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एंटीबायोटिक की ओवरडोज मार रही गुड बैक्टीरिया, बढ़ रहा ब्लैक फंगस

ब्‍लैक फंगस (Black Fungus) के बढ़ते मामलों ने डॉक्टर्स की चिंता बढ़ा दी है. अब सामने आ रहा है कि शरीर में एंटीबायोटिक (antibiotics)की मात्रा बढ़ने से भी ब्लैक फंगस का खतरा बढ़ रहा है. कोरोना में इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए जिंक सप्लीमेंट्स दिए जा रहे हैं. पढ़िए पूरी रिपोर्ट...

एंटीबायोटिक की ओवरडोज मार रही गुड बैक्टीरिया
एंटीबायोटिक की ओवरडोज मार रही गुड बैक्टीरिया
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Published : Jun 10, 2021, 1:29 PM IST

लखनऊ: देश भर में ब्लैक फंगस (Black Fungus) का हमला जारी है. कई राज्यों ने इसे महामारी घोषित कर दिया है. अब तक कई मरीजों की फंगस जान ले चुका है. वहीं चौकाने वाली बात यह है कि फंगस की चपेट में आए तमाम रोगी ऐसे भी हैं, जिन्होंने स्टेरॉयड थेरेपी नहीं ली. साथ ही कोविड के दौरान वह ऑक्सीजन सपोर्ट पर भी नहीं रहे. ऐसे में डॉक्टरों का दावा है कि होम आइसोलेशन में रहे मरीजों ने एंटीबायोटिक (antibiotics) की मनमानी डोज ली. ऐसे में शरीर के गुड बैक्टीरिया का खात्मा हो गया. लिहाजा, वातावरण में मौजूद फंगस का व्यक्ति पर हमला करना आसान हो गया.

यूपी में सबसे अधिक ब्लैक फंगस के मरीज केजीएमयू में भर्ती हुए. इस दौरान ब्लैक फंगस के मरीजों के इलाज में माइक्रोबायोलॉजी विभाग की डॉ. शीतल वर्मा की भी ड्यूटी लगी. इस दौरान डॉ. शीतल ने कोरोना को हराकर ब्लैक फंगस की वजह से भर्ती हुए मरीजों की हिस्ट्री जुटाई. इनमें तमाम मरीजों ने स्टेरॉयड व ऑक्सीजन थेरेपी नहीं ली थी. वहीं होम आइसोलेशन में मरीजों ने मनमाने तरीके से दो से तीन एंटीबायोटिक का कोर्स लंबे वक्त तक चलाया. ऐसे में एंटीबायोटिक की ओवर डोज से गुड बैक्टीरिया खत्म हो गए. यह भी ब्लैक फंगस को बढ़ावा देने के कारकों में एक है.

जानिए एक्सपर्ट्स की राय.

शरीर की बीमारियों से सुरक्षा करते हैं गुड बैक्टीरिया
डॉ. शीतल के मुताबिक शरीर में करोड़ों बैक्टीरिया पाए जाते हैं. इनमें से ज्यादातर गुड यानी स्वास्थ्य के लिए अच्छे बैक्टीरिया होते हैं. मनुष्य की आंत में अगर गुड बैक्टीरिया न हो तो भोजन नहीं पचेगा. ऐसे में माना जाता है कि शरीर में करीब सौ ट्रिलियन अच्छे बैक्टीरिया पा जाते हैं. ये बैक्टीरिया कई तरह के विटामिन, फॉलिक एसिड व अन्य पोषक तत्व बनाते हैं. यह बैक्टीरिया कई बीमारियों से शरीर की सुरक्षा करते हैं.

