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ज्ञानवापी मस्जिद के मामले में चिंतित न हों मुसलमानः मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड - all india muslim personal law board

देश में मुसलमानों के सबसे बड़े संगठनों में शुमार ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद और काशी विश्वनाथ प्रकरण में मुस्लिम समुदाय से निराश नहीं होने की अपील की है.

लखनऊ
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Published : Apr 9, 2021, 10:53 PM IST

लखनऊः देश में मुसलमानों के सबसे बड़े संगठन ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद और काशी विश्वनाथ प्रकरण में महत्वपूर्ण बयान दिया है. ज्ञानवापी मस्जिद बनारस के मामले के संबंध में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के कार्यवाहक महासचिव हजरत मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने अपनी प्रेस विज्ञप्ति में कहा है कि वर्ष 1991 में 'उपासना स्थल (विशेष उपबन्ध) संरक्षण अधिनियम' के अन्तर्गत 15 अगस्त 1947 को जहां जो उपासना स्थल (धार्मिक स्थान) था, उसकी स्थिति वही मानी जाएगी. उसमें कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता.

सांप्रदायिक शक्तियों ने दायर की याचिका
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के कार्यवाहक महासचिव मौलाना सैफुल्लाह रहमानी ने कहा कि इस कानून के पारित होने के बाद सांप्रदायिक शक्तियों को ओर से ज्ञानवापी मस्जिद के मामले में न्यायालय में एक याचिका दायर की गयी कि इस स्थान पर पहले एक मंदिर था. उसका सर्वेक्षण किया जाए. उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट है कि इस कानून के आने के बाद अब इसकी गुंजाइश शेष नहीं रही इसलिए मस्जिद समिति और उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने याचिका का विरोध किया और एक स्तर पर याचिका रद्द कर दी गयी लेकिन पुनः यह मामला सिविल कोर्ट में पहुंच गया और मस्जिद कमेटी के पैरवी के आधार पर हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी. हालांकि यह दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि इसके बावजूद सिविल कोर्ट के एक न्यायाधीश ने मस्जिद की भूमि का सर्वेक्षण करने के लिए एक आदेश जारी कर दिया है. यह कानून से एक प्रकार का खिलवाड़ है और पूरी तरह से अस्वीकार्य है.

इसे भी पढ़ेंः मौलाना ने कहा- किसी भी धार्मिक स्थल को लेकर अब मुद्दा बनाना सही नहीं

मुसलमानों से बोर्ड ने निराश नहीं होने का किया अनुरोध
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के कार्यवाहक महासचिव मौलाना सैफुल्लाह रहमानी ने कहा कि मस्जिद समिति और सुन्नी वक्फ बोर्ड इस मामले को लेकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय जा रहा है. मुसलमानों से अनुरोध है कि वे इस मामले में निराश न हों. मस्जिद समिति और सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड संपूर्ण शक्ति के साथ इस मामले की पैरवी कर रहा है और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और उसकी कानूनी समिति इस पर नज़र रख रही है और सहयोग भी कर रही है.

लखनऊः देश में मुसलमानों के सबसे बड़े संगठन ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद और काशी विश्वनाथ प्रकरण में महत्वपूर्ण बयान दिया है. ज्ञानवापी मस्जिद बनारस के मामले के संबंध में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के कार्यवाहक महासचिव हजरत मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने अपनी प्रेस विज्ञप्ति में कहा है कि वर्ष 1991 में 'उपासना स्थल (विशेष उपबन्ध) संरक्षण अधिनियम' के अन्तर्गत 15 अगस्त 1947 को जहां जो उपासना स्थल (धार्मिक स्थान) था, उसकी स्थिति वही मानी जाएगी. उसमें कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता.

सांप्रदायिक शक्तियों ने दायर की याचिका
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के कार्यवाहक महासचिव मौलाना सैफुल्लाह रहमानी ने कहा कि इस कानून के पारित होने के बाद सांप्रदायिक शक्तियों को ओर से ज्ञानवापी मस्जिद के मामले में न्यायालय में एक याचिका दायर की गयी कि इस स्थान पर पहले एक मंदिर था. उसका सर्वेक्षण किया जाए. उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट है कि इस कानून के आने के बाद अब इसकी गुंजाइश शेष नहीं रही इसलिए मस्जिद समिति और उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने याचिका का विरोध किया और एक स्तर पर याचिका रद्द कर दी गयी लेकिन पुनः यह मामला सिविल कोर्ट में पहुंच गया और मस्जिद कमेटी के पैरवी के आधार पर हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी. हालांकि यह दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि इसके बावजूद सिविल कोर्ट के एक न्यायाधीश ने मस्जिद की भूमि का सर्वेक्षण करने के लिए एक आदेश जारी कर दिया है. यह कानून से एक प्रकार का खिलवाड़ है और पूरी तरह से अस्वीकार्य है.

इसे भी पढ़ेंः मौलाना ने कहा- किसी भी धार्मिक स्थल को लेकर अब मुद्दा बनाना सही नहीं

मुसलमानों से बोर्ड ने निराश नहीं होने का किया अनुरोध
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के कार्यवाहक महासचिव मौलाना सैफुल्लाह रहमानी ने कहा कि मस्जिद समिति और सुन्नी वक्फ बोर्ड इस मामले को लेकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय जा रहा है. मुसलमानों से अनुरोध है कि वे इस मामले में निराश न हों. मस्जिद समिति और सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड संपूर्ण शक्ति के साथ इस मामले की पैरवी कर रहा है और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और उसकी कानूनी समिति इस पर नज़र रख रही है और सहयोग भी कर रही है.

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