपा में नौ माह और प्रदेश में सरकार बने सात माह से ज्यादा का समय गुजर चुका है, लेकिन पार्टी ने उन्हें कोई जिम्मेदारी नहीं दी है. ऐसे में कयास लगाए जाने लगे हैं कि कहीं अपर्णा यादव ने भाजपा का साथ देकर कोई गलती तो नहीं कर दी है.

राजनीति विज्ञान में स्नातक और इंग्लैंड के मैनचेस्टर विश्वविद्यालय से अंतरराष्ट्रीय संबंधों में मास्टर्स की डिग्री (Masters Degree in International Relations) हासिल करने वाली अपर्णा यादव बेहद शालीन किंतु मुखर नेता मानी जाती हैं. वह बेबाकी से अपने विचार रखती आई हैं, लेकिन उन्होंने कभी मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया. अपर्णा यादव 2014 में उस वक्त चर्चा में आईं, जब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ भारत अभियान का शुभारंभ किया. बिना इस बात की परवाह किए कि उनके गुरु व ससुर मुलायम सिंह यादव और जेठ सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव क्या कहेंगे? समाजवादी पार्टी पर इसका क्या प्रभाव होगा. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके इस अभियान की मुक्त कंठ से प्रशंसा की. वह यहीं नहीं रुकीं, उन्होंने ने केंद्र सरकार के कुछ और फैसलों की भी सराहना की. उस वक्त उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की ही सरकार थी.

भाजपा की सदस्यता ग्रहण करतीं अपर्णा. (फाइल फोटो)
भाजपा की सदस्यता ग्रहण करतीं अपर्णा. (फाइल फोटो)

2017 के विधानसभा चुनावों में अपर्णा यादव ने सक्रिय राजनीति में कदम रखा और समाजवादी पार्टी के टिकट पर राजधानी लखनऊ की कैंट विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरीं. इस चुनाव में उन्हें भाजपा की रीता बहुगुणा जोशी से 33 हजार से अधिक मतों से पराजय का सामना करना पड़ा. 2017 का चुनाव भारतीय जनता पार्टी ने जीता और योगी आदित्यनाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. 2017 में अपनी पराजय के बाद उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अपना भाई बताते हुए कहा कि वह प्रदेश के लिए अच्छा कार्य करेंगे. योगी आदित्यनाथ और अपर्णा यादव के रिश्ते बहुत मधुर माने जाते हैं. दरअसल संन्यास लेने से पहले योगी का नाम अजय बिष्ट था. अपर्णा भी बिष्ट हैं और दोनों ही नेता उत्तराखंड स्थित गढ़वाल के मूल निवासी हैं. 2017 के बाद अपर्णा यादव के कई ऐसे बयान आए जो भारतीय जनता पार्टी को खुश करने वाले और सपा को आहत करने वाले थे. हालांकि इन बयानों में कोई व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं थी.

मुलायम सिंह यादव का आशीर्वाद लेतीं अपर्णा यादव. (फाइल फोटो)
मुलायम सिंह यादव का आशीर्वाद लेतीं अपर्णा यादव. (फाइल फोटो)

भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय से शास्‍त्रीय संगीत की ठुमरी विधा में शिक्षा लेने वाली अपर्णा यादव ने इसके बाद अपनी सामाजिक सक्रियता बढ़ाई. वह 'बी अवेयर' नाम का एक सामाजिक संगठन चलाती हैं. यह संगठन महिला अधिकारों और जागरूकता को लेकर काम करता है. कोविड काल में भी वह इस संगठन के माध्यम से खूब सक्रिय रहीं. 19 जनवरी 2022 को भाजपा में शामिल होने के बाद विधानसभा चुनावों में अपर्णा उम्मीदवार भले ही नहीं बनीं, किंतु उन्होंने पार्टी के लिए जमकर प्रचार किया. वह इस जीत से बेहद प्रसन्न हुईं. राष्ट्र धर्म को सबसे ऊपर मानने वाली अपर्णा यादव ने भाजपा में शामिल होते समय कहा था 'मैं भाजपा की बहुत आभारी हूं. मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी से प्रभावित रही हूं. मेरे लिए राष्ट्र हमेशा सबसे पहले आता है और राष्ट्र धर्म सबसे जरूरी है, मैं उसी राह पर निकली हूं.'

प्रधानमंत्री के साथ शेल्फी. (फाइल फोटो)
प्रधानमंत्री के साथ शेल्फी. (फाइल फोटो)

प्रदेश में विधानसभा चुनाव संपन्न होने के बाद कयास लगाए गए कि उन्हें मंत्री बनाया जाएगा, लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ. फिर चर्चाएं उठीं कि विधान परिषद के चुनाव में उन्हें उनकी मेहनत का पारितोषिक मिलेगा, लेकिन यह मौका भी खाली गया. मुलायम सिंह के निधन के बाद रिक्त हुई मैनपुरी संसदीय सीट पर अपनी जेठानी डिपंल यादव के खिलाफ उनके चुनाव लड़ने की चर्चा चली, लेकिन यह चर्चा भी बेनतीजा रही. अब कहा जा रहा है कि निकाय चुनावों में भाजपा उन्हें राजधानी लखनऊ से मेयर पद का प्रत्याशी बना सकती है. हालांकि लोगों का भरोसा अब इन अटकलों से उठ चुका है. राजनीतिक हलकों में यह कहा जाने लगा है कि अपर्णा यादव ने भाजपा में जाकर बड़ी गलती की है. यदि चुनाव से पहले ही वह अपनी शर्तें भाजपा पर जाहिर कर देतीं, तो शायद उन्हें कुछ मिल जाता. अब उन्हें भाजपा में वह सम्मान मिल पाए, जिसे सोचकर वह पार्टी में आई थीं, कहना कठिन है. हालांकि भारतीय जनता पार्टी कभी अपने पत्ते नहीं खोलती है. पार्टी को अपर्णा का कब और क्या करना है, सही वक्त पर ही पता चलेगा.

यह भी पढ़ें : पनियाला के लिए संजीवनी साबित होगी जीआई के लिए योगी सरकार की पहल

Last Updated : Nov 19, 2022, 11:04 PM IST
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