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गैर-मुस्लिम के साथ शादी शरीयत के खिलाफ: मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड - अंतर धार्मिक शादियों पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का बयान

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का कहना है कि मुस्लिम लड़के-लड़कियों का गैर मुस्लिम से शादी करना धार्मिक रूप से गलत है. शरीयत के मुताबिक ऐसी शादी को इस्लाम सही नहीं मानता.

कॉन्सेप्ट इमेज.
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Published : Aug 5, 2021, 7:51 PM IST

लखनऊ: हाल-फिलहाल के दिनों में धर्मांतरण, मुस्लिम युवकों की गैर-मुस्लिम युवतियों से शादी और तमाम मुद्दे खूब चर्चा में रहे. इन तमाम मुद्दों में उलझकर मुसलमान युवकों और युवतियों को भी तमाम तरह के विवाद और समस्याओं का सामना करना पड़ा. इन बिंदुओं पर आज ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने प्रेस रिलीज जारी कर मुसलमान धर्मगुरुओं और युवक-युवतियों से एक अपील जारी की है.

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि इस्लाम में शादी के मामले में यह जरूरी करार दिया गया है कि एक मुस्लिम लड़की केवल एक मुस्लिम लड़के से ही शादी कर सकती है. इसी तरह एक मुस्लिम लड़का एक मुशरिक (बहुदेववादी) लड़की से शादी नहीं कर सकता. यदि उसने जाहिरी तौर पर शादी की रस्म अंजाम दी भी हैं तो शरीयत के अनुसार वैध नहीं होगी.

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि अफसोस है कि शिक्षण संस्थानों और नौकरी के अवसरों में पुरुषों और महिलाओं का साथ-साथ होना और दीनी (धार्मिक) शिक्षा से अपरिचित और माता-पिता की ओर से प्रशिक्षण की कमी के कारण अंतर धार्मिक शादियां हो रही हैं. कई घटनाएं ऐसी भी सामने आई हैं कि मुस्लिम लड़कियां गैर-मुस्लिम लड़कों के साथ चली गईं और बाद में उन्हें बड़ी कठिनाइयों से गुजरना पड़ा. यहां तक कि उन्हें अपने जीवन से भी हाथ धोना पड़ा. इस पृष्ठभूमि के संदर्भ में अनुरोध किया जाता है कि.....

  • उलेमा-ए-किराम जलसों में बार-बार इस विषय पर खिताब (संबोधन) करें और लोगों को इसके दुनियावी व आखिरत के नुकसान से जागरूक करें.
  • अधिक से अधिक महिलाओं के इज्तेमा हों और उनमें इस पहलू पर अन्य सुधारात्मक विषयों के साथ चर्चा करें.
  • मस्जिदों के इमाम जुमा के खिताब, कुरान और हदीस के दर्स में इस विषय पर चर्चा करें और लोगों को बताएं कि उन्हें अपनी बेटियों को कैसे प्रशिक्षित करना चाहिए ताकि ऐसी घटनाएं न हों?
  • माता-पिता अपने बच्चों की दीनी (धार्मिक) शिक्षा की व्यवस्था करें, लड़के और लड़कियों के मोबाइल फोन इत्यादि पर कड़ी नजर रखें, जितना हो सके लड़कियों के स्कूल में लड़कियों को पढ़ाने का प्रयास करें, सुनिश्चित करें कि उनका समय स्कूल के बाहर और कहीं भी व्यतीत न हो और उन्हें समझाएं कि एक मुसलमान के लिए एक मुसलमान ही जीवन साथी हो सकता है.
  • आमतौर पर रजिस्ट्री कार्यालय में शादी करने वाले लड़के या लड़कियों के नामों की सूची पहले ही जारी कर दी जाती है. धार्मिक संगठन, संस्थाएं, मदरसे के शिक्षक और आबादी के गणमान्य लोगों के साथ उनके घरों में जाएं. उन्हें समझाएं और बताएं कि इस तथाकथित शादी में उनका पूरा जीवन हराम में व्यतीत होगा. अनुभव से पता चलता है कि सामयिक जुनून के तहत की जाने वाली यह शादी दुनिया में भी विफल ही रहेगी.
  • लड़कों और विशेषकर लड़कियों के अभिभावकों को ध्यान रखना चाहिए कि शादी में देरी न हो, समय पर शादी करें, क्योंकि शादी में देरी भी ऐसी घटनाओं का एक बड़ा कारण हैं.
  • निकाह सादगी से करें, इसमें बरकत भी है. नस्ल की सुरक्षा भी है और अपनी कीमती दौलत को बर्बाद होने से बचाना भी है.