गुड बैक्टीरिया का खत्मा, सेहत पर भारी
डॉ. शीतल वर्मा के मुताबिक सेहतमंद रहने के लिए गुड बैक्टीरिया का ख्याल रखना होगा. ऐसे में मरीजों के इलाज वक्त दवाओं की डोज पर ध्यान रखना होगा. बिना जरूरत के हाई एंटीबायोटिक न लें. इससे गुड बैक्टीरिया का बचाव होगा. इनके रहने से शरीर के तमाम इंफेक्शन से बचाव हो सकेगा. लिहाजा एंटीबायोटिक दवाइयों का इस्तेमाल बिना डॉक्टर की सलाह के कतई न लें. इससे ड्रग रजिस्टेंस समेत कई तरह के नुकसान उठाने पड़ सकते हैं.

इसे भी पढ़ें-आपके घर के आसपास ही है ब्लैक फंगस, ऐसे करें बचाव

लकड़ी-नमी वाली जगह पर फंगस
ब्लैक फंगस कोम्युकर माइकोसिस कहते हैं. यह म्युकर माइकोसिस ग्रुप का फंगस है. फंगस नमी वाले स्थान, फफूंद वाली जगह, लकड़ी पर, गमले में, लोहे पर लगी जंग में, गोबर में व जमीन की सतह पर पाया जाता है. यानी कि यह वातावरण में मौजूद है. ऐसे में घर या आस-पास भी ब्लैक फंगस का खतरा हो सकता है.

नाक में पहुंचता है फंगस
ब्लैक फंगस वातावरण में है. ऐसे में हर किसी की नाक तक पहुंचता है. मगर मजबूत इम्युनिटी वाले व्यक्तियों में अपना दुष्प्रभाव नहीं छोड़ पाता है. जबकि कमजोर इम्यूनिटी वाले मरीजों के शरीर में घातक बन जाता है.

इन्हें फंगस से खतरा ज्यादा
कैंसर के रोगी, डायबिटीज के रोगी, हाइपोथायराइड के मरीज, ट्रांसप्लांट के मरीज, वायरल इंफेक्शन के मरीज, बैक्टीरियल इंफेक्शन के मरीज, एचआईवी, टीबी, कोविड इंफेक्शन के मरीज, पोस्ट कोविड मरीज, कीमोथेरेपी, स्टेरॉयड थेरेपी, इम्युनोसप्रेशन थेरेपी के मरीजों में ब्लैक फंगस का खतरा ज्यादा रहता है.

इसे भी पढ़ें-ब्लैक फंगस से कैसे करें बचाव और क्या हैं इसके लक्षण, यहां पढ़ें

ब्रेन में पहुंचते ही बन जाता जनलेवा
आंख में फंगस पहुंचने पर भी नजर अंदाज करने से यह दिमाग और आंख के बीच की हड्डी को तोड़ देता है. इस हड्डी को आर्बिट रूट कहते हैं. इसी को तोड़कर फंगस ब्रेन में पहुंच जाता है. ब्रेन में मौजूद सीएसएफ फ्ल्यूड में इन्फेक्शन कर देता है. ऐसे में मरीज फंगल इंसेफेलाइटिस की चपेट में आ जाता है. ऐसे स्थिति में पहुंचने पर 70 से 80 फीसद मरीज की जान चली जाती है. इसके अलावा संक्रमण जब तक नाक में रहता है, तब तक इलाज संभव है. ब्लैक फंगस मस्तिष्क तक नहीं पहुंचना चाहिए. ये जब मस्तिष्क में पहुंच जाता है, तब कैवेरनेस साइनस थ्रॉम्बोसिस करता है. इसमें दिमाग की जो नसें खून वापस लेकर हृदय तक आती हैं, वो चोक हो जाती हैं. खून का थक्का बनने के कारण मस्तिष्क को पर्याप्त मात्रा में रक्त और ऑक्सीजन की आपूर्ति बाधित हो जाती है, जो मौत का बड़ा कारण है. वहीं खून में फंगस होने पर सेप्टीसीमिया का भी खतरा बढ़ जाता है. इसमें भी 70 से 80 फीसद डेथ रेट है.

