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प्रदेश के 35 जिलों में मंडरा रहा सूखे का खतरा

उत्तर प्रदेश के कई जिलों में कम बारिश होने से फसल के सूख जाने की आशंका है. किसानों के लिए यह एक बड़ी परेशानी बनती नजर आ रही है.

35 जिलों में मंडरा रहा सूखाग्रस्त का खतरा
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Published : Aug 20, 2019, 10:37 PM IST

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में किसानों के सामने मानसून की ताबड़तोड़ बारिश के बावजूद फसलों के सूख जाने का खतरा मंडरा रहा है. इसकी वजह उत्तर प्रदेश के 35 जिलों में होने वाली बेहद कम बारिश है. प्रदेश में बरसात के हालत को ऐसे भी समझा जा सकता है कि केवल 11 जिले ऐसे हैं जहां अगस्त महीने में सामान्य वर्षा दर्ज की गई है जबकि 6 जिलों में अधिक वर्षा का रिकॉर्ड बना है.

35 जिलों में मंडरा रहा सूखाग्रस्त का खतरा
बारिश के न होने से सूख गई फसल-उत्तर प्रदेश के कुल 75 जिलों में 58 जिले ऐसे हैं जहां अगस्त महीने में कम बारिश दर्ज की गई है. इसका सीधा असर उन किसानों पर पड़ता दिखाई दे रहा है, जो खरीफ की फसल के लिए बुवाई कर चुके हैं और जिन्हें भरपूर वर्षा की जरूरत है. जबकि एक साल पहले अगस्त महीने में ही सामान्य और सामान्य से अधिक वर्षा वाले जिलों की तादाद 37 थी.

वहीं चार जिले श्रावस्ती, अंबेडकर नगर, बलिया और मुजफ्फरनगर ही ऐसे हैं जहां ज्यादा बारिश दर्ज की गई है जबकि 80% से ज्यादा बारिश वाले जिलों की तादाद 29 है. बावजूद इसके किसानों की बड़ी समस्या अगस्त में अपेक्षा के अनुसार बारिश ना होना है. अगस्त महीने में 40 फीसदी से भी कम वर्षा वाले जिले 35 हैं, जिन्हें सूखाग्रस्त की श्रेणी में रखा जाता है. यानी उत्तर प्रदेश के आधे से ज्यादा हिस्से में किसानों को मानसून की बारिश से फायदा मिलता नहीं दिखाई दे रहा है.

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में किसानों के सामने मानसून की ताबड़तोड़ बारिश के बावजूद फसलों के सूख जाने का खतरा मंडरा रहा है. इसकी वजह उत्तर प्रदेश के 35 जिलों में होने वाली बेहद कम बारिश है. प्रदेश में बरसात के हालत को ऐसे भी समझा जा सकता है कि केवल 11 जिले ऐसे हैं जहां अगस्त महीने में सामान्य वर्षा दर्ज की गई है जबकि 6 जिलों में अधिक वर्षा का रिकॉर्ड बना है.

35 जिलों में मंडरा रहा सूखाग्रस्त का खतरा
बारिश के न होने से सूख गई फसल-उत्तर प्रदेश के कुल 75 जिलों में 58 जिले ऐसे हैं जहां अगस्त महीने में कम बारिश दर्ज की गई है. इसका सीधा असर उन किसानों पर पड़ता दिखाई दे रहा है, जो खरीफ की फसल के लिए बुवाई कर चुके हैं और जिन्हें भरपूर वर्षा की जरूरत है. जबकि एक साल पहले अगस्त महीने में ही सामान्य और सामान्य से अधिक वर्षा वाले जिलों की तादाद 37 थी.

वहीं चार जिले श्रावस्ती, अंबेडकर नगर, बलिया और मुजफ्फरनगर ही ऐसे हैं जहां ज्यादा बारिश दर्ज की गई है जबकि 80% से ज्यादा बारिश वाले जिलों की तादाद 29 है. बावजूद इसके किसानों की बड़ी समस्या अगस्त में अपेक्षा के अनुसार बारिश ना होना है. अगस्त महीने में 40 फीसदी से भी कम वर्षा वाले जिले 35 हैं, जिन्हें सूखाग्रस्त की श्रेणी में रखा जाता है. यानी उत्तर प्रदेश के आधे से ज्यादा हिस्से में किसानों को मानसून की बारिश से फायदा मिलता नहीं दिखाई दे रहा है.

Intro:लखनऊ. उत्तर प्रदेश में किसानों के सामने मानसून की ताबड़तोड़ बारिश के बावजूद फसलों के सूख जाने का खतरा मंडरा रहा है इसकी वजह उत्तर प्रदेश के 35 जिलों में होने वाली " बेहद कम वर्षा " है। प्रदेश में बरसात के हालत को ऐसे भी समझा जा सकता है कि केवल 11 जिले ऐसे हैं जहां अगस्त महीने में सामान्य वर्षा दर्ज की गई है जबकि 6 जिलों में अधिक वर्षा का रिकॉर्ड बना है।


Body:उत्तर प्रदेश के कुल 75 जिलों में 58 जिले ऐसे हैं जहां अगस्त महीने में कम बारिश दर्ज की गई है । इसका सीधा असर उन किसानों पर पड़ता दिखाई दे रहा है जो खरीफ की फसल के लिए बुवाई कर चुके हैं और अब उन्हें भरपूर वर्षा की जरूरत है। जबकि 1 साल पहले अगस्त महीने में ही सामान्य और सामान्य से अधिक वर्षा वाले जिलों की तादाद 37 थी। उत्तर प्रदेश में मानसून(जून से अगस्त) की बारिश के दौरान भी इस साल इंद्र देवता का मिजाज बदला बदला दिखाई दिया केवल 4 जिले श्रावस्ती अंबेडकर नगर बलिया और मुजफ्फरनगर ही ऐसे हैं जहां 12030 दी से ज्यादा बारिश दर्ज की गई है जबकि 80% से ज्यादा बारिश वाले जिलों की तादाद 29 है। इसी तरह कम वर्षा वाले जिलों की तादाद 26 और अत्यधिक कम वर्षा वाले 11 और सूखा क्षेत्र वाले जिले 5 हैं। इसके बावजूद किसानों की बड़ी समस्या अगस्त में अपेक्षा के अनुसार बारिश ना होना है। अगस्त महीने में 40 फ़ीसदी से भी कम वर्षा वाले जिले 35 हैं जिन्हें सूखाग्रस्त की श्रेणी में रखा जाता है कम वर्षा वाले जिले भी 10 और अत्यधिक कम वर्षा वाले जिलों की तादाद 13 है । यानी उत्तर प्रदेश आधे से ज्यादा हिस्से में किसानों को मानसून की बारिश से फायदा मिलता नहीं दिखाई दे रहा है ऐसे में उन्हें सिंचाई के वैकल्पिक साधनों का सहारा लेना मजबूरी है।

बाइट /राम शब्द जैसवारा, अपर निदेशक कृषि उत्तर प्रदेश



Conclusion:मानसून की बारिश कम होने का सीधा खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा है बरसात का सहारा ना मिलने की वजह से उन्हें सिंचाई के वैकल्पिक साधनों का प्रयोग करना मजबूरी बन गया है डीजल और बिजली के महंगे दाम की वजह से किसानों की फसल सिंचाई लागत बढ़ रही है बाजार में उन्हें अपनी फसल का वही दाम मिलेगा जो दूसरे किसानों को मिलता है लेकिन जिन जिलों में मानसून की बारिश कम हुई है वहां उनकी उत्पादन लागत बढ़ जाएगी।

पीटीसी अखिलेश तिवारी
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