लखनऊः लखनऊ विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह के उपलक्ष्य में रविवार को आयोजित साहित्य समारोह में फिल्म अभिनेता अनुपम खेर के साथ वर्चुअल इंटरफेस का आयोजन किया गया. इस दौरान अनुपम खेर ने कहा मैंने लखनऊ में पहली साइकिल खरीदी थी. हालांकि मैं कभी लखनऊ विश्वविद्यालय का छात्र नहीं रहा हूं, लेकिन निराला नगर से हजरतगंज जाते समय ज्यादातर लखनऊ विश्वविद्यालय के सामने से गुजरता था. इसलिए आज भी एलयू से बहुत लगाव महसूस करते हैं.
फिल्म अभिनेता अनुपम खेर ने कहा कि लविवि के 100 साल पूरे होने की खुशी मैं अच्छी तरह से महसूस कर सकता हूं. यह एक खास मौका है. साहित्यकार यतींद्र मिश्र के साथ बातचीत में अभिनेता अनुपम खेर ने बताया कि मुझे बचपन से ही कुछ न कुछ सीखने की आदत सी थी.
फिल्म सारांश से पहले आर्थिक रूप से था परेशान
पुरानी यादें ताजा करते हुए अनुपम खेर ने कहा कि मेरे जीवन में दिल्ली के तीन साल बहुत महत्वपूर्ण थे. आज नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा का शुक्रगुजार हूं. उन्होंने बताया कि जब वह 28 साल के थे तब 65 साल के बुजुर्ग का रोल फिल्म सारांश में किया. फिल्म सारांश से पहले आर्थिक और भावनात्मक रूप से परेशान था. अगर इस फिल्म की जगह कोई हीरो का रोल किया होता तो आज 500 से अधिक रोल नहीं किये होते. उन्होंने कहा कि फिल्म सारांश के वीबी प्रधान का रोल तो मेरी खुशकिस्मती थी. मुझे बलराज साहनी और सुनील दत्त अच्छे लगते थे. मैं दिलीप कुमार की तरह नहीं बनना चाहता था.
यात्रा से अहम मंजिल
दिग्गज अभिनेता अनुपम खेर ने बताया कि उनकी दूसरी फिल्म जवानी थी. इसमें एक रोल तो शर्मिला टैगोर और दूसरा मौसमी चटर्जी के विपरीत था. लेकिन मैंने शर्मिला टैगोर को चुना. उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि मैं उस सिस्टम का हिस्सा हूं, जहां यात्रा से अहम मंजिल होती है. अभिनय करना है, उसके बारे में ज्यादा सोचना नहीं था.
पिता मेरे सबसे अच्छे दोस्त थे
अनुपम खेर ने अभिनय और भारतीय सिनेमा के बारे में अपने विचारों को साझा किया. उन्होंने कहा कि मेरे सबसे अच्छे दोस्त पिता थे. उन्होंने अपने पिता से कई चीजें सीखीं, लेकिन आज माहौल बदल चुका है. तब कुछ बोलने से पहले बहुत सोचना पड़ता था. उन्होंने कहा कि सबसे पसंदीदा पुस्तकें चार्ली चैपलिन की जीवनी, लस्ट फॉर लाइफ और हाउ दी स्टील वास् टेम्पर्ड हैं. इस दौरान कुलपति प्रो आलोक कुमार राय व प्रो. निशि पांडेय शामिल रहीं.