कौन सी जांचें हैं अहम
व्यक्ति को लक्षण होने का एहसास होने पर तत्काल अस्पताल पहुंचना चाहिए. डॉक्टर से संपर्क कर उसे सीटी स्कैन पीएनएस कराना चाहिए. साथ ही नेजल इंडोस्कोपी करा कर बीमारी को मात दें. वहीं बीमारी बढ़ने पर डॉक्टर दिक्कतों के आधार पर अन्य जांच कराएंगे.

इसे भी पढ़ें-कोरोना के हर मरीज को ब्लैक फंगस से डरने की जरूरत नहीं, पढ़िए क्या कहते हैं डॉक्टर

बलगम में कालापन भी फंगस का संकेत
ब्लैक फंगस की चपेट में आने पर शुरुआती लक्षण तो नाक बंद होना, बहना या कालापन और आंखों में लालिमा हो सकती है. संक्रमण का स्तर गंभीर होने पर बलगम में कालापान, खून की उल्टी, बेहोशी इत्यादि की समस्या शुरू हो सकती है. ऐसे में कोरोना के जो मरीज स्वस्थ होकर घर पर आराम कर रहे हैं, वो अपने स्वास्थ्य की निगरानी करें. कोरोना संक्रमण के बाद व्यक्ति के लिए पहले 30 दिन बहुत अहम होते हैं.

मुंह या गालों का सुन्न होना
मुंह या गालों के आसपास सुन्नपन महसूस होने पर भी ध्यान दें. एक तरफ सूजन, पैरालिसिस, लालिमा, सुन्नपन होने जैसे लक्षण भी ब्लैक फंगस के शुरुआती लक्षण हो सकते हैं. मासंपेशियों में अचानक कमजोरी, लार टपकाना भी फंगस इंफेक्शन का लक्षण हो सकता है.

दांत-जबड़ों में दर्द, हो जाएं सतर्क
ब्लैक फंगस के कारण व्यक्ति के दांतों या जबड़े में दर्द महसूस हो सकता है. चेहरे पर सूजन आ सकती है. ब्लैक फंगस के कारण हड्डियों में रक्त का संचार बंद हो जाता है, जिससे उसमें गलन शुरू हो जाती है. इलाज में देरी होने पर व्यक्ति का दांत या जबड़ा भी निकालना पड़ सकता है. वहीं आंत-किडनी पर भी असर डालता है.

लखनऊ: देश भर में ब्लैक फंगस (Black Fungus) का हमला जारी है. कई राज्यों ने इसे महामारी घोषित कर दिया है. अब तक कई मरीजों की फंगस जान ले चुका है. वहीं चौकाने वाली बात यह है कि फंगस की चपेट में आए तमाम रोगी ऐसे भी हैं, जिन्होंने स्टेरॉयड थेरेपी नहीं ली. साथ ही कोविड के दौरान वह ऑक्सीजन सपोर्ट पर भी नहीं रहे. ऐसे में डॉक्टरों का दावा है कि होम आइसोलेशन में रहे मरीजों ने एंटीबायोटिक (antibiotics) की मनमानी डोज ली. ऐसे में शरीर के गुड बैक्टीरिया का खात्मा हो गया. लिहाजा, वातावरण में मौजूद फंगस का व्यक्ति पर हमला करना आसान हो गया.

यूपी में सबसे अधिक ब्लैक फंगस के मरीज केजीएमयू में भर्ती हुए. इस दौरान ब्लैक फंगस के मरीजों के इलाज में माइक्रोबायोलॉजी विभाग की डॉ. शीतल वर्मा की भी ड्यूटी लगी. इस दौरान डॉ. शीतल ने कोरोना को हराकर ब्लैक फंगस की वजह से भर्ती हुए मरीजों की हिस्ट्री जुटाई. इनमें तमाम मरीजों ने स्टेरॉयड व ऑक्सीजन थेरेपी नहीं ली थी. वहीं होम आइसोलेशन में मरीजों ने मनमाने तरीके से दो से तीन एंटीबायोटिक का कोर्स लंबे वक्त तक चलाया. ऐसे में एंटीबायोटिक की ओवर डोज से गुड बैक्टीरिया खत्म हो गए. यह भी ब्लैक फंगस को बढ़ावा देने के कारकों में एक है.