लखनऊ: हाल-फिलहाल के दिनों में धर्मांतरण, मुस्लिम युवकों की गैर-मुस्लिम युवतियों से शादी और तमाम मुद्दे खूब चर्चा में रहे. इन तमाम मुद्दों में उलझकर मुसलमान युवकों और युवतियों को भी तमाम तरह के विवाद और समस्याओं का सामना करना पड़ा. इन बिंदुओं पर आज ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने प्रेस रिलीज जारी कर मुसलमान धर्मगुरुओं और युवक-युवतियों से एक अपील जारी की है.

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि इस्लाम में शादी के मामले में यह जरूरी करार दिया गया है कि एक मुस्लिम लड़की केवल एक मुस्लिम लड़के से ही शादी कर सकती है. इसी तरह एक मुस्लिम लड़का एक मुशरिक (बहुदेववादी) लड़की से शादी नहीं कर सकता. यदि उसने जाहिरी तौर पर शादी की रस्म अंजाम दी भी हैं तो शरीयत के अनुसार वैध नहीं होगी.

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि अफसोस है कि शिक्षण संस्थानों और नौकरी के अवसरों में पुरुषों और महिलाओं का साथ-साथ होना और दीनी (धार्मिक) शिक्षा से अपरिचित और माता-पिता की ओर से प्रशिक्षण की कमी के कारण अंतर धार्मिक शादियां हो रही हैं. कई घटनाएं ऐसी भी सामने आई हैं कि मुस्लिम लड़कियां गैर-मुस्लिम लड़कों के साथ चली गईं और बाद में उन्हें बड़ी कठिनाइयों से गुजरना पड़ा. यहां तक कि उन्हें अपने जीवन से भी हाथ धोना पड़ा. इस पृष्ठभूमि के संदर्भ में अनुरोध किया जाता है कि.....

  • उलेमा-ए-किराम जलसों में बार-बार इस विषय पर खिताब (संबोधन) करें और लोगों को इसके दुनियावी व आखिरत के नुकसान से जागरूक करें.
  • अधिक से अधिक महिलाओं के इज्तेमा हों और उनमें इस पहलू पर अन्य सुधारात्मक विषयों के साथ चर्चा करें.
  • मस्जिदों के इमाम जुमा के खिताब, कुरान और हदीस के दर्स में इस विषय पर चर्चा करें और लोगों को बताएं कि उन्हें अपनी बेटियों को कैसे प्रशिक्षित करना चाहिए ताकि ऐसी घटनाएं न हों?
  • माता-पिता अपने बच्चों की दीनी (धार्मिक) शिक्षा की व्यवस्था करें, लड़के और लड़कियों के मोबाइल फोन इत्यादि पर कड़ी नजर रखें, जितना हो सके लड़कियों के स्कूल में लड़कियों को पढ़ाने का प्रयास करें, सुनिश्चित करें कि उनका समय स्कूल के बाहर और कहीं भी व्यतीत न हो और उन्हें समझाएं कि एक मुसलमान के लिए एक मुसलमान ही जीवन साथी हो सकता है.
  • आमतौर पर रजिस्ट्री कार्यालय में शादी करने वाले लड़के या लड़कियों के नामों की सूची पहले ही जारी कर दी जाती है. धार्मिक संगठन, संस्थाएं, मदरसे के शिक्षक और आबादी के गणमान्य लोगों के साथ उनके घरों में जाएं. उन्हें समझाएं और बताएं कि इस तथाकथित शादी में उनका पूरा जीवन हराम में व्यतीत होगा. अनुभव से पता चलता है कि सामयिक जुनून के तहत की जाने वाली यह शादी दुनिया में भी विफल ही रहेगी.
  • लड़कों और विशेषकर लड़कियों के अभिभावकों को ध्यान रखना चाहिए कि शादी में देरी न हो, समय पर शादी करें, क्योंकि शादी में देरी भी ऐसी घटनाओं का एक बड़ा कारण हैं.
  • निकाह सादगी से करें, इसमें बरकत भी है. नस्ल की सुरक्षा भी है और अपनी कीमती दौलत को बर्बाद होने से बचाना भी है.
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