जानिए एक्सपर्ट्स की राय.

शरीर की बीमारियों से सुरक्षा करते हैं गुड बैक्टीरिया
डॉ. शीतल के मुताबिक शरीर में करोड़ों बैक्टीरिया पाए जाते हैं. इनमें से ज्यादातर गुड यानी स्वास्थ्य के लिए अच्छे बैक्टीरिया होते हैं. मनुष्य की आंत में अगर गुड बैक्टीरिया न हो तो भोजन नहीं पचेगा. ऐसे में माना जाता है कि शरीर में करीब सौ ट्रिलियन अच्छे बैक्टीरिया पा जाते हैं. ये बैक्टीरिया कई तरह के विटामिन, फॉलिक एसिड व अन्य पोषक तत्व बनाते हैं. यह बैक्टीरिया कई बीमारियों से शरीर की सुरक्षा करते हैं.

गुड बैक्टीरिया का खत्मा, सेहत पर भारी
डॉ. शीतल वर्मा के मुताबिक सेहतमंद रहने के लिए गुड बैक्टीरिया का ख्याल रखना होगा. ऐसे में मरीजों के इलाज वक्त दवाओं की डोज पर ध्यान रखना होगा. बिना जरूरत के हाई एंटीबायोटिक न लें. इससे गुड बैक्टीरिया का बचाव होगा. इनके रहने से शरीर के तमाम इंफेक्शन से बचाव हो सकेगा. लिहाजा एंटीबायोटिक दवाइयों का इस्तेमाल बिना डॉक्टर की सलाह के कतई न लें. इससे ड्रग रजिस्टेंस समेत कई तरह के नुकसान उठाने पड़ सकते हैं.

इसे भी पढ़ें-आपके घर के आसपास ही है ब्लैक फंगस, ऐसे करें बचाव

लकड़ी-नमी वाली जगह पर फंगस
ब्लैक फंगस कोम्युकर माइकोसिस कहते हैं. यह म्युकर माइकोसिस ग्रुप का फंगस है. फंगस नमी वाले स्थान, फफूंद वाली जगह, लकड़ी पर, गमले में, लोहे पर लगी जंग में, गोबर में व जमीन की सतह पर पाया जाता है. यानी कि यह वातावरण में मौजूद है. ऐसे में घर या आस-पास भी ब्लैक फंगस का खतरा हो सकता है.

नाक में पहुंचता है फंगस
ब्लैक फंगस वातावरण में है. ऐसे में हर किसी की नाक तक पहुंचता है. मगर मजबूत इम्युनिटी वाले व्यक्तियों में अपना दुष्प्रभाव नहीं छोड़ पाता है. जबकि कमजोर इम्यूनिटी वाले मरीजों के शरीर में घातक बन जाता है.

इन्हें फंगस से खतरा ज्यादा
कैंसर के रोगी, डायबिटीज के रोगी, हाइपोथायराइड के मरीज, ट्रांसप्लांट के मरीज, वायरल इंफेक्शन के मरीज, बैक्टीरियल इंफेक्शन के मरीज, एचआईवी, टीबी, कोविड इंफेक्शन के मरीज, पोस्ट कोविड मरीज, कीमोथेरेपी, स्टेरॉयड थेरेपी, इम्युनोसप्रेशन थेरेपी के मरीजों में ब्लैक फंगस का खतरा ज्यादा रहता है.

इसे भी पढ़ें-ब्लैक फंगस से कैसे करें बचाव और क्या हैं इसके लक्षण, यहां पढ़ें

ब्रेन में पहुंचते ही बन जाता जनलेवा
आंख में फंगस पहुंचने पर भी नजर अंदाज करने से यह दिमाग और आंख के बीच की हड्डी को तोड़ देता है. इस हड्डी को आर्बिट रूट कहते हैं. इसी को तोड़कर फंगस ब्रेन में पहुंच जाता है. ब्रेन में मौजूद सीएसएफ फ्ल्यूड में इन्फेक्शन कर देता है. ऐसे में मरीज फंगल इंसेफेलाइटिस की चपेट में आ जाता है. ऐसे स्थिति में पहुंचने पर 70 से 80 फीसद मरीज की जान चली जाती है. इसके अलावा संक्रमण जब तक नाक में रहता है, तब तक इलाज संभव है. ब्लैक फंगस मस्तिष्क तक नहीं पहुंचना चाहिए. ये जब मस्तिष्क में पहुंच जाता है, तब कैवेरनेस साइनस थ्रॉम्बोसिस करता है. इसमें दिमाग की जो नसें खून वापस लेकर हृदय तक आती हैं, वो चोक हो जाती हैं. खून का थक्का बनने के कारण मस्तिष्क को पर्याप्त मात्रा में रक्त और ऑक्सीजन की आपूर्ति बाधित हो जाती है, जो मौत का बड़ा कारण है. वहीं खून में फंगस होने पर सेप्टीसीमिया का भी खतरा बढ़ जाता है. इसमें भी 70 से 80 फीसद डेथ रेट है.

कौन सी जांचें हैं अहम
व्यक्ति को लक्षण होने का एहसास होने पर तत्काल अस्पताल पहुंचना चाहिए. डॉक्टर से संपर्क कर उसे सीटी स्कैन पीएनएस कराना चाहिए. साथ ही नेजल इंडोस्कोपी करा कर बीमारी को मात दें. वहीं बीमारी बढ़ने पर डॉक्टर दिक्कतों के आधार पर अन्य जांच कराएंगे.

इसे भी पढ़ें-कोरोना के हर मरीज को ब्लैक फंगस से डरने की जरूरत नहीं, पढ़िए क्या कहते हैं डॉक्टर

बलगम में कालापन भी फंगस का संकेत
ब्लैक फंगस की चपेट में आने पर शुरुआती लक्षण तो नाक बंद होना, बहना या कालापन और आंखों में लालिमा हो सकती है. संक्रमण का स्तर गंभीर होने पर बलगम में कालापान, खून की उल्टी, बेहोशी इत्यादि की समस्या शुरू हो सकती है. ऐसे में कोरोना के जो मरीज स्वस्थ होकर घर पर आराम कर रहे हैं, वो अपने स्वास्थ्य की निगरानी करें. कोरोना संक्रमण के बाद व्यक्ति के लिए पहले 30 दिन बहुत अहम होते हैं.

मुंह या गालों का सुन्न होना
मुंह या गालों के आसपास सुन्नपन महसूस होने पर भी ध्यान दें. एक तरफ सूजन, पैरालिसिस, लालिमा, सुन्नपन होने जैसे लक्षण भी ब्लैक फंगस के शुरुआती लक्षण हो सकते हैं. मासंपेशियों में अचानक कमजोरी, लार टपकाना भी फंगस इंफेक्शन का लक्षण हो सकता है.

दांत-जबड़ों में दर्द, हो जाएं सतर्क
ब्लैक फंगस के कारण व्यक्ति के दांतों या जबड़े में दर्द महसूस हो सकता है. चेहरे पर सूजन आ सकती है. ब्लैक फंगस के कारण हड्डियों में रक्त का संचार बंद हो जाता है, जिससे उसमें गलन शुरू हो जाती है. इलाज में देरी होने पर व्यक्ति का दांत या जबड़ा भी निकालना पड़ सकता है. वहीं आंत-किडनी पर भी असर डालता है.